आधुनिकता बोध, इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन

 


आधुनिकता बोध, इतिहास बोध और रोमानियत के मिश्रित संदर्भ : आषाढ़ का एक दिन

डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

पूर्णकुम्भ

साहित्यिक मासिक पत्रिका

अगस्त, 2002

आषाढ का एक दिन" नाटक में मिथक और इतिहास जो बाद में केवल मिथक बन जाता है, का उपयोग किया गया है. इस में मध्यकालीन बोध और आधुनिक बोध के साथ-साथ रोमांटिक बोध भी पूरी तरह उभरा है. इस में कालिदास का परिवेश से कट जाने का संकेत है, कृतिकार के अपवादित होने का संकेत है, उसके असाधारण होने का संकेत है. कश्मीर की स्थिति के अस्थिर होने में समकालीन संकेत' है, राजनीति और साहित्य में होड़ का संकेत है. घर की खोज या आत्मीयता की खोज का संकेत है. ‘‘आषाढ का एक दिन" नाटक की मूल चेतना तो रोमानी ही है, किन्तु कहीं-कहीं इसी रोमानियत के पार्श्व में आधुनिक बोध आ खड़ा होता है. कालिदास और मल्लिका का संपर्क और नैकट्य इसी बात की गवाही देता है. दोनों में एक दूसरे के प्रति प्रेम का जो सूत्र है वह बिना कटे-टूटे एक सिरे से दूसरे सिरे तक चला गया है. मल्लिका कालिदास की अनुपस्थिति में भी उपस्थिति का आभास करती है. उसे बराबर यही लगता रहा है कि कोई है, कहीं कोई है जो उससे दूर नहीं है और हर पल उसके साथ है. मल्लिका कालिदास की अनुपस्थिति में पन्नों को सिलती है और मिलन प्रसंग में यह संकेतित करती है कि "मैंने इन्हें इस उम्मीद से सँवारा है कि तुम इन पर एक महाकाव्य लिखोगे." (1) यह रोमांटिक बोध है. सारे नाटक में अथ से इति तक जो रोमानी संस्पर्श है, और काफी गहरा संस्पर्श है, वह इसे रोमांटिक बोध से जोड़ देता है. यह बोध गहरा इसलिए है कि इस में सिर्फ मल्लिका का ही प्रेम-भाव शामिल नहीं है, वरन कालिदास की प्रेमिल रंगीनी भी शामिल है। उसका कथन है "मेरे भीगे होने की चिन्ता मत करो... जानती हो, इस तरह भीगना भी जीवन की एक महत्वाकांक्षा हो सकती है? वर्षों के बाद भीगा हूँ. अभी सूखना नहीं चाहता. चलते-चलते थक गया था. कई दिन ज्वर आता रहा. परन्तु इस वर्षा से जैसी सारी थकान मिट गई है…" (2) उस में सत्ता और प्रभुता का मोह छूट गया है. वह मातृगुप्त के कलेवर से मुक्त हो गया है. वह पुनः कवि कालिदास के कलेवर में प्रवेश करना चाहता है.  राज्य का अधिकार और वहाँ की सुख-सुविधायें त्यागकर पुनः अपनी प्रेयसी मल्लिका के साथ जीवन बिताने की कामना को लेकर वह मल्लिका के यहाँ पहुँचता है। रोमांटिक भाव-बोध की दृष्टि से नाटककार ने इन प्रसंगों की योजना मर्मस्पर्शी ढंग से की है. कालिदास में जो पीडा-बोध है, टीस है और एक तरह की बिखरी हुई टूटन है वह भी उसके प्रेमिल अहसास की गवाही देती है. जो अभाव उसे वर्षों से सालते रहे, वे मल्लिका के पास लौटकर और भी बड़े हो गये हैं. इस तरह कालिदास और मल्लिका के प्रेम में जो भाव है, जो प्रेमिल रूमानियत है वह रोमानी बोध की गवाह है. इतने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि इस कृति में आधुनिक बोध नहीं है. आधुनिक बोध के स्तर इसी बोध के भीतर से उद्घाटित होते हैं. कालिदास के वापिस लौटने में, मल्लिका की प्रतीक्षाकुलता में और हर बार एक नई उमंग के साथ कालिदास की स्मृति में जो बोध उभरता है, वह किसी भी  प्रकार आधुनिक बोध के पहलुओं से कहा हुआ नहीं है. आधुनिक बोध के आयाम तो उस समय स्पष्ट होते हैं जब कालिदास घर लौट आता है और अपने ही घर में अपने को अजनबी ऊबा हुआ, अपरिचित और आत्मनिर्वासित महसूस करता है. कालिदास लौट आता है, यह लौटना उसकी विवशता का परिणाम है. उसके लौटने में एक थकान है, एक टूटन है और  बिखरे व टूटे हुए पुरुष का विगलित अहम् है जो अभावों की मार से चूर-चूर हो गया है. इन स्थितियों में आधुनिकता के आयाम है. कालिदास वही है पहले का कालिदास, किन्तु फिर भी कुछ ऐसा है जो वह नहीं है. अतः जो है और जो नहीं है के संगठित भाव मूल्यों में ही आधुनिकता की पहचान संभव है. “सच कहूँ तो वह व्यक्ति हूँ जिसे मैं स्वयं नहीं पहचानता... यथार्थ है कि मैं यहाँ हूँ. दिनों की यात्रा करके थका, टूटा हारा हुआ यहाँ आया हूँ कि एक बार यहाँ के यथार्थ को देख लूँ..... मैंने नहीं सोचा था कि यह घर कभी मुझे अपरिचित भी लग सकता है. यहाँ की प्रत्येक वस्तु का स्थान और विन्यास इतना निश्चित था. परन्तु सब कुछ अपरिचित लग रहा है.... और तुम भी अपरिचित लग रही हो.'' (3) कालिदास अपनी प्रेयसी मल्लिका तथा उसके घर की प्रत्येक वस्तु को उसी रूप में देखना चाहता है, जिस रूप में उनसे वे परिचित थे. कालिदास समय के व्यवधान को और उसके विघटनकारी रूप का अंदाजा नहीं लगा सकता है. कालिदास के उक्त शब्द उसकी आधुनिक बोधमयी स्थिति के ही सूचक हैं. आधुनिक जीवन की यन्त्रणामय स्थिति ही यह है कि मनुष्य अपने से बेखबर रहकर अपने ही लिए अपरिचित हो जाय, सब कुछ पाकर भी खोया सा रहे. अपने से अपरिचय, आत्मनिर्वास और अपने ही घर में अजनबीयत का माहौल महसूस करना आधुनिक विसंगतियों को सूचना देनेवाला आधुनिक बोध ही है. अतः स्पष्ट है कि इस नाटक में आधुनिक बोध के सूचक विविध संदर्भ हैं “आश्चर्य, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा कि तुम तुम हो और मैं जो तुम्हें देख रही हूँ, वास्तव में मैं मैं ही हूँ.” (4) मल्लिका का यह कथन रोमानी तत्व से भरपूर होकर भी आधुनिक मध्यवर्गीय नारी की विसंगतियों में संगति खोजने को व्याकुल नारी का यथार्थ  परिदृश्य ही है.

 

इस नाटक का नायक कालिदास सचमुच एक कलाकार मात्र नहीं है, वरन् एक आधुनिक व्यक्ति का प्रतीक है, एक ऐसे व्यक्ति का जो अनेक विडंबनाओं और आन्तरिक यन्त्रणाओं का समूह बनकर रह गया है. कालिदास परिवेश से प्रतिबद्ध नहीं है, वह स्थिर होकर भी अस्थिर है और अपने घर की खोज में व्यस्त होकर भी अजनबी बनकर रह गया है. वह अपने घर में ही था तो निर्वासित महसूस करता है या मेहमान. पात्रों के नाम तो ऐतिहासिक हैं या कुछेक ऐसे भी हैं जो इतिहास बोध का अहसास कराते हैं, किन्तु उनका जो व्यक्तित्व है, जो कालिदास के पारंपरिक या ऐतिहासिक अर्थ या स्वरूप को ही स्वीकार करने के आदि हो गए हैं वे यह भूल जाते हैं कि एक कलाकार के भीतर चल रही विषम प्रक्रिया और उसके समसामयिक व परिस्थितिक बिखराव में ही उसकी अर्थवत्ता है. इस संबंध में स्वयं रचनाकार की स्वीकारोक्ति भी है कि – “परन्तु नाटक की रचना एक समसामयिक परिस्थिति को उसकी अपनी नाटकीयता में अभिव्यक्ति करने के लिए हुई है." (5) मल्लिका में जो आन्तरिक बिखराव है, जो संगति में असंगति का प्रारूप है वह भी एक बिखरी हुई नारी का संदर्भ है. अतः इन पात्रों की स्थिति और परिकल्पना में नाटककार ने आधुनिक बोध को ही वाणी दी है. इस में आधुनिकता और रोमानियत का मिला-जुला ताना-बाना है.

 

कालिदास का चरित्र नाम के सहारे भले ही इतिहास बोध का बोधक हो, अपने इस नाटक में तो वह समकालीन संदर्भों में ढ़ला हुआ है. उसका संकट एक समकालीन कलाकार का संकट है और मल्लिका का संकट छायावादी है, प्रेमिल है. अतः इस कृति की समकालीनता या आधुनिकता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है. कालिदास सर्जनशील शक्तियों के प्रतीकत्व का भार ढो कर आन्तरिक द्वन्द्वों की ओर संकेत देता है. आज का समकालीन लेखक जिन द्वन्द्वों और तनावों से गुजर रहा है, उन्हीं तनावों से कालिदास गुजरा है या कहें कि वह वैसे गुजरने के लिए बाध्य है. आज चीजें बिखर रही हैं, प्रतिमाएँ टूट रही हैं. तोडने की शक्तियों का विकास ही हुआ है और इसके लिए समकालीन जीवन जिम्मेदार है. कालिदास भी टूटता है, बिखरता है, मल्लिका भी टूटती-बिखरती है, किन्तु इस सब में भी ये दोनों पात्र प्रहार सहने की शक्ति में भरपूर हैं. आधुनिकता की मैत्री संबंधों और आकारों से होती है. विषय कुछ भी हो, स्थिति कुछ भी हो फिर भी संबंध और आकार गहरे हो सकते हैं. मल्लिका और कालिदास के संबंध से ही इसे भी समझा जा सकता है. आधुनिकता का संबंध संबंधों और आकारों से गहरे स्तर पर होता है. अतः कालिदास और मल्लिका से भी है. इस तरह 'आषाढ़ का एक दिन' नाटक में आधुनिकता की पकड़ भी उतनी ही गहरी है, जितनी की रोमानियत की.  

 संदर्भ : 

1. मोहनराकेश -आषाढ़ का एक दिन पृ.सं. 111

2. मोहनराकेश - आषाढ़ का एक दिन पृ.सं. 103

3. मोहनराकेश - आषाढ़ का एक दिन पृ.सं. 102, 103, 104

4. मोहनराकेश -आषाढ़ का एक दिन पृ.सं. 102,

5. मोहनराकेश - आषाढ़ का एक दिन पृ.सं. 8

 

 

 

 

 


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