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कोमल गांधार में चित्रित “गांधारी” के विभिन्न आयाम

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शब्द विधान ISSN : 2394 - 0670 अंतर्राष्ट्रीय त्रैमासिक अनुसंधान पत्रिका January -March & April - June 2015 कोमल गांधार में चित्रित “ गांधारी ” के विभिन्न आयाम प्रो.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू      आधुनिक युग में विज्ञान के विकास से प्राप्त वैज्ञानिक चिंतन-पध्दति के कारण अंग्रजों की सभ्यता और संस्कृति के प्रभाव के कारण नारी जीवन में काफी बदलाव आया.   नारी के अपने दृष्टिकोण में, मूल्य चिंतन में भी परिवर्तन आया.   अब वह भी वैयक्तिक स्वतंत्रता की महत्ता को पहचान कर मनोवांचित दिशा में अग्रसर हो रही है.   पर नारी जीवन की यह विडंबना है कि पुरुष सत्तात्मक समाज में पारिवारिक जीवन में भी नहीं वैयक्तिक जीवन में भी शोषण का शिकार हुए बिना अंतर्बाह्य यातनाओं से ग्रस्त हुए बिना अपनी कोई विशेष छवि इतिहास के पत्रों पर अंकित करने में सफल नहीं है, चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित, उच्च वर्ग की हो या निम्न वर्ग की. नाटककार ड़ॉ. शंकर शेष ने कोमल गांधार नाटक के माध्यम से भारतीय समाज में परंपरा से ग्रस्त हुई नारी जीवन की आंतरिक एवं बाह्य स्थिति से संबंधित विभिन्न पक्षों का चित्रण अत्यंत सफ

रंग शिल्पगत प्रयोगधर्मिता और लहरों के राजहंस में अभिनय की कुशलता

Sankaly ISSN : 2277-9264 July - September 2014 रंग शिल्पगत प्रयोगधर्मिता और   लहरों के राजहंस में अभिनय की कुशलता प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू अभिनय की दृष्टि से मोहन राकेश कृत “ लहरों के राजहंस ” एक विशिष्ट रचना है.   इस नाटक की कथावस्तु, पात्र-योजना, संवाद एवं भाषा-शैली सभी अभिनय के अनुकूल है.   अभिनेयता नाटक का अनिवार्य गुण है.   नाटक जब तक अभिनेय बना रहता है तब तक उसकी सार्थकता है.   अभिनेयता की कीमत पर नाटक को सफल कहना कोई अर्थ नहीं रखता है.   “ लहरों के राजहंस ” का अभिनय भी कई बार हुआ है और उस में सफलता की गंध भी मिलती है, अभिनय बने रहने के लिए किसी भी नाटक को वस्तु का व्यवस्थित संगठित और आवश्यक विस्तार पूर्ण होना पहली शर्त है. इस दृष्टि से देखे तो नाटक की वस्तु में कहीं कोई शिथिलता नहीं है.   यह प्रत्येक घटना और परिस्थिति में सुसंबध्द है.   अन्विति उसकी विशेषता है.   तीन अंकों में जो कथा सिमटा हुआ है वह पूरी तरह श्रृंखलित और पुष्ट है.   नाटक का आकार संक्षिप्त है.   प्रथम अंक में नंद और सुंदरी की कथा को प्रस्तुत करते समय यह संकेत भी दिया गया है कि नंद गौतम

द्रौपदी के चरित्र को नए सिरे से प्रकाश में लाने का प्रथम प्रयास Sahitya-Sethu

Sahitya-Sethu ISSN : 2348-6163 July - September 2015 द्रौपदी के चरित्र को   नए सिरे से प्रकाश में लाने का प्रथम प्रयास प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू द्रौपदी उपन्यास में आचार्य लक्ष्मी प्रसाद ने द्रौपदी के पौराणिक मिथक के द्वारा नारी अस्मिता का प्रश्न उठाते हुए, समकालीन परिप्रेक्ष्य में नारी की वास्तविक स्थिति उद्घाटित करने का सार्थक प्रयास किया है. इनके उपन्यास में सामाजिक प्रतिबध्दता, संघर्षधर्मी जिजीविषा, कटुता, विसंगति   समता तथा आर्थिक संकट से उत्पन्न जटिलताओं समस्याओं के मार्मिक चित्रण के साथ ही वर्तमान परिवेश की जबर्दस्त पकड महाभारतकालीन मिथक के माध्यम से मिलती है.   यथा “ पाँच बलवान व श्रेष्ठ पुरुषों की पत्नी होकर भी तुमने अनेक कष्ट झेले.   भरी सभा में एक क्षुद्र से अपमानित हुई.   मेरे पुत्र भी तुम्हें बचा नहीं पाये. ”(1) माँ के आशीर्वाद से पाँच पतियों में बंटी हुई द्रौपदी की मनः स्थिति वास्तव में किसी नारी की सहनशीलता की पराकाष्ठा तो है ही.   धर्मराज ने मृदस्वर में पूछा “ क्या तुम ऐसा सोच रही हो तुम्हें अर्जुन ने जीता लेकिन मुझे भी विवाह करना पडा.