राजाओं और साधारण जनता की स्वार्थपरता का यथार्थ अंकन : भीष्म साहनी कृत ‘माधवी’

 


राजाओं और साधारण जनता की स्वार्थपरता का यथार्थ अंकन : भीष्म साहनी कृत माधवी

आचार्य.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

विश्व भारती पत्रिका, 

ISSN 2348-4977,

July - September 2024,

Hindi Bhavan, Shantiniketan,

West Bengal.



माधवी की कथा महाभारत से ली गई है और इसमें कई महत्वपूर्ण पात्र और घटनाएँ शामिल हैं. कथा की मुख्य वस्तु यह है कि गालव एक मुनिकुमार है, जो अपनी शिक्षा गुरु विश्वामित्र के यहाँ पूरी करता है. शिक्षा समाप्त होने के बाद, गुरु दक्षिणा के रूप में गुरु विश्वामित्र गालव से आठ सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़े मांगते हैं. इस कठिन कार्य को पूरा करने के लिए गालव विभिन्न राजाओं के पास जाता है. गालव की यात्रा उसे दानवीर राजा ययाति के द्वार पर ले जाती है. ययाति प्रसिद्ध दानी है, लेकिन उसके दान के पीछे भी एक स्वार्थपरायणता छिपी होती है. ययाति का लक्ष्य यश प्राप्त करना और स्वर्ग की कामना होती है. अपनी स्वार्थ की पूर्ति के लिए, ययाति अपनी एकमात्र पुत्री माधवी को गालव को दान में देने का निर्णय लेता है. ययाति का विश्वास है कि माधवी एक लक्षणयुक्त नारी है और ज्योतिषियों की भविष्यवाणी के अनुसार, माधवी के गर्भ से जन्म लेने वाला पुत्र चक्रवर्ती सम्राट बनेगा. इस विश्वास के आधार पर, ययाति गालव से कहता है कि वह माधवी को विभिन्न राजाओं को सौंपकर उनसे आठ सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़े प्राप्त कर सकता है. ययाति अपनी स्वार्थपरता के कारण अपनी पुत्री की इच्छा-अनिच्छा की परवाह नहीं करता. वह गालव के सामने ही माधवी को बुलाकर उससे कहता है कि वह इस युवक के साथ जाए। यथा -

ययाति : (परिचारक से) माधवी को बुलाओ। (गालव से) तुम मुझे वैसे ही विकट परीक्षा में डाल रहे हो, जिसमें तुम स्वयं खोये हुए हो. सुनो गालव, मैं तुम्हें आठ सौ अश्वमेधी घोड़े तो नहीं दे सकता, पर मैं अपनी एकमात्र कन्या तुन्हें सौंप सकता हूँ. बडी गुणवती युवती है. इसे पाकर कोई भी राजा तुम्हें आठ सौ अश्वमेधी घोड़े देगा. निश्चय ही तुम अपना वचन निभा पाओगे."

माधवी : (चकित सी) क्या है पिताजी ?

ययाति : तुम मुनि कुमार के साथ जाओ. (माधवी आश्चर्य और कुतूहल से गालव की ओर देखती है)

माधवी : मैं समझी नहीं पिताजी.

ययाती : यह युवक तुम्हें सब समझा देगा.

माधवी : मुझे इनके साथ कहाँ जाना होगा ?

ययाती : मैंने तुम्हें सौंप दिया है । इस युवक की अभ्यर्थना को मानते हुए मैंने तुम्हें दान में दे दिया है. यह युवक तुम्हें सब समझा देगा." (1)

ये घटनाएँ यह दिखाती हैं कि कैसे स्वार्थ और अधिकार की भावना स्त्री और अन्य व्यक्तियों के अधिकारों और भावनाओं को नजरअंदाज कर सकती है.

महाभारत की कथाओं में, राजा ययाति अपनी पुत्री माधवी को स्वार्थवश दान में देता है, जिसमें उसकी इच्छाओं और अधिकारों को पूरी तरह अनदेखा किया जाता है. यह दिखाता है कि कैसे प्राचीन काल में भी स्त्री को केवल एक वस्तु की तरह देखा जाता था, जिसे दान या दांव पर लगाया जा सकता था.

वर्तमान समाज में भी, हम देखते हैं कि कुछ लोग धन और यश की प्राप्ति के लिए अपनी संतान या परिवार के सदस्यों को दूसरों के हवाले कर देते हैं. यह स्थिति दर्शाती है कि भले ही समय बदल गया हो, लेकिन कुछ मूलभूत समस्याएँ और सोचने की धारणाएँ अब भी वैसी ही हैं. यह आवश्यक है कि हम इन कथाओं और घटनाओं से सीखें और यह सुनिश्चित करें कि किसी भी व्यक्ति, विशेष रूप से स्त्रियों, के अधिकारों और इच्छाओं का सम्मान किया जाए. समाज को इस दिशा में जागरूकता और शिक्षा की आवश्यकता है ताकि हर व्यक्ति को समान अधिकार और सम्मान मिल सके.

महाभारत की कथा में गालव और माधवी का संबंध गहरे भावनात्मक और नैतिक द्वंद्व को उजागर करता है. गालव का अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को पाने के लिए माधवी को तीन राजाओं के पास छोड़ना और माधवी का गालव के प्रति प्रेम, दोनों ही कथानक के महत्वपूर्ण पहलू हैं.

गालव के मन में माधवी के प्रति स्नेह या मोह जैसी भावनाएँ मौजूद हो सकती हैं, लेकिन वह अपने गुरु के प्रति वचन बद्धता और अपने कर्त्तव्य की पूर्ति के लिए माधवी को तीन राजाओं के पास भेजने का निर्णय लेता है. यह गालव के चरित्र की जटिलता और उसके कर्त्तव्यपरायणता को दर्शाता है. हालांकि, यह भी स्पष्ट है कि गालव के इस निर्णय से माधवी को बहुत कष्ट सहना पड़ता है, फिर भी माधवी अपने प्रेम और वफादारी के कारण इन कठिनाइयों को सहन करती है.

माधवी का गालव के प्रति प्रेम इतना गहरा और सच्चा है कि वह स्वयं गुरु विश्वामित्र के पास जाकर गालव के लिए क्षमा मांगने के लिए तैयार हो जाती है. यह उसकी निस्वार्थता और समर्पण को दर्शाता है. वह अपने प्रेम को विभिन्न तरीकों से व्यक्त करती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि वह गालव के प्रति अपने सच्चे प्रेम के लिए किसी भी कठिनाई का सामना करने के लिए तैयार है. इस प्रकार, यह कथा केवल प्राचीन कथाओं में ही नहीं, बल्कि आज के समय में भी प्रेम, कर्त्तव्य और त्याग के महत्व को समझने के लिए एक प्रेरणास्रोत है. गालव और माधवी की कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चा प्रेम और निष्ठा कठिन परिस्थितियों में भी मजबूत रह सकते हैं और व्यक्ति के चरित्र को प्रकट कर सकते हैं. यथा

माधवी : सुनो गालव, गुरु विस्वामित्र के पास मैं अकेली जाऊँगी। मैं उनसे तुम्हारे लिए क्षमा याचना करुँगी. मैं उन्हें सारी बात बताऊँगी.  मैं कहूँगी कि तुम इस गुरु दक्षिणा के लिए जगह जगह भटकते रहे हो, और घोड़े न मिलने पर आत्महत्या तक करने जा रहे थे. मैं उनसे कहूँगी कि मैं राजा ययाति की पुत्री हूं, और मेरे पिता ने आठ सौ अश्वमेधी घोड़े के लिए ही मुझे तुम्हारे हाथ सौंपा है. ... वह मान जायेगे." (2)

माधवी के उक्त कथन से यह व्यक्त होती है कि वह गालव के लिए कोई भी कष्ठ सहने के लिए तैयार है. यही नहीं माधवी बीच में गालव को भरोसा देती है कि इस परीक्षा में वह उत्तीर्ण ज़रूर होगा. यथा -

गालव : इस गुरु दक्षिणा ने मुझे मँझधार में झोंक दिया है.

माधवी : मँझदार में क्यों, गालव, तुम अपनी प्रतिज्ञा पूरी करोगे. तुम्हारी लक्ष्य की सिद्धि होगी. इसके अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं है.

गालव : क्या है, माधवी ?

माधवी : उत्तराखण्ड की ओर हम लम्बे से लम्बे मार्ग से जायेंगे, ताकि हम अधिक समय तक एक दूसरे के साथ रह सकें. वनों पर्वतों को तुम्हारे संग लांघते हुए मुझे अच्छा लगेगा. चलो, गालव ...... (3)

गालव को जब वह हताश और निराश देखती है, तब माधवी उसे दिलासा देती है और अपने प्रेम का इज़हार करती है. उत्तराखण्ड की यात्रा के दौरान माधवी लंबे मार्ग का चयन करती है ताकि वह गालव के साथ अधिक समय बिता सके। यह दिखाता है कि माधवी अपने प्रेम और स्नेह के प्रति कितनी समर्पित है. एक उन्नत कुलजात नारी होते हुए भी, माधवी अपनी मनोकामना को स्पष्ट रूप से व्यक्त करती है, जो उसके साहस और आत्मविश्वास को दर्शाता है.

हालांकि, गालव अपनी स्वार्थपरता में विलीन होकर माधवी के प्यार को अनदेखा करता है. उसका ध्यान केवल गुरु दक्षिणा के रूप में आठ सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को प्राप्त करने पर केंद्रित है. इस लक्ष्य को पाने के लिए, वह माधवी को अयोध्या के राजा हर्यश्च के पास सौंप देता है, जो स्वयं चक्रवर्ती राजा बनने की कामना रखते हैं. राजा हर्यश्च अपने स्वार्थ के कारण माधवी को स्वीकार करता है, लेकिन पुत्र प्राप्ति के बाद उसे छोड़ने का प्रस्ताव रखता है.

यह कथा एक नारी की असहायता और संघर्ष को दर्शाती है, जो अपने प्रेम और समर्पण के बावजूद स्वार्थी पुरुषों द्वारा अनदेखा की जाती है. माधवी की इस यात्रा और संघर्ष की कथा केवल प्राचीन समय की ही नहीं, बल्कि वर्तमान समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे स्वार्थ और अधिकार की भावना किसी के जीवन और भावनाओं को प्रभावित कर सकती है. साथ ही, यह कथा हमें नारी की साहस, समर्पण और प्रेम की शक्ति को भी समझने का अवसर देती है. यथा

हर्यश्च : हम अयोध्या नरेश हर्यश्च हैं. हम अपने वचन से विमुख नहीं हो सकते. कोई भी आर्य राजा विमुख नहीं होता पुत्र जन्म होने पर यदि युवति (माधवी) हमारे रनिवास में रहना नहीं चाहती तो हम उसे मुक्त कर देंगे. (4)

यहाँ राजा को माधवी से कोई तात्पर्य नहीं है. वह सिर्फ एक पुत्र को चाहता है. गालव को बाकी घोड़ों की चिंता है. केवल दो सौ घोड़े के लिए समय नष्ट करना उसे स्वीकार नहीं है. यहाँ भी माधवी उसे सुझाव देती है. यथा -

माधवी : तुम स्थिति को समझो, गालव. पुत्रलाभ होने पर मैं मुक्त हो जाऊँगी, हम दोनों स्वतंत्र होंगे. यदि शेष घोड़ों के लिए भी अन्य राजाओं के रनिवास में रहना पड़ा तो अन्त में मैं मुक्त हो जाऊँगी." (5)

माधवी और गालव की कहानी में गहरे भावनात्मक और नैतिक पहलू हैं. जब माधवी यह कहती है कि वह गालव के प्रति अपने प्रेम और निष्ठा को साबित करने के लिए राजाओं के पास जाने के लिए तैयार है, तब गालव उसे राजा हर्यश्च के पास सौंप देता है. फिर भी, गालव के मन में कुछ चिंता बनी रहती है. उसकी चिंता का कारण यह है कि आठ सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को जुटाने में कितना समय लग जाएगा और यह यात्रा कितनी लंबी होगी.

माधवी, गालव की इस चिंता को समझते हुए, सोचती है कि गालव उसकी सेहत, सौंदर्य और यौवन के बारे में चिंतित हैं. इस अवसर पर, माधवी अपनी विशेष वर सिद्धि के बारे में गालव को बताती है.

माधवी की वर सिद्धि यह है कि वह एक विशेष वरदान के कारण हर बार प्रसव के बाद अपने यौवन, सौंदर्य और स्वास्थ्य को पुनः प्राप्त कर सकती है. इस वरदान के कारण, वह हमेशा सुंदर और स्वस्थ बनी रहती है, चाहे कितनी भी बार प्रसव क्यों न हो. माधवी गालव को इस वरदान के बारे में बताती है ताकि उसकी चिंता कम हो सके और वह आश्वस्त हो सके कि माधवी को किसी भी प्रकार का दीर्घकालिक शारीरिक नुकसान नहीं होगा.

इस विशेष वरदान के कारण, माधवी विभिन्न राजाओं के पास जाती है और उन्हें चक्रवर्ती पुत्र प्रदान करती है, जिससे गालव के लिए अश्वमेध यज्ञ के घोड़ों को जुटाना संभव हो पाता है. इस प्रकार, माधवी का त्याग और वरदान गालव के कर्त्तव्य को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

माधवी की इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि नारी का त्याग, समर्पण और विशेष वरदान केवल कथा में ही नहीं, बल्कि जीवन की विभिन्न चुनौतियों और परिस्थितियों में भी महत्वपूर्ण हो सकते हैं. यह कहानी प्रेम, कर्तव्य, त्याग और वरदान के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाती है, जो आज भी प्रासंगिक हैं. यथा

माधवी : चिन्ता नहीं करो, गालव, क्या तुम भूल गये ? मुझे चिर कौमार्य का वर प्राप्त है.

गालव : क्या, माधवी ?

माधवी : मुझे एक बार एक ब्रह्मचारी ने वर दिया था.

गालव : कैसा वर ?

माधवी : चिर कौमार्य का वर में पुत्र जन्म के बाद, अनुष्ठान करने पर फिर वैसी की वैसी हो सकती हूँ. फिर से पहले जैसा यौवन ग्रहण कर लूँगी । मेरे शरीर में कोई अन्तर नहीं आयेगा. चिन्ता नहीं करो, समय शीघ्र ही बीत जायेगा. मुझे लगता है, सचमुच एक दिन हम स्वतंत्र होंगे." (6)

गालव के मन में अपनी प्रतिज्ञापूर्ति के साथ एक स्वार्थ भाव भी है, जो माधवी के शरीर सौंदर्य पर आकृष्ट है. जब गालव को पता चलता है कि अपनी प्रतिज्ञापूर्ति के लिए माधवी का उपयोग करने के बाद भी वह अपना सौंदर्य वापस पा सकेगी, तो वह अंदर ही अंदर खुश हो जाता है.

माधवी, जो गालव को मन प्यार करती है, सोचती है कि गालव भी उसके शरीर से नहीं बल्कि उसकी आत्मा से प्रेम करता है. इस भ्रम में वह अपने प्रेम और निष्ठा को बनाए रखती है.

अयोध्या के राजा हर्यश्च को जब पुत्र की प्राप्ति होती है, तो माधवी अपने पुत्र और राजमहल की सुख-सुविधाओं को छोड़कर गालव के साथ फिर निकल पड़ती है. माधवी की यह निस्वार्थता और समर्पण उसकी चरित्र की महानता को दर्शाते हैं.

माधवी गालव से पूछती है कि अब उसे किस राजा के रनिवास में रहना होगा. गालव इस पर माधवी से पूछता है कि उसके पिछले राजा के रनिवास के दिन कैसे थे और राजा का व्यवहार कैसा था. यह दिखाता है कि गालव अपनी प्रतिज्ञापूर्ति के लिए माधवी को अन्य राजाओं के पास भेजने की योजना बना रहा है, जबकि माधवी की स्थिति और भावनाओं का उसे पूरी तरह से अहसास नहीं है.

गालव और माधवी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम और निष्ठा केवल शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ी होती है. साथ ही, यह भी स्पष्ट होता है कि स्वार्थी कारणों से किसी के त्याग और समर्पण का दुरुपयोग करना कितना अनुचित और अन्यायपूर्ण हो सकता है. यथा -

माधवी : अब कहाँ जाना होगा ?

गालव : मैंने पता लगा लिया है माधवी. यहाँ से अब हम सीधे काशी जायेंगे। काशी नरेश दिवोदास के पास भी अश्वमेधी घोडे हैं. महाराज का व्यवहार तुम्हारे प्रति कैसा रहा?

माधवी : वैसा ही जैसा राजाओं का होता है. सभी राजा कर्त्तव्य निभाते है. पहले कुछ दिन राज प्रसाद में, फिर रनिवास में डाल दी गयी थी. पर जब महाराज को पता चला कि मेरे बच्चा होनेवाला है तब राज्य भर के वैद्य और दासियों, बाँदियाँ मेरे इर्द गिर्द घूमने लगी (हँसती है) फिर धीरे धीरे विषाद में डूब जाते है. पर मैं जानती थी ये वस्त्र और आभूषण मेरे नहीं, राजा के हैं कि मेरी कोख से जन्म लेनेवाला बच्चा भी मेरा नहीं, राजा का होगा." (7)

माधवी की स्थिति यह दिखाती है कि कैसे राजाओं ने अपनी इच्छाओं और स्वार्थों की पूर्ति के लिए नारी का उपयोग किया. हर राजा, जो माधवी को प्राप्त करता है, उसे पहले कुछ समय के लिए विशेष ध्यान और सम्मान देता है, लेकिन फिर उसे रनिवास में डाल दिया जाता है. जब राजा को पता चलता है कि माधवी गर्भवती है, तो उसकी देखभाल में विशेष ध्यान दिया जाता है, लेकिन यह ध्यान केवल उस बच्चे के लिए होता है, जो चक्रवर्ती राजा बनने वाला है. माधवी हँसते हुए यह स्वीकार करती है कि वस्त्र, आभूषण, और यहाँ तक कि उसका बच्चा भी उसका नहीं, बल्कि राजा का है. यह हंसी के पीछे का दर्द और विषाद बहुत गहरा और मार्मिक है.

इस कथा में नाटककार भीष्म साहनी ने पुरुष वर्ग और शासक वर्ग की स्वार्थपरता और नारी के शोषण का स्पष्ट चित्रण किया है. पुरुषों के स्वार्थ के कारण, नारी को केवल एक साधन के रूप में उपयोग किया जाता है, चाहे वह अपनी इच्छाओं और भावनाओं का कितना भी त्याग क्यों न करे.

माधवी हमेशा गालव की प्रतिज्ञापूर्ति के बारे में चिंतित रहती है और इसे अपना लक्ष्य मानती है. वह गालव के प्रति निष्ठा और प्रेम के कारण अपने सुख-दुख की परवाह नहीं करती। दूसरी ओर, गालव अपनी प्रतिज्ञा की पूर्ति में इतना लीन है कि वह कभी भी माधवी के सुख-दुख के बारे में सोचता तक नहीं. यथा

गालव : कब वह दिन आयेगा, जब हम इस ऋण से मुक्त हो सकेंगे?

माधवी : मुक्त होने पर तुम क्या करोगे, गालव ?

गालव : में कुछ नहीं जानता माधवी, में केवल इतना जानता हूँ कि अभी छह सौ घोड़ों का प्रबन्ध करना बाकी है.

माधवी : (एकटक गालव के चेहरे की ओर देखती रहती है) तुम सारा वक्त अपनी गुरु दक्षिणा के बारे में ही सोचते रहते हो, गालव है न ? तुम्हें सारा वक्त यही चिंता लगी रहती है कि शेष घोडे मिलेंगे या नहीं. तुम्हारे लिए तो यह साल भर का समय काटना भी कठिन हो रहा होगा." (8)

जब माधवी अपनी दिल की बात गालव के सामने व्यक्त करती है और ऋण मुक्ति के बाद उसके साथ एक ज़िन्दगी बिताने की कामना रखती है, तो यह उसके सच्चे प्रेम और समर्पण को दर्शाता है. माधवी की यह इच्छा केवल उसकी अपनी खुशी के लिए नहीं, बल्कि गालव के साथ जीवन बिताने की उसकी गहरी इच्छा का प्रतीक है.

हालांकि, गालव माधवी को अपनी ऋणमुक्ति का मात्र एक माध्यम समझता है. उसके मन में माधवी के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है, बल्कि वह केवल अपनी प्रतिज्ञापूर्ति की चिंता करता है. गालव माधवी को झूठी तसल्ली देते हुए कहता है कि वह उसे सुखी देखना चाहता है, लेकिन यह केवल एक छलावा है.

माधवी का उत्तर गालव के इस झूठे आश्वासन पर और पूरे स्वार्थी समाज एवं रिश्तों पर एक तीखा प्रहार है. वह अपने उत्तर में शायद इस बात को व्यक्त करती है कि कैसे पुरुषों और समाज ने हमेशा नारी के त्याग और समर्पण का दुरुपयोग किया है. उसका उत्तर यह दर्शाता है कि वह इस समाज की स्वार्थपरता और असंवेदनशीलता को समझती है और इसके खिलाफ अपनी आवाज उठाती है.

माधवी का यह प्रहार केवल गालव पर नहीं, बल्कि उस पूरे समाज पर है, जो नारी को एक साधन मात्र समझता है और उसकी भावनाओं और इच्छाओं को अनदेखा करता है. यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम और निष्ठा का सम्मान करना चाहिए और किसी भी व्यक्ति के त्याग और समर्पण का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए.

यह कथा न केवल प्राचीन काल की वास्तविकताओं को उजागर करती है, बल्कि आज के समाज के लिए भी एक महत्वपूर्ण संदेश है.

यथा –

माधवी : मुझे सुखी देखना चाहते है ? (मुस्कुराती है) मेरे पिता भी मुझे सुखी देखना चाहते थे. अयोध्या नरेश भी मुझे सुखी देखना चाहते थे। (हँसकर) चारों और से मुझे सुख ही सुख मिल रहा है. सुख की वर्षा हो रही है. (9)

माधवी की हँसी एवं उत्तर स्वार्थ समाज के मुँह पर थप्पड़ जैसा है. माधवी अपने बच्चे को लेकर परेशान है. उसका मन उस बच्चे को बहुत चाहता है. यहाँ भी गालव अपनी स्वार्थपरता दिखाता है.

यथा -

गालव : उसे तुम अपना बच्चा क्यों समझती हो, माधवी ! तुमने तो राजा को एक राजकुमार जुटाया है, बस यही हमारा अनुबन्ध था.

माधवी : न जाने जब मेरा बेटा चक्रवर्ती राजा बनेगा तो मैं कहाँ पर होऊँगी तब हम कहाँ होंगे गालव ? (10)

चक्रवर्ती की माँ का स्थान बहुत ऊँचा एवं आदरणीय है. लेकिन माधवी अपनी भविष्य के अंधकार एवं अनिश्चता के बारे में पूरी तरह बोधवती है. फिर भी वह गालव से कोई शिकायत नहीं करती.

अयोध्या से काशी जाते समय बीच बीच में माधवी को अपने बच्चे का याद आती रहती है. इस पर गालव उसे दुर्बल नारी पुकारता है. तब माधवी अत्यधिक भावावेश में उत्तर देती है.

यथा -

माधवी : तुम सदा दायित्व की बात करते रहते हो, गालव ! तुम यही कहना चाहते हो कि मैं कर्त्तव्यपरायण नहीं हूँ. (गालव चुप रहता है) एक कर्त्तव्य मेरे पिता का, एक कर्त्तव्य मुनिकुमार गालव का, दोनों कर्त्तव्य मेरे माध्यम से पूरे हो रहे है. फिर भी मैं कर्त्तव्यपरायण नही हूँ, दुर्बल हूँ. पिता ने मुझे सौंप कर अपना कर्त्तव्य निभा दिया, और मुनिकुमार ने घोडे बटोरकर अपना कर्त्तव्य पूरा कर दिया. एक दानवीर बन गया, दूसरा अदर्श शिष्य. और माधवी ? मोह की मारी माधवी कर्त्तव्य से गिर गयी. वह किसी बड़े काम का दायित्व वहन नहीं कर सकती. यही ना? (11)

राजा पुत्र लाभ के लिए मात्र स्त्रियों को अपना अंतपुर में रखती है. इसमें राजा का स्वार्थपरता मात्र निहित है. जिन स्त्रियों से राजा के सन्तान या पुत्रलाभ नहीं हुई, उनकी स्थिति अत्यंत दयनीय है. महल की दीवारों के पीछे उन्हें भोजन तक के लिए कोई नहीं पूछता है. यह वास्तव में उसका भ्रम है. बच्चे के प्रति स्नेह माधवी को दुर्बल बना देती है. उसकी मातृ हृदय रोती है. पर जल्दी ही वह अपना दायित्व के प्रति सजग हो जाती है और गालव से अपनी चंचलता के लिए क्षमा भी माँगती है.

यथा -

माधवी : (सहसा चुप हो जाती है और कुछ देर तक चुप बनी रहती है. फिर सहसा सिहर उठती है) तुम ने बच्चे का रोना सुना, गालव ?

गालव : नहीं तो, माधवी यहाँ तो कोई बच्चा नहीं रोया. तुम्हें फिर से भ्रम हुआ है.

माधवी : मैं अपने आनेवाले बच्चे का रोना सुन रही थी, गालव. (अत्यंत व्याकुल होकर) ओ गालव, तुमने मुझे किस जलती आग में झोंक दिया है ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाडा था ? मैंने अपने पिता का क्या बिगाड़ा था (रोती है, थोड़ी देर बाद सामान्य होने पर) क्षमा करो गालव ! मैं सचमुच बडी दुर्बल हूँ. मैं स्वयं अपनी दुर्बलता पर लज्जित हूँ. चलो गालव, जहाँ ले चलोगे चलूँगी. तम्हीं मेरे भाग्य हो गालव तुम्ही मेरी नियती हो. (12)

अयोध्या नरेश के बाद काशी नरेश दिवोदास भी पुत्र की कामना से माधवी को अपने निवास में रखते हैं, और वहाँ भी माधवी एक पुत्र को जन्म देती है. गालव को फिर से दो सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़े प्राप्त होते हैं. इसके बाद, गालव माधवी को भोजनगर के वृद्ध राजा उशीनर के पास सौंपता है, जहाँ भी माधवी एक पुत्र को जन्म देती है और गालव को फिर से दो सौ अश्वमेध यज्ञ के घोड़े प्राप्त होते हैं.

जब गालव को यह पता चलता है कि बाकी के दो सौ घोड़े कहीं भी नहीं हैं, तो माधवी स्वयं गुरु विश्वामित्र के पास जाती है. वह अपने प्रेमी गालव के लिए गुरु विश्वामित्र के सामने बहुत विनती करती है. यह घटना माधवी के प्रेम, समर्पण, और त्याग को स्पष्ट रूप से दर्शाती है.

माधवी का यह समर्पण और विनती केवल गालव के प्रति उसके प्रेम का प्रमाण नहीं, बल्कि उसकी महानता और निस्वार्थता का प्रतीक भी है. वह अपने प्रेम और कर्त्तव्य के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार है, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो.

गालव की स्वार्थपरता और माधवी के निस्वार्थ प्रेम के बीच का यह द्वंद्व इस कथा का मुख्य आकर्षण है. माधवी का त्याग और समर्पण एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि सच्चे प्रेम और निष्ठा का सम्मान किया जाना चाहिए.

यथा

माधवी : महाराज, मैं उसी भाँति आपकी आज्ञा का पालन करूँगी, जिस भाँति तीन राजाओं के रनिवास में करती रही हूँ. मैं विशिष्ट लक्षणोंवाली हूँ, महाराज आपको भी मुझसे पुत्रलाभ होगा. मुझे ग्रहण कर आपको पश्चाताप नहीं होगा, महाराज सभी राजा मेरे साथ प्रसन्न थे. सभी मुझे अपने रनिवास में रखना चाहते थे. पुत्रलाभ होने पर आप गालव को गुरु दक्षिणा से मुक्त कर दें. (13)

पहले तो विश्वामित्र अपना दम्भ छोड़ने को तैयार नहीं था. लेकिन अंत में माधवी के निस्वार्थ प्रेम के आगे वह अपना हार स्वीकर करता है. विश्वामित्र माधवी से कहता है कि गालव बड़ी हठी एवं दंभी युवक है. लेकिन सब जानते हुए भी माधवी उसे प्यार करती है. यथा

विश्वामित्र : वह (गालव) बडा दम्भी युवक है. हठी और मनमानी करनेवाला. क्या तुम अभी तक उसे पहचान नहीं पायी हो ?

माधवी : जानती हूँ, महाराज.

विश्वामित्र : फिर जानते समझते हुऐ भी तुम उसकी सहायता करना चाहती है ?

माधवी : वह गालव है, महाराज. (14)

विश्वामित्र माधवी की निस्वार्थता और समर्पण से प्रसन्न होकर गालव को गुरु दक्षिणा से मुक्त कर देते हैं. यह गालव के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि वह अपने कर्त्तव्य से मुक्त हो जाता है, लेकिन उसकी स्वार्थपरता का परिणाम सामने आता है.

ययाति के आश्रम में माधवी का स्वयंवर और गालव का दीक्षान्त समारोह दोनों एक साथ हो रहे हैं. ययाति और गालव, दोनों ही बहुत खुश हैं. ययाति को दानवीर के रूप में सम्मान मिलता है और गालव अपने गर्व का अनुभव करता है. दोनों ने अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए माधवी को माध्यम बनाया, और अब वे अपने-अपने उद्देश्यों की पूर्ति से संतुष्ट हैं.

लेकिन जब गालव माधवी को देखता है, तो उसे एहसास होता है कि माधवी का सौंदर्य नष्ट हो चुका है. वह उसे अधेड़ उम्र की अनाकर्षक स्त्री लगने लगी.

गालव को चुपचाप देखकर माधवी कहती है: गालव, मैंने अपना सब कुछ खोकर तुम्हारे लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया. मैंने तुम्हारे स्वार्थ और कर्त्तव्य को पूरा करने के लिए अपने प्रेम, अपने सौंदर्य, और अपने अस्तित्व को त्याग दिया. तुमने मुझे कभी मेरे प्रेम और निष्ठा के लिए नहीं, बल्कि एक साधन के रूप में देखा. आज जब तुम मुझे देख रहे हो, तो शायद तुम्हें एहसास हो कि सच्चा प्रेम और निष्ठा केवल बाहरी सुंदरता में नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में होते हैं.

माधवी के ये शब्द गालव के स्वार्थपरक दृष्टिकोण और उसकी असफलता को उजागर करते हैं.

यथा

माधवी : क्यों गालव, तुम्हारे चेहरे पर कैसी निराशा फैल गयी है ? मैं इतनी कुरूप हो गयी हूँ क्या ? (हँसकर) और तुम सौन्दर्य का उपसाक कब थे? तुम तो कर्त्तव्य के उपासक हो ना ? क्यों गालव ? क्या मैं सचमुच बहुत कुरूप हो गयी हूँ ? पर तुम्हारी प्रतिज्ञा भी तो इतनी आसान नहीं थी, ना. तुम कुछ भी बोलते क्यों नहीं ?

गालव : तुम्हें तो चिर कौमार्य का वर मिला हुआ है माधवी. तुम तो प्रसव के बाद भी युवति बन रह सकती हो.

माधवी : मैंने सोचा, गालव के पास जा रही हूँ तो जैसी हूँ, वैसी ही जाऊँगी. गालव से क्या छिपाना ? (15)

यहाँ माधवी गालव से कुछ भी छिपाना नहीं चाहती. वह गालव के शरीर या बाह्य सौन्दर्य को नहीं बल्कि उसकी आत्मा को चाहती है. पर गालव अपनी मन की बात माधवी से छिपाता है. वह माधवी के बाह्य सौन्दर्य को निभाना चाहता है. अपने प्रतिज्ञापूर्ति के बाद उसमें माधवी के प्रति भोग लालसा मात्र है. अपने प्रेमी की स्वार्थ की पूर्ति पर माधवी ने क्या क्या नष्ट सही है इसकी वह परवाह नहीं करता. फिर से अनुष्ठान करके युवति बनने के लिए माधवी तैयार नहीं होती. अब गालव किसी भी तरह माधवी से छुटकारा चाहता है वह कहता है कि माधवी अपने को स्वतंत्र समझे.

यथा -

गालव : माधवी, हम जिस काम के लिए मिले थे, वह संपन्न हो चुका है. मैं भी गुरु भार से मुक्त हूँ, और तुम भी ......

माधवी : मैं तुम्हारा अभिप्राय नहीं समझी, गालव! तुम क्या कहना चाहते हो?

गालव : मैं चाहता हूँ, तुम अपने को स्वतन्त्र समझो.

माधवी : (गालव का अभिप्राय कुछ कुछ समझती हुई) तुम मुझे छोड़ना चाहते हो क्या ?

गालव : ऐसा नहीं है, माधवी, पर मैं तुम्हारे मार्ग में बाधा नहीं बनना चाहता. यहाँ तुम्हारे लिए बड़े-बड़े योग्य वर आये हुए हैं. (16)

यहाँ माधवी गालव की मन की कालापन पहचान लेती है. गालव माधवी को न स्वीकारने के लिए अनेक कारण ढूंढता है.

यथा

गालव : मैं धर्म और नैतिक मर्यादाओं का उल्लंघन नहीं कर सकता. मैं विवश हूँ.

माधवी : कौन सी मर्यादायें गालव ? तुम किस मर्यादा का उल्लंघन कर रहे हो ?

गालव : तुम मेरे गुरु के आश्रम में रह चुकी हो.

माधवी : इससे क्या ? मैं तीन राजाओं के रनिवास में भी तो रह चुकी हूँ वह सब तो तुम्हारी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए था.

गालव : पर जो स्त्री मेरे गुरु के आश्रम में रह चुकी हो, उसे मैं अपनी पत्नी कैसे मान सकता हूँ ?

माधवी : गालव, गालव, तुम सीधी बात क्यों नहीं करते? दिल में तुम्हारे वासनाएँ कुलबुलाने लगी है, ऊपर से तुम आदर्शों और मर्यादाओं की बात करते हो. (17)

यहाँ गालव आधुनिक मनुष्य की स्वर्थपरता का प्रतीक है. माधवी सब कुछ जानते हुए भी अपने प्रेम में विवश है.

वह गालव से कहती है -"तुमने केवल एक ही व्यक्ति से प्रेम किया है, और वह अपने आपसे. पर मैं तुम्हें पहचानते हुए भी नहीं पहचान पायी.” (18)

अंत में माधवी गालव को अपने से 'स्वतंत्र' करती है. वह कहती है- “संसार बडा विशाल है, गालव, उसमें निश्चय ही मेरे लिए कोई स्थान होगा." (19)

भीष्म साहनी के 'माधवी' नाटक में स्वार्थपरता का चित्रण अत्यंत मार्मिक और सजीव है. इस नाटक में राजनीतिज्ञों, राजाओं और साधारण जन की स्वार्थपरता को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है, वह समाज के गहरे नैतिक और भावनात्मक द्वंद्व को उजागर करता है.

ययाति की स्वार्थपरता स्पष्ट है जब वह अपनी पुत्री माधवी को दान में देता है. उसका मुख्य उद्देश्य यश और स्वर्ग की प्राप्ति है. वह अपनी पुत्री की इच्छाओं और भावनाओं को अनदेखा करता है और उसे गालव को सौंप देता है.

ययाति का यह व्यवहार यह दर्शाता है कि सत्ता और यश की प्राप्ति के लिए वह अपने परिवार के सदस्यों को भी त्यागने से नहीं हिचकिचाता. राजा हर्यश्च, दिवोदास और उशीनर जैसे राजाओं की स्वार्थपरता तब सामने आती है जब वे माधवी को केवल अपने पुत्र की प्राप्ति के लिए स्वीकार करते हैं. वे माधवी को केवल एक साधन के रूप में देखते हैं और उसका उपयोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए करते हैं. गालव की स्वार्थपरता भी स्पष्ट है. वह अपनी प्रतिज्ञापूर्ति के लिए माधवी को विभिन्न राजाओं के पास भेजता है. वह माधवी के प्रेम और निष्ठा को अनदेखा करता है और केवल अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए उसे एक साधन के रूप में उपयोग करता है.

गालव माधवी के त्याग और समर्पण का सही मूल्य नहीं समझता और अंततः उसकी स्वार्थपरता का परिणाम उसे अकेलेपन और आत्मग्लानि में धकेल देता है. माधवी का चरित्र नाटक में एक प्रतीकात्मक स्वरूप लेता है, जो नारी के त्याग, समर्पण और उसकी अनदेखी को दर्शाता है. वह अपने प्रेम और निष्ठा को बार-बार साबित करती है, लेकिन उसे हर बार स्वार्थी पुरुषों और समाज के द्वारा उपयोग किया जाता है.

भीष्म साहनी ने 'माधवी' नाटक के माध्यम से समाज के स्वार्थपरता की गहरी आलोचना की है. नाटककार ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि स्वार्थपरता, चाहे वह किसी भी रूप में हो, समाज और संबंधों को कैसे नष्ट कर सकती है. नाटक में माधवी के माध्यम से यह संदेश देता है कि सच्चे प्रेम, निष्ठा और त्याग का सम्मान किया जाना चाहिए और किसी भी व्यक्ति को केवल एक साधन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

संदर्भ

1.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 17 & 18

2.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 27

3.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 28

4.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 35

5.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 36

6.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 36

7.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 51

8.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 52

9.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 52

10.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 52

11.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 54 & 55

12.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 56 & 57

13,माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 80

14,माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 81

15.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 90

16.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 92

17.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 93

18.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 94

19.माधवी – भीष्म साहनी – पृ.सं. 96

 


 

 

 

 

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