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मोहन राकेश के नए नाट्य-प्रयोग

मोहन राकेश के नए नाट्य-प्रयोग प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू स्रवंति मई – 2006                भारतीय या पाश्चात्य नाट्य परंपरा में बीज नाटक का संकेत प्रात्प नहीं होता. अभी तक हिंदी नाट्यालोचन में भी इसका स्वरुप स्पष्ट नहीं हो पाया है. वस्तुतः “ बीज-नाटक ” यह नाम स्वयं मोहन राकेश का दिया हुआ है जिस में एबसर्ड नाटक जैसी कुछ विशिष्टताएँ प्राप्त होती हैं. मनोविज्ञान के आधार पर बीज-नाटक की आंतरिक संरचना को समझा जा सकता है. मनोवैज्ञानिक मानता है कि जिन बातों को हम सोचते व करते है, उसका “ बीज-भाव ” हमारे मन में दबा होता है. उदाहरणार्थ आत्महत्या कोई भी हठात् नहीं करता उसका भाव उपचेतन में दबा होता है . पर कभी क्षणिक आवेग पाकर अचानक उभर आता है. मनुष्य की बहुत बाह्य क्रियाओं का मूलाधार “ बीज-भाव ” है, अतः इसी भाव की नाट्य प्रस्तुति ही बीज नाटक है. जिन क्रिया-प्रक्रियाओं को हम सामजिक दबाव, नैतिक मर्यादाओं शालीनता आदि के कारण अभिव्यक्त नहीं कर पाते, सतत दबाते रहते हैं वे ही बातें कभी-कभी अनायास किसी बाह्य शारीरिक चेष्टा, ध्वनि व्यापार अथवा असंदर्भित शब्दावली या प्रसंगरहित बडबडा