“आज की पीढ़ी में निष्ठा कम है”





आज की पीढ़ी में निष्ठा कम है

तेलुगु मूल : गाँधीवादी कवि श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति से एम. गिरिधर राव जी का साक्षात्कार

                 हिंदी अनुवाद : डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
 
पूर्णकुंभ - दिसंबर 2001

      आधुनिक कवियों में गाँधीवादी कवि श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति जी अस्सी वर्षें की पूर्ति करने के बाद भी एक शारीरिक पीढ़ाओं से नतमस्तक होते हुए भी अत्यन्त निष्ठा के साथ काव्यामृत को सदा के लिए जनता को दे रहे हैं. कुछ दिन पहले अप्पीकट्टल गाँव में उनको देखने के लिए जाते समय उन्होंने कहा कि हर दिन बुढ़ापा बढ़ता जा रहा है. पत्नी और बेटे बीच-बीच में देते हुए ग्लूकोज़ का सेवन करते ही मेरे सारे प्रश्नों का उत्तर दिया है.

एम. गिरिधर राव : गाँधीवादी सिद्धान्त आज भी आचरण योग्य हैं ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति : गाँधीजी के सिद्धान्तों में दो प्रधान है – सत्य और अहिंसा. ये दोनों हमेशा हर समय के लिए आवश्यक है. सत्य का आचरण करने से झूठ, रिश्वत, ठग आदि आने की संभावना भी नहीं है. अहिंसा को पालन करने से हमेशा परोपकार चलता रहता है. विश्वजनीन प्रेम का उद्भव होता है. सत्य और अहिंसा जहाँ रहता है वहाँ हिंसा, द्वेष आदि की जगह ही नहीं है. गाँधीजी के ये दोनों सिद्धान्त मेहनत के साथ जीवनयापन करते हुए त्याग भावना से जीने का उपदेश दे रहे हैं. इसलिए अब भी गाँधीवादी सिद्धान्तों की आवश्यकता है.

एम. गिरिधर राव : अध्यापकीय जीवन में आप ने किस प्रकार का आनंद पाया है ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति  : अध्यापक के रुप में मैंने तीस साल काम किया था. वेतन की दृष्टि से तो संतोष नहीं है. लेकिन आज की तुलना में उन दिनों विद्यार्थियों में अध्यापकों के प्रति सद्भावना तथा अनुशासन अधिक रहता था. एक समर्थ एवं विद्यार्थियों के  हित के लिए काम करनेवाले अध्यापकों के प्रति ईमानदार रहकर अपने आप को ठीक करते थे. अपने विद्यार्थी समाज में नाम कमाते समय जो गौरव मिलता था, वह खुद का गौरव मानता था. शिष्यों की उन्नति ही अध्यापकों का एकमात्र लक्ष्य था. आज भी उस प्रकार के अध्यापक और शिष्य हैं लेकिन कम.

एम. गिरिधर राव : कला कला के लिए या समाज के लिए ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति :  अपने से समाज को अलग सोचनेवाले व्यक्ति के लिए  कविता लिखने का कोई अधिकार नहीं है. तिक्कनाजी ने कहा कि - आन्ध्र जनता के आनंद के लिए मैं महाभारत लिख रहा हूँ. नन्नय्याजी ने कहा कि – जग हित के लिए मैं महाभारत लिख रहा हूँ. एर्रना ने कहा कि – साधु जन के आनंद के लिए मैं महाभारत लिख रहा हूँ. ये सारी बातें आज भी प्रासंगिक है. उत्तम कवि यह मानता है कि अपनी कविता का मार्ग भी प्रजा सेवा के मार्गों में एक है. समाज में प्रचलित विभिन्न भ्रष्टाचारों को देखकर मन में उत्पत्र पीडा को दूर करने के लिए पद या गीत के रुप में अभिव्यक्त करता है. वही कविता है, वही समाज के लिए संदेश है.

एम. गिरिधर राव : लेकिन अनेक कवि श्रृंगार से काव्यों को भर दिया, इस पर आपका क्या विचार है ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति: समाज में सुख और शांति रहते समय जनता के साथ कवि भी इन सब को प्राप्त करने के कारण अपने काव्यों में उन्ही अनुभूतियों को व्यक्त करते हैं. आन्ध्र साहित्य में विजयनगर साम्राज्य के समय को इसके प्रमाण के रुप में लिया जा सकता है. इसलिए उस समय में श्रृंगार का विपुल वर्णन हुआ है. समाज में अनुराग कम होकर बाधाग्रस्त होने से वीर रस या करुण रस का उद्भव होता है. इसी सिलसिले के हैं रामायण और महाभारत.

एम. गिरिधर राव : आपके जीवन को प्रभावित करनेवाले विशिष्ठ व्यक्तियों या घटनाओं के बारे में बताईए ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति : मेरे जीवन पर सब से बडा प्रभाव डालनेवाली बातों में मेरे पिताजी की ईमानदारी एक है. वे अत्यन्त गरीबी में जीवनयापन करते हुए भी अपने मित्र के द्वारा दिये गये 30 किलो सोना मित्र के मांगते ही लौटा दिया. इस से पता चलता है कि मनुष्य को किसी भी चीज की अपेक्षा न करते हुए जीवन जीना है. मेरे गाँव कावुरु सन् 1920 से ही गाँधीजी के रचनात्मक कार्यक्रमों में लगा हुआ था. वहाँ के विनयाश्रम में गाँधी, विनोबा, राजेंद्र प्रसाद जैसे महापुरुष आए थे. अनेक महापुरुषों के आशीर्वचनों से विख्यात आश्रम है विनयाश्रम. मेरे जीवन में इसका बहुत बडा योगदान है, गाँधी जी पर कविता लिखने का मुख्य कारण मेरे गाँव कावुरु होना ही है.

एम. गिरिधर राव :आप ग्रांथिक (परिनिष्ठत) भाषा में ही कविता क्यों
करते हैं ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति :  मेरे समय में ज्यादा ग्रांथिक (परिनिष्ठत) भाषा ही चलता था. लगभग सन् 1940 तक समाचार पत्र भी ग्रांथिक में ही चला था, तब तक मैंने कवि के रुप में ख्याति प्राप्त की . बाद में उसके लिए अभ्यस्त होने के कारण मैंने कविता उसी भाषा में आद्यांत लिखा. मैंने कविता पद्य में लिखी है और पद्य के लिए व्यावहारिक भाषा काम नहीं आती है. आजकल युवा पीढी गद्य कविता या वचन कविता लिख रहे हैं. इन में श्री.श्री (श्री रंगम श्रीनिवास राव) जैसे ख्याति प्राप्त कवि भी हैं. मार्ग जो भी हो, यदि उस में भाव की गहराई होने से ही वह कृति कालजयी होगी.

एम. गिरिधर राव : आज की कविताएँ कैसी हैं ?

श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति : हमारे पीढ़ि की तुलना में आज की पीढ़ी में निष्ठा कम है. कुछ-न-कुछ लिख रहा है लेकिन दम नहीं है. 
  
श्री तुम्मल सीताराम मूर्ति जी की कृतज्ञता अर्पित करके आशीर्वाद लेकर बाहर आ गया.  
 
                           
       

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