“ठण्डा लोहा” में अभिव्यक्त मानव-मूल्य
“ठण्डा
लोहा”
में अभिव्यक्त मानव-मूल्य
प्रो.एस.वी.एस.एस.
नारायण राजू
योग्यता
अंतर्राष्ट्रीय
त्रैमासिक पत्रिका
International Referred Research Journal
ISSN 2348-4225
Special Edition January – March 2019.
मानव-मूल्यों को नयी कविता में पर्याप्त
महत्त्व दिया गया है. ‘हिन्दी साहित्य कोश’ के अनुसार “नयी कविता आज की मानव-विशिष्टता में उद्भूत उस लघु-मानव के लघु परिवेश की
अभिव्यक्ति है, जो एक ओर आज की समस्त रिक्तता और विषमता को तो भोग ही रहा है, साथ
ही उन समस्त रिक्तताओं के बीच वह अपने व्यक्तित्व को भी सुरक्षित रखना चाहता है.”(1) इस कथन के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि नयीकविता का कवि मानव-मूल्यों
की अभिव्यक्ति अधिक प्रभाव-पूर्ण ढ़ंग से कर पाने में सफल इसलिए हुआ है कि उसने
समाज को टूटते देखा है. डॉ. धर्मवीर भारती ने भी मानव-मूल्यों तथा सामाजिक मूल्यों
में किसी प्रकार के विरोध का परिहार कर दिया है. उन्होंने मूल्य-बोध का आधार
व्यक्ति मानते हुए कहा है मानवीय-मूल्य अन्ततोगत्वा मनुष्य के वैयक्तिक जीवन में
ही पनपते हैं और उसका विकास व्यक्ति से समूह या समाज की ओर होता है.(2)
नये मानव-मूल्यों की स्थापना में
तत्कालीन सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. मानव
सामाजिक प्राणी है. जन समाज की रीड़ मानव-मूल्य है. इन्हीं ‘मानव-मूल्यों’ पर समाज का अस्तित्व निर्भर है. इसी कारण से किसी भी समाज की संस्कृति का
अध्ययन उसके मानव-मूल्यों के आधार पर किया जाता है. इन्हीं मूल्यों के सहारे
मनुष्य अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं तथा आदर्शों को प्राप्त करता है. मानव-जीवन में
मूल्यों का विशेष महत्व है. ‘मूल्य’ एक
दिन में नहीं बनते, न ही कपोल कल्पित होते हैं, बल्कि इनकी जड़ें बहुत गहरी होती
हैं पाश्चात्य विचारक क्रोबर के अनुसार “सभी सामाजिक,
सांस्कृतिक अभिव्यक्ति रुपों की तरह मूल्य भी प्रायः अधिवैयक्तिक होते हैं.
व्यक्ति स्वयं जितने मूल्यों का विकास करता है, उससे कहीं अधिक मूल्य समाज द्वारा
उस पर आरोपित कर दिये जाते हैं.” (3) इसीलिए मूल्यों को
सामाजिक अनुमोदन की आवश्यकता पड़ती है. मूल्य की पृष्ठभूमि व्यक्तिगत भी हो सकती
है और समाजगत भी. व्यक्ति उन मूल्यों से प्रेरणा प्राप्त करता है, जो समाज द्वारा
प्रशंसित होते हैं व्यक्ति समाज से मूल्य ग्रहण करता है परन्तु मूल्य सर्वप्रथम
व्यक्ति द्वारा ही अन्वेषित एवं प्रतिपादित किए जाते हैं, बाद में समाज द्वारा
स्वीकृत अथवा बहुप्रचलित हो जोने पर ऐसे मूल्य सामाजिक हित का निकष बन जाते हैं.
अन्ततः सभी मूल्य सामजिक हैं. इस प्रकार देश काल के परिवर्तन के साथ सामाजिक
सम्बन्धों एवं मूल्यों में भी परिवर्तन होता रहता है. राजनीतिक स्वतन्त्रता
प्राप्ति के बाद भारतीय समाज में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं. भारत विभाजन
ने करोड़ों भारतीयों के विश्वासों तथा मूल्यों को हिला दिया था.
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूँजीवादी देशों में
भ्रष्टाचार, घूस और अन्याय का इतना बोलबाला हुआ कि उस से सत्य, अहिंसा, विश्वास और
प्रेम जैसे मानवीय मूल्यों का लोप हो गया. साम्यवादी देशों में नैतिक-मूल्यों का
अस्तित्व समाप्त हो गया. इसका प्रभाव युवा वर्ग पर काफी पड़ा. स्वतन्त्रता के बाद
भारत में भी एक ओर तो मानवीय मूल्यों का विघटन हुआ, दूसरी और नैतिकता के स्थान पर
अनैतिकता को प्रश्रय मिला, नया कवि इस स्थिति से विक्षुब्ध हो उठा. प्रत्येक
व्यक्ति के मन में अविश्वास आशंका और भय घर करता गया. इस प्रकार भारत का प्रत्येक
मानव समाजोन्मुख न रहकर वैयक्तिक हो गया. उसके इसी वैयक्तिक दृष्टिकोण के कारण
उसमें अकेलेपन और अजनबीपन का बोध पनपा. नए कवि ने व्यक्ति की विवशता एवं भय की
अनुभूति तथा अमानवीय भाव बोध को पहचाना और उन्हें जीवन के वृहद् यथार्थ में रखकर
उनका आकलन किया. इस परिवेश में नये कवि के सम्मुख यह समस्या थी कि वह नये मानव-मूल्यों
की प्रतिष्ठा करें इस उद्देश्य को लेकर नयी कविता के कवियों ने नये मनुष्य को
प्रतिष्ठित करने का प्रयास किया है, जो उस काल-चेतना का प्रतीक है, जिससे नये
मानव-मूल्यों का उदय हुआ है.
नयी कविता के इस उद्देश्य को स्पष्ट करते
हुए डॉ. जगदीश गुप्त का कथन है“नया मनुष्य रुढ़िग्रस्त चेतना से मुक्त, मानव-मूल्यों के रुप में स्वातन्त्रय
के प्रति सजग, अपने भीतर अनारोपित सामाजिक दायित्व का स्वयं अनुभव करने वाला समाज
को समस्त मानवता के हित में परिवर्तित कर नया रुप देने के लिए कृत संकल्प कुटिल
स्वार्थ भावना से विरत, मानव-मात्र के प्रति स्वाभाविक सहानुभूति से युक्त,
संकीर्णताओं एवं कृत्रिम विभाजनों के प्रति क्षोभ का अनुभव करने वाला हर मनुष्य को
जन्मतः समान मानने वाला, मानव-व्यक्तित्व को उपेक्षित, निरर्थक और नगण्य सिद्ध
करने वाली किसी भी दैविक शक्ति या राजनीतिक सत्ता के आगे मनुष्य की अंतरंग सद्वृत्ति के प्रति आस्थावान
प्रत्येक व्यक्ति के स्वाभिमान के प्रति सजग, दृढ़ एवं संगठित अन्तःकरण संयुक्त,
सक्रिय किन्तु अपीड़क सत्य-निष्ठ तथा विवेक-सम्पन्न होगा----ऐसे मनुष्य की प्रतिष्ठा
करना ही नयी कविता का उध्देश्य है.” (4)
नयी कविता के प्रायः सभी
कवियों की कविताओं में मानव-मूल्यों की सजीव एवं सार्थक अभिव्यक्ति हुई है. नयी
कविता में अभिव्यंजित मानव-मूल्यों का अध्ययन करते हुए नयी कविता के मूल्य-बोध के
आधार को स्पष्ट करते हुए कई आलोचकों ने यह स्पष्ट किया है कि नया मनुष्य ही इस
मूल्य-बोध का आधार है और उनकी प्रतिष्ठा करना ही वास्तव में नयी कविता का मूल उध्देश्य
भी है. शशि सहगल ने नयी कविता में अभिव्यक्त मानव-मूल्यों का विभाजन इस प्रकार
किया है.
1. मानव-स्वातंत्रय
2. मानव-विशिष्टता
3. मानव-विवेक
4. मानव-निष्ठा व मानव-आस्था
5. आत्मविश्वास और मानव-स्वाभिमान.(5)
डॉ. धर्मवीर भारती मूलतः स्वच्छन्द प्रवृत्ति
के कवि है. अतः उनके गीतों में जीवन के प्रति पलायन अथवा आक्रोश का स्वर संकल्प ओर
जिजीविषा के स्वर को दबा नहीं पाया है. यही कारण है कि उन्होंने ‘ठण्डा लोहा’ संग्रह की मेरी परछाही कविता में आत्मविश्वास को प्रखर अभिव्यक्ति दी है.
“गो यह सच है
इस रेतीले बयाबान में
आँसू से भीगे मंजुल संगीत-सरीखी
अक्सर ऐसी भी आवाजें आ जाती हैं
कोई यह भी कह जाता है
सघन तिमिर को कुचल-कुचल कर
यदि मैं चलता ही जाऊँ तो
मेरे ही कदमों से जिन्दा सूर्य
उगेगा
मेरे मस्तक पर शंकर का चांद खिलेगा
अंधियारे के सांप गले का हार बनेंगे”.(6)
ऐसा नहीं है कि डॉ. धर्मवीर भारती जीवन में
आर्थिक विषमता या कष्टों को महसूस नहीं करते, या फिर दर्द से उनका कोई सरोकार नहीं
है. वास्तविकता यह है कि सारी विषमताओं, जिनका मूल है आर्थिक विषमता को अपने
विश्वास के समक्ष नगण्य मानते हैं. उनकी प्रसिद्ध रचना ‘कविता की मौत’ जहाँ एक ओर उनके जनवादी चिन्तन को मुखर करती
है, वहीं उनके सनातन सारस्वत संस्कारों को सजीव अभिव्यक्ति भी देती है. डॉ.
धर्मवीर भारती के शब्द पूँजीवादी शोषण के विरुद्ध अपना विश्वास इन शब्दों में
व्यक्त करते हैं.
“ फिर उभर कर कहेगी कविता
क्या हुआ दुनिया अगर मरघट बनी
अभी मेरी आखिरी आवाज बाकी है
हो चुकी हैवानियत की इन्तेहा
आदमियत का मगर आगाज बाकी है
तो तुम्हें मैं फिर नया विश्वास
देती हूँ
नया इतिहास देती हूँ
कौन कहता है कि कविता मर गयी”(7)
डॉ. धर्मवीर भारती ने अपने
काव्य में नए मानव-मूल्यों की प्रतिष्ठा करके सामाजिक मूल्यों को सशक्त आधार
प्रदान किया है.
संदर्भ
1.
हिंदी साहित्य कोश (भाग-1) : सं. डॉ.धीरेंद्र वर्मा, पृ.सं-401
2. मानव मूल्य और साहित्य : डॉ. धर्मवीर भारती पृ.सं-50
3. A.L.
Krober : The Nature of Culture, P. no. 129
4. नई कविता, स्वरुप और समस्याएँ: डॉ. जगदीश गुप्त पृ.सं-36
5. नई कविता में मूल्य बोध : शशि सहगल पृ.सं. 161
6. ठण्डा लोहा : डॉ. धर्मवीर भारती पृ.सं- 83
7. ठण्डा लोहा : डॉ. धर्मवीर भारती पृ.सं-46