संशय की एक रात और युगीन संदर्भ
yogyatha International Research Jo urnal ISSN : 2348-4225 October - December 2014 संशय की एक रात और यु गीन संदर्भ प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू नरेश मेहता की “ संशय की एक रात ” नई कविता की विशिष्ट कृति है . यह भी कहा जा सकता है कि “ संशय की एक रात ” जैसी कृतियों ने नई कविता के कथ्य को प्रबंधात्मक शिल्प के सहारे संप्रेषित करके व्यापक दृश्य फलक प्रदान किया . कवि ने मिथक के सहारे समकालीन परिवेश के आधुनिक बोध को उभारा है . कवि ने इतिहास और पुराण में पुनरुत्थानवादी कवियों की भाँति सांस्कृतिक गौरव की खोज नहीं की , बल्कि पुरानी कथा में ‘ वस्तु ’ नवीनता लाने उसके माध्यम से युग की जटिल स्थितियों को परिभाषित करने का उपक्रम किया है. इस काव्य का प्रकाशन सन् 1962 में हुआ है. “ संशय की एक रात ” का कथानक राम कथा के उस अंश से संबंधित है जिस में लंका-युध्द की तैयारी में सेतु-बंध बनवा चुके हैं और उसका कथ्य है युध्द की समस्या और उससे संबंधित प्रश्नों पर चिंतन. कथ्य-चेतना की दृष्टि से “ संशय की