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ऐतिहासिक बोध के धरातल पर आधुनिकता की खोज : लहरों के राजहंस

ऐतिहासिक बोध के धरातल पर आधुनिकता की खोज   : लहरों के राजहंस                                      प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू पूर्णकुंभ जुलाई – 2002           नाटककार मोहन राकेश ने “ लहरों के राजहंस ” नाटक में राजकुमार नंद और उसकी पत्नी सुंदरी कथा के माध्यम से जन-मानस पर आक्रान्त विभिन्न दर्शनों के प्रभाव की तथा इस प्रभाव-ग्रहण से मुक्त रहने में मनुष्य की अस्वतंत्रता को रेखांकित करने का प्रयत्न किया है. इस नाटक में नंद के बौद्ध भिक्षु बनने और उसकी पत्नी सुंदरी के रुप गर्व की कथा कही गई है. कथा के इस क्रम में एक ओर नंद की बौद्ध भिक्षु के रुप में जीवन्त कथा है तो दूसरी ओर उसमें सौंदर्य की गगरी से छलकती कुछ बूँदें हैं जिसके छींटे पडते ही लेखक और पाठक दोनों ही आत्मविभोर हो उठे हैं. “ लहरों के राजहंस ” नाटक पूरी नाटकीयता के साथ मानव की अंतर्द्वन्द्वमयी आधुनिक भंगिमाओं को भी उजागर करता है तो दूसरी ओर ऐतिहासिक पात्रों को नए जीवन- सन्दर्भों और संबंधों में कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है. उस में वर्तमान युग के जीवनादर्शों और मूल्यों की प्रतिध्वनि भी सुनी जा सकती है.

సంపాదించే సతి

సంపాదించే సతి మణిపురి మూలం : డా. చోం. యామినిదేవి      मणिपूरि मूल : डॉ. चों. यामिनि देवी                     హిందీ అనువాదం : డా. ఈ. విజయలక్ష్మీ हिंदी अनुवाद : डॉ. ई. विजयलक्ष्मी                              తెలుగు అనువాదం : డా. ఎస్.వి.ఎస్.ఎస్. నారాయణ రాజు               तेलुगु अनुवाद : डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू       స్రవంతి, జూలై 2006         “ ఇంత ఆలస్యంగా ఎందుకు వచ్చావు ?” అని దేబేన్ అడిగాడు.   “ అమ్మకు ఒంట్లో బాగోలేదని తెలిసింది దాంతో ఆఫీసు నుంచి అమ్మదగ్గరకు వెళ్ళి వస్తున్నాను ” అని బినో జవాబిచ్చింది.   “ ఒకసారి అది ఒకసారి ఇది ఏదో వంక నీ ఇష్టమొచ్చినట్లు చేస్తున్నావు ”. “ అబద్ధం చెప్పటం లేదు అమ్మని రిక్షా గుద్దింది. ఇప్పటికీ ఆమె కాలి వాపు అలాగే ఉంది ” “ ఈరోజు సరే, నిన్నెందుకు ఆలస్యంగా వచ్చావు ?”   “ అసెంబ్లీ లో మా విభాగానికి సంబంధించిన ప్రశ్న అడిగారు. దానికి సంబందించిన జవాబు తయారు చేయటం కోసం ప్రమో, ఇబేయామియా మేమందరం ఉండవలిసి వచ్చింది. ఆలస్యమై నందున వారి వారి భర్తలు వచ్చి వాళ్ళను తీసుకోని వెళ్ళారు. నన్ను తీసుకురావడానికి నీవెందు

प्रतीकात्मक और अभिव्यंजनापूर्ण भाषा शैली : लहरों के राजहंस

प्रतीकात्मक और अभिव्यंजनापूर्ण भाषा शैली : लहरों के राजहंस प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू स्रवंति - सितंबर   2006                    “ लहरों के राजहंस ” नाटक की भाषा सहज सरल और औपचारिकता से रहित है. रंगमंच को गति देनेवाले बिंब से संयोजित शब्दों का प्रयोग किया गया है. भाषा और संवादों को पात्रों की शारीरिक क्रिया से समन्वित रखने की विशेषता मोहन राकेश के इस नाटक में भी परिलक्षित है. पात्र के व्यक्तित्व, स्थिति और माँग के अनुसार भाषा स्वयं ढलती चली जाती है. जिस तरह संवाद नाटक के प्राण तत्व है, उसी तरह भाषा भी नाटक में एक विशेष अर्थवत्ता रखती है. नाटक में भाषा का जो स्वरुप संभव है. जिसे नाटक की सफल भाषा कहा जा सकता है वह बोलचाल की ही भाषा है. नाटक की मूल संवेदना के अनुसार भावों और विचारों के भार को वहन करने की क्षमता यदि भाषा में है तो उसे श्रेष्ट और सफल भाषा कहा जा सकता है. “ लहरों के राजहंस ” की भाषा व्यंजक शब्दावली से पूर्ण है. उस में पात्रों के ऊहा-पोह और विचार-विमर्श के भार को वहन करने की पूर्ण क्षमता है. “ नंद ” एक निरीह पात्र है, उसको जो भाषा प्राप्त है, उस में औ