ऐतिहासिक बोध के धरातल पर आधुनिकता की खोज : लहरों के राजहंस
ऐतिहासिक बोध के धरातल पर आधुनिकता की खोज : लहरों के राजहंस प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू पूर्णकुंभ जुलाई – 2002 नाटककार मोहन राकेश ने “ लहरों के राजहंस ” नाटक में राजकुमार नंद और उसकी पत्नी सुंदरी कथा के माध्यम से जन-मानस पर आक्रान्त विभिन्न दर्शनों के प्रभाव की तथा इस प्रभाव-ग्रहण से मुक्त रहने में मनुष्य की अस्वतंत्रता को रेखांकित करने का प्रयत्न किया है. इस नाटक में नंद के बौद्ध भिक्षु बनने और उसकी पत्नी सुंदरी के रुप गर्व की कथा कही गई है. कथा के इस क्रम में एक ओर नंद की बौद्ध भिक्षु के रुप में जीवन्त कथा है तो दूसरी ओर उसमें सौंदर्य की गगरी से छलकती कुछ बूँदें हैं जिसके छींटे पडते ही लेखक और पाठक दोनों ही आत्मविभोर हो उठे हैं. “ लहरों के राजहंस ” नाटक पूरी नाटकीयता के साथ मानव की अंतर्द्वन्द्वमयी आधु...