महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : आधे-अधूरे
महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : आधे-अधूरे प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू स्रवंति – द्विभाषा मासिक पत्रिका फरवरी - 2006 आधे-अधूरे नाटक में देश-काल एवं वातावरण का चित्रण पूर्णतः स्वाभाविक यथार्थपरक, सुंदर, वास्तविक और कलात्मक बन पडा है, इसका विचार करते समर हमें उसके वातावरण के रुप को देखना पडता है. वातावरण दो प्रकार का होता है और कुशल नाटककार को दोनों रुपों का समन्वित प्रस्तुतीकरण करना होता है, ये दो रुप हैं---- 1. आंतरिक रुप और 2. बाह्य वातावरण. आधे-अधूरे नाटक में महानगर में जीनेवाले एक मध्यवर्गीय परिवार के तनाव और उसकी विघटनशीलता का चित्र प्रस्तुत किया गया है इसलिए वातावरण के उक्त दोनों रुपों को इस में कलात्मक रुप से चित्रित किया गया है. आंतरिक वातावरण में घटनाओं और अंतः परिस्थितियों का चित्रण किया जाता है तथा पात्रों की मानसिक स्थिति उनके हाव-भाव तथा अंतर्द्वन्द्व का चित्र प्रस्तुत किया जाना होता हैं. आधे-अधूरे नाटक में मोहन राक...