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Showing posts from April, 2023

Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 40 | सूखहिं अधर जरइ सबु अंगू ।मनहुँ द...

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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 39 | आनहु रामहि बेगि बोलाई। समाचार तब...

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आधुनिकता बोध, इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन

  आधुनिकता बोध , इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू पूर्णकुम्भ साहित्यिक मासिक पत्रिका अगस्त, 2002 आषाढ का एक दिन" नाटक में मिथक और इतिहास जो बाद में केवल मिथक बन जाता है , का उपयोग किया गया है. इस में मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध के साथ-साथ रोमांटिक बोध भी पूरी तरह उभरा है. इस में कालिदास का परिवेश से कट जाने का संकेत है , कृतिकार के अपवादित होने का संकेत है , उसके असाधारण होने का संकेत है. कश्मीर की स्थिति के अस्थिर होने में समकालीन संकेत ' है , राजनीति और साहित्य में होड़ का संकेत है. घर की खोज या आत्मीयता की खोज का संकेत है. ‘‘आषाढ का एक दिन" नाटक की मूल चेतना तो रोमानी ही है , किन्तु कहीं-कहीं इसी रोमानियत के पार्श्व में आधुनिक बोध आ खड़ा होता है. कालिदास और मल्लिका का संपर्क और नैकट्य इसी बात की गवाही देता है. दोनों में एक दूसरे के प्रति प्रेम का जो सूत्र है वह बिना कटे-टूटे एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला गया है. मल्लिका कालिदास की अनुपस्थिति में भी उपस्थिति का आभास करती है. उसे बराबर यही लगता रहा है कि कोई

Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 38 | पछिले पहर भूपु नित जागा। आजु हमह...

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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 37 | राम राम रट बिकल भुआलू ।जनु बिनु ...

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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 36 | चहत न भरत भूपतहि भोरें। बिधि बस ...

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Sri Ram Charit Manas, Ayodhya kand 35 | ब्याकुल राउ सिथिल सब गाता । करिन...

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महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : 'आधे-अधूरे'

  महानगरीय संत्रास-बोध एवं पारिवारिक तनाव के चित्रण में सहायक : ' आधे-अधूरे ' डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू   स्रवंति द्विभाषा मासिक पत्रिका फरवरी , 2006   ‘आधे-अधूरे’ नाटक में देश-काल एवं वातावरण का चित्रण पूर्णतः स्वाभाविक यथार्थपरक , सुंदर , वास्तविक और कलात्मक बन पड़ा है , इस पर विचार करते समय हमें उसके वातावरण के रूप को देखना पड़ता है. वातावरण दो प्रकार का होता हैं और कुशल नाटककार को दोनों रूपों का समन्वित प्रस्तुतीकरण करना होता है , ये दो रूप हैं आंतरिक रूप और बाह्य वातावरण. ‘आधे-अधूरे’ नाटक में महानगर में जीनेवाले एक मध्यवर्गीय परिवार के तनाव और उसकी विघटनशीलता का चित्र प्रस्तुत किया गया है इसलिए वातावरण के उक्त दोनों रूपों को इस में कलात्मक रूप से चित्रित किया गया है. आंतरिक वातावरण में घटनाओं और अंतः परिस्थितियों का चित्रण किया जाता है तथा पात्रों की मानसिक स्थिति उनके हावभाव तथा अंतर्द्वन्द्व का चित्र प्रस्तुत किया जाना होता है. “आधे-अधूरे" नाटक में मोहन राकेश ने आंतरिक वातावरण की सृष्टि अनेक रूपों में की है. कहीं घटनाओं अथवा परिस्थितियों का चित्रण करके उन्होंने आ