नाटककार रवीन्द्रनाथ : एक अवलोकन

 


नाटककार रवीन्द्रनाथ : एक अवलोकन

एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

कवीन्द्र रवींद्र का भारतीय साहित्य पर प्रभाव

वर्ष - 2016

ISBN: 978-93-5258-615-8

 

आम तौर पर रवींद्रनाथ टैगोर का नाम लेते वक्त सब से पहले कवि रवींद्रनाथ टैगोर कहते हैं. क्योंकि कवि के रूप में इतना विख्यात है कि सारी दुनिया में 'गीतांजलि' के माध्यम से ही परिचय प्राप्त किया. इसका अर्थ यह नहीं है कि वे सिर्फ कवि मात्र ही है. मैं यहाँ हिंदी में भी इस प्रकार का उदाहरण देना चाहता हूँ. जयशंकर प्रसाद को भी कवि के रूप में ही अधिकांश लोग पहचानते हैं. वे सिर्फ कवि ही नहीं कथाकार और श्रेष्ठ नाटककार भी थे. लेकिन 'कामायनी' कार के रूप में ही दुनिया ने उनको पहचान लिया. उसी प्रकार कवि रवींद्रनाथ टैगोर भी है. रवींद्रनाथ कवि तो है ही. इसके साथ-साथ साहित्य की विभिन्न विधाओं में सृजनधर्मी रचनाओं के द्वारा बंगला साहित्य को कितनी श्रीवृध्दि की है कि निम्न उदाहरण से अवगत होता है. यथा- रवींद्रनाथ ने बंगला भाषा की अभिव्यक्ति की सामर्थ्य इतनी अधिक बढ़ा दी कि यह कहा जा सकता है कि किसी एक लेखक ने अकेले किसी भाषा की अभिव्यक्ति, सामर्थ्य इतनी नहीं बढ़ाई. रवींद्र गद्य-रीति का यह मौलिक गुण है कि वे केवल बुध्दि को उद्बुध्द करके निवृत्त नहीं होते, बल्कि मन के गहन अंतः पुर में प्रविष्ट होकर चित्त की गंभीरतम अनुभूति को जागृत कर देते है.

इसी कारण रवींद्रनाथ की गद्य शैली में वाक्यालंकार के बीच में उत्प्रेक्षा, उपमा, रूपक और विरोधाभास का प्रयोग सबसे अधिक है. इन में भी उत्प्रेक्षा की ही प्रधानता है. रवींद्रनाथ के गद्य में आदि से अंत तक उत्प्रेक्षा प्रधान उक्तियों का बोल बाला है. '' (1) हिंदी में जयशंकर प्रसाद जी उच्चकोटि के कवि तो है ही निर्विवाद रूप से वैसे ही कवि रवींद्रनाथ जी भी उच्चकोटि के कवि तो है ही परंतु एक सफल नाटककार भी है. “वाल्मीकि प्रतिभा" नामक गीतनाट्य से लेखन का आरंभ किया. बाद में उन्होंने "राजा ओ रानी", "विसर्जन और मालिनी" आदि नाटकों को लगातार एक के बाद एक लगातार सृजन किया. राजा ओ रानी ऐतिहासिक है. नाटकीय दृष्टि से "विसर्जन और मालिनी"  में अपेक्षाकृत नाटकीय द्वंद अधिक है. उक्त दोनों नाटकों की विशेषता यह है कि पूर्ण कथा को रूढ़िवाद के विरुद्ध प्रस्तुत किया गया है. एक ओर सनातन रूढ़िवादी धर्म है तो दूसरी और मानववाद है. 'विसर्जन' का रघुपति 'मालिनी' का क्षेमंकर और 'विसर्जन' का जयसिंह व 'मालिनी' का सुप्रिय लगभग समान ही है. "मालिनी" में एक राजकन्या का आंतरिक द्वंद्व का सफल चित्रण किया है.

बाद में रवींद्रनाथ टैगोर ने "गांधारीर आवेदन' 'सती' 'नरकवास' 'लक्ष्मी का परीक्षा' और 'कर्ण-कुती संवाद' आदि नाटकों का सृजन किया. इन नाटकों में भी मानव धर्म की साहित्य के बारे में ही पूर्ण रूप से चित्रण किया गया है. 'लक्ष्मी परीक्षा नाटक में दास्य का श्रोत भी... की नई अंतर्निमित है. ये नाटकों में कविता के साथ- साथ नाटकीयता का  भी प्रचुर मात्रा में विभाजन है. 'गांधारी आवेदन' नाटक में धृतराष्ट्र के चरित्र में एक और मानव धर्म के प्रति आकर्षण और दूसरी ओर पुत्र स्नेह का द्वंद्व चलता है. गांधारी में यह द्वंद्व प्रत्यक्ष रूप से ऐसी प्रवृत्ति अपना चुका है कि स्नेह में तो वह संतान के साथ है पर उसका मन धर्म के साथ है. गांधारी में इस द्वंद्व का अंत इस प्रकार परिवर्तित होता है कि वह पुत्रों को चाहते हुए भी आशीर्वाद पांडवों को ही देती है. परंतु धृतराष्ट्र का यह द्वंद्व अंत तक ऐसे ही रह जाता है. सती नाटक में भी पितृ स्नेह और धर्म के द्वंद्व के बारे में सफल चित्रण प्रस्तुत किया है रवींद्रनाथ टैगोर ने.

"कर्ण कुंती संवाद" में भी पुत्र स्नेह और धर्म के द्वंद्व का चित्रण तो स्वभाविक ही है. क्योंकि कर्ण वीर धर्म का प्रतीक है. 'तासेर देश' नाटक में व्यंग्य की प्रधानता है और नौकर शाही तथा रुढिवादिता पर करार व्यंग्य कसी गई है. सब एक विशेष ढंग से बोलते, उठते बैठते हैं. कोई, घडी, तिडी, छक्का पंजा है, तो कोई गुलाम, बावराइ बेगम पर ऐसे देश में भी अंत तक दो व्यक्ति आते है और वह अपने साथ मुक्ति का गीत और साथ ही नियमों के प्रति विद्रोह ले आते हैं.

रूप 'रथेर रशि'( रथ की रस्सी) हुआ. इसे श्री निहार रंजन ने आधुनिक लोकतांत्रिक भारतीय गण मन का घोषणा पत्र बतलाया है. इस प्रकार कवि रवींद्रनाथ टैगोर के नाटकों में तत्कालीन भारतीय परिवेश में स्थित विभिन्न अंधविश्वासों तथा रूढ़ियों के खिलाफ लिखकर जनता में जागृति पैदा करने का प्रयास किया है. रवींद्रनाथ टैगोर एक उच्चकोटि के कवि ही नहीं समाज के प्रति समर्पित सच्चे समाज सुधारक व नाटककार भी थे.

संदर्भ

1. बंगला साहित्य गद्य पृ.सं. 157, बंगला साहित्य दर्शन- मन्मथनाथ गुप्त पू.स. 169 से उद्धृत.

                           

 


Popular posts from this blog

वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी

“कबीर के दृष्टिकोण में गुरु”

लहरों के राजहंस और सुंदरी