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Showing posts from 2023
Sri Ramcharitmanas, Bal kand 04 | बहुरि बंदि खल गन सतिभाएँ। जे बिनु काज ...
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Sri Ramcharitmanas, Bal kand 03 | मज्जन फल पेखिअ ततकाला। काक होहिं पिक ब...
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Sri Ramcharitmanas, Bal kand 02 | गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ...
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Sri Ramcharitmanas, Bal kand 01 | बंदउँ गुरु पद पदुम परागा । सुरुचि सुब...
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जो सुमिरत सिधि होइ गन नायक करिबर बदन।करउ अनुग्रह सोइ, तुलसीदास Sri Ramch...
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वर्णानामर्थ संघानां रसानां छन्द सामपि । मंगलानां, तुलसीदास. Sri Ramchar...
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Vidyapati Padavali 178 UGC NET HINDI | नाच रे तरुनिहु तेजहु लाज, आएल, वस...
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Mohanrakesh : Aadhe Adhure, स्त्री और पुरूष-अनिश्चित व घटनाहीन जिन्दगी क...
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Vidyapati Padavali 174 UGC NET HINDI | माघ मास सिरि पंचमि गंजाइलि, नवम म...
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Vidyapati Padavali 145 UGCNET HINDI | माधव, दुरजए मानिनि मानि,विपरित चरि...
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Vidyapati Padavali 144 | UGC NET HINDI | मधु सम बचन कुलिस सम मानस, प्रथम...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 40, UGC NET HINDI | लोभइ ओढ़न लोभइ डासन । ...
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Vidyapati Padavali 141 | UGC NET HINDI | बिरह व्याकुल बकुल तरुतर, पेखल न...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 39 UGCNET HINDI | सुनहु असंतन्ह केर सुभाऊ।...
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Vidyapati Padavali 72 | UGC NET HINDI | सुंदरि चललिहु पहु घर ना। चहु दिस...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 38 UGCNET HINDI | बिषय अलंपट सील गुनाकर । ...
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Vidyapati Padavali 62 | UGC NET HINDI | प्रथमहि अलक तिलक लेब साजि। चंचल ...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 37 UGC.NET HINDI | करउँ कृपानिधि एक ढिठाई।...
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अभिनय और दृश्य योजना का सफल प्रयोग : 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पह...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 36 UGC.NET HINDI | सनकादिक बिधि लोक सिधाए।...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 35 UGC.NET HINDI | देहु भगति रघुपति अति पा...
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Kamayani, Ida Sarg 21, UGCNET HINDI | अभिशाप प्रतिध्वनि हुई लीन नम- सागर...
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Kamayani, Ida Sarg 20, UGCNET HINDI | तुम जरा-मरण में चिर अशांत जिसको अब...
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Kamayani, Ida Sarg 19, UGCNET HINDI, | जीवन सारा बन जाय युद्ध उस रक्त, ...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 34 UGC.NET HINDI | सुनि प्रभु बचन हरषि मुन...
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Kamayani, Ida Sarg 18, UGCNET HINDI, | संकुचित असीम अमोघशक्ति जीवन को बा...
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अभिनय और दृश्य योजना का सफल प्रयोग : 'सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक'
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अभिनय और दृश्य योजना का सफल प्रयोग : ' सूर्य की अंतिम किरण से सूर्य की पहली किरण तक ' आचार्य. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू. आलोचन दृष्टि Aalochan Drishti, ISSN No: 2455-4219 An International Peer Reviewed Refereed Research Journal of Humanities Year – 8, Volume – 33 July – September, 2023. यह सर्व विदित सत्य है कि नाटक का मूलाधार रंगमंच है . इसीलिए नाटककार रंगमंच के आधार पर ही नाटक का सृजन करता है. सफल नाटककार को रंगमंच की स्पष्ट परिकल्पना होती है जिसके अभाव में नाटक लिखा तो जाता है पर रंगमंच पर प्रदर्शित नहीं होता. नाटक का रंगमंचीय होना अत्यंत महत्वपूर्ण है. सफल रूप से प्रदर्शित नाटक को ही सफल नाटक माना जाता है. नाटककार नाटक की रचना रंगमंच पर प्रदर्शित करने के लिए ही करते हैं. नाट्य लेखन का उद्देश्य ही है उसे रंगमंच पर प्रदर्शित करना. प्रसिद्ध आधुनिक नाटककार मोहन राकेश , लक्ष्मीनारायण लाल और सुरेन्द्र वर्मा भी इसी मत में विश्वास रखते हैं कि जो नाटक प्रदर्शन की क्षमता से वंचित हो , वह सफल नाटक नहीं है. रंगमंचीय विशेषताओं को अभिनय , रंग सज्जा तथा परदे , ध्वनि एवं प...
Kamayani, Ida Sarg 17, UGCNET HINDI, वह प्रेम न रह जाये पुनीत अपने स्वार...
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Kamayani, Ida Sarg 16, UGCNET HINDI, अनवरत उठे कितनी उमंग चुंबित हों आं...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 33 UGC.NET HINDI | कीन्ह दंडवत तीनिउँ भाई।...
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Kamayani, Ida Sarg 15, UGCNET HINDI, यह अभिनव मानव प्रजा सृष्टि द्वयता म...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 32 UGCNET HINDI | भ्रातन्ह सहित रामु एक बा...
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Bharateeya Jnan Pranali & Research methodology, International Faculty De...
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Kamayani, Ida Sarg 14, UGCNET HINDI, हाँ, अब तुम बनने को स्वतन्त्र, सब क...
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Kamayani, Ida Sarg 13, UGCNET HINDI, मनु उसने तो कर दिया दान वह हृदय प्र...
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Kamayani, Ida Sarg 12, UGCNET HINDI | "यह कौन? अरे फिर वही काम ! जिसने इ...
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Sri Ramcharitmanas, Uttarkand 31 UGCNET HINDI | जब ते राम प्रताप खगेसा ।...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 40 | लंकाँ भयउ कोलाहल भारी । सुना दसानन...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 39 | रिपु के समाचार जब पाए।राम सचिव सब ...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 38 | नारि बचन सुनि बिसिख समाना । सभाँ ग...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 37 | जेहिं जलनाथ बँधायउ हेला । उतरे प्र...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 36 | कंत समुझि मन तजहु कुमतिही । सोह न ...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 35 | कपि बल देखि सकल हियँ हारे। उठा आपु...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 34 | मैं तव दसन तोरिबे लायक। आयसु मोहि ...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 33 | एहि बधि बेगि सुभट सब धावहु । खाहु ...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 32 | जब तेहिं कीन्हि राम कै निंदा। क्रो...
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Third Gender | My Hijra My Lakshmi. ‘मैं हिजड़ा. मैं लक्ष्मी’ Laxminaray...
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Personality Development and Sri Ramcharit Manas | व्यक्तित्व विकास और श्...
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12th World Hindi conference, Nadi, Fiji | Employability and Hindi langua...
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Third Gender | Kinner vimarsh | My Hijra My Lakshmi ‘मैं हिजड़ा. मैं लक्...
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Sri Ram Charit Manas, Lanka kand 31 | जौं अस करौं तदपि न बड़ाई । मुएहि ब...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 46 | निज गुन श्रवन सुनत सकुचाहीं । पर ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 45 | सुनि रघुपति के बचन सुहाए। मुनि तन...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 44 | सुनु मुनि कह पुरान श्रुति संता । ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 43 | अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी ।पुनि न...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 42 | सुनहु उदार सहज रघुनायक। सुंदर अगम...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 41 | देखि राम अति रुचिर तलावा । मज्जनु...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 40 | बिकसे सरसिज नाना रंगा। मधुर मुखर ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 39 | गुनातीत सचराचर स्वामी । राम उमा स...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 38 | बिटप बिसाल लता अरुझानी। बिबिध बित...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 37 | चले राम त्यागा बन सोऊ । अतुलित बल...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 36 | मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 35 | पानि जोरि आगें भइ ठाढ़ी। प्रभुहि ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 34 | सापत ताड़त परुष कहंता । बिप्र पूज...
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Bihari Satsaye 12, UGC JRF/NET HINDI | चितई ललचौंहैं चखनु डरि घूंघट-पट म...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 33 | कोमल चित अति दीनदयाला। कारन बिनु ...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 32 | गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बह...
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Sri Ram Charit Manas, Aranya kand 31 | तब कह गीध बचन धरि धीरा । सुनहु रा...
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Sri Ramcharit Manas,Aranya Kand Prayer| मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन...
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Bihari Satsaye 10, UGCJRF/NET HINDI | फिरि फिरि चितु उतहीं रहतु, टुटी ला...
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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 40 | सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू ।मनहुँ द...
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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 39 | आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब...
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आधुनिकता बोध, इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन
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आधुनिकता बोध , इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू पूर्णकुम्भ साहित्यिक मासिक पत्रिका अगस्त, 2002 आषाढ का एक दिन" नाटक में मिथक और इतिहास जो बाद में केवल मिथक बन जाता है , का उपयोग किया गया है. इस में मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध के साथ-साथ रोमांटिक बोध भी पूरी तरह उभरा है. इस में कालिदास का परिवेश से कट जाने का संकेत है , कृतिकार के अपवादित होने का संकेत है , उसके असाधारण होने का संकेत है. कश्मीर की स्थिति के अस्थिर होने में समकालीन संकेत ' है , राजनीति और साहित्य में होड़ का संकेत है. घर की खोज या आत्मीयता की खोज का संकेत है. ‘‘आषाढ का एक दिन" नाटक की मूल चेतना तो रोमानी ही है , किन्तु कहीं-कहीं इसी रोमानियत के पार्श्व में आधुनिक बोध आ खड़ा होता है. कालिदास और मल्लिका का संपर्क और नैकट्य इसी बात की गवाही देता है. दोनों में एक दूसरे के प्रति प्रेम का जो सूत्र है वह बिना कटे-टूटे एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला गया है. मल्लिका कालिदास की अनुपस्थिति में भी उपस्थिति का आभास करती है. उसे बराबर यही लगता रहा है कि कोई ...
Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 38 | पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमह...
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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 37 | राम राम रट बिकल भुआलू ।जनु बिनु ...
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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 36 | चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस ...
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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 35 | ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता । करिन...
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महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : 'आधे-अधूरे'
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महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : ' आधे-अधूरे ' डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू स्रवंति द्विभाषा मासिक पत्रिका फरवरी , 2006 ‘आधे-अधूरे’ नाटक में देश-काल एवं वातावरण का चित्रण पूर्णतः स्वाभाविक यथार्थपरक , सुंदर , वास्तविक और कलात्मक बन पड़ा है , इस पर विचार करते समय हमें उसके वातावरण के रूप को देखना पड़ता है. वातावरण दो प्रकार का होता हैं और कुशल नाटककार को दोनों रूपों का समन्वित प्रस्तुतीकरण करना होता है , ये दो रूप हैं आंतरिक रूप और बाह्य वातावरण. ‘आधे-अधूरे’ नाटक में महानगर में जीनेवाले एक मध्यवर्गीय परिवार के तनाव और उसकी विघटनशीलता का चित्र प्रस्तुत किया गया है इसलिए वातावरण के उक्त दोनों रूपों को इस में कलात्मक रूप से चित्रित किया गया है. आंतरिक वातावरण में घटनाओं और अंतः परिस्थितियों का चित्रण किया जाता है तथा पात्रों की मानसिक स्थिति उनके हावभाव तथा अंतर्द्वन्द्व का चित्र प्रस्तुत किया जाना होता है. “आधे-अधूरे" नाटक में मोहन राकेश ने आंतरिक वातावरण की सृष्टि अनेक रूपों में की है. कहीं घटनाओं अथवा परिस्थितियों का चित्रण करके उन्होंने ...