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Showing posts from December, 2020

आधुनिक चाणक्य श्री पी.वी. नरसिंहाराव (संपादकीय)

  आधुनिक चाणक्य श्री पी.वी. नरसिंहाराव ( संपादकीय )                                                          प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू स्रवंति, द्विभाषा मासिक पत्रिका. जनवरी 2005.             महान विद्वान तथा बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी श्री पामुलपर्ति वेंकट नरसिंहाराव जी का जन्म आंध्रप्रदेश राज्य के वरंगल जिले के नरसंपेट मंडल स्थित लक्केनपल्ली में 28 जून, 1921 को हुआ था. उनके पिता का नाम सीतारामा राव और उनकी माता का नाम रुक्माबायम्मा था. वंगर गाँव के पामुलपर्ति रंगाराव ने श्री पी.वी. नरसिंहाराव को गोद लिया था. पी.वी. नरसिंहाराव ने एल.एल.बी.की परीक्षाओं में स्वर्णपदक प्रात्प किया. श्री राव ने वर्ष 1939 में अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की. विभित्र पदों को श्री राव ने ग्रहण किया कहने के बजाय सारे पद श्री राव को ग्रहण कर अपने आप में गौरवान्वित हो गए कहना समुचित है.        श्री राव एक राजनीतिज्ञ ही नहीं साहित्यिक मर्मज्ञ भी थे. विशेषकर राष्ट्रभाषा हिंदी प्रचार प्रसार के लिए प्रतिबद्ध एक हिंदी सेवक थे. ज्ञानपीट पुरस्कार ग्रहीता एवं विख्यात कवि, लेखक, कवि सम्राट विश्वनाथ सत

आर्थिक सुधारक डॉ. मनमोहन सिंह (संपादकीय)

  आर्थिक सुधारक डॉ. मनमोहन सिंह ( संपादकीय )                                                        प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू स्रवंति, द्विभाषा मासिक पत्रिका. जून 2004.             दुनिया में सब से बडा प्रजातंत्र देश भारत के प्रधान मंत्री बनना तो साधारण विषय नहीं है. बहुत विचित्रि की बात यह है कि अब तक अधिकांश प्रधान मंत्री ऐसे ही बन गए जो अपने जीवन में कभी भी प्रधान मंत्री बनने की उम्मीद नहीं थी. डॉ. मनमोहन सिंह राज्य सथा में काँग्रेस सदस्य हैं परंतु वे एक मात्र गैर राजनीतिक नेता हैं.                 डॉ. मनमोहन सिंह का जन्म 26 सितंबर 1932 में गाह (आज पाकिस्तान) नामक गाँव में हुआ. उनके पिता का नाम गुरु मुख सिंह और माता का नाम अमृत कौर. प्राथमिक शिक्षा अमृतसर में हुई. उस के बाद की शिक्षा चंडीगढ़ तथा लंदन में हुई. पंजाब विश्वविद्यालय में अर्थ शास्त्र के आचार्य के रुप में जीवन प्रारंभ किया. वे कभी भी पद के लिए कोशिश नहीं किया परंतु उनकी प्रतिभा एवं सूझ-बूझ के कारण ही विभिन्न पद ही उनका वरण किया कहना उचित है. डॉ. मनमोहन सिंह ने 1966 में यू.एन.सी.टी.ए.डी. में वित्तिय अधिका

तुलसी की भक्ति भावना (संपादकीय)

  तुलसी की भक्ति भावना ( संपादकीय )                                          प्रो.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू स्रवंति, द्विभाषा मासिक पत्रिका. जुलाई 2005.            तुलसी दास राम के अनन्य भक्त थे. उन्होंने एक राम गणश्याम हित् चातक तुलसीदास कहकर चातक को अपने भक्ति भाव का परस आदर्श माना है और अपने इष्ट देव के प्रति अनन्य प्रेम, अटूट श्रद्धा, परम विश्वास एवं गहन प्रीति, प्रतीती प्रकट करते हुए अपनी भक्ति भावना को प्रकट किया हैं. तुलसी की दृष्टि में राम के बराबर महान और अपने बराबर लघु कोई नहीं है. यही एक परम भक्त का दैन्य भाव है.             राम सो बडौ है कौन, मोसो कौन छोटो.              राम सो खरो है कौन, मोसो कौन खोटो..         तुलसी के राम अज, सच्चिदानंद, अरुप, अनाम व्यापक, विश्वरुप आदि तो हैं ही परंतु भक्तों के कष्ट निवारण हेतु   भूमि का भार हरने को लिए तथा गो द्विज का हित करने के लिए अवतार ग्रहण किया करते हैं. अतः वे निराकार एवं निर्गुण होकर भी भक्तों के लिए साकार एवं सगुण हो जाते हैं.         तुलसी की यह दृढ़ आस्था है कि शरणागति और भक्ति ही सब विकारों को मिटाकर मृत्यु

रंगमंच के अनुकूल भाषा का सफलतम प्रयोग : कोर्ट मार्शल

  रंगमंच के अनुकूल भाषा का   सफलतम प्रयोग : कोर्ट मार्शल   प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू   स्रवंति मासिक   पत्रिका सितंबर 2019.   ISSN 2582-0885          भाषा मनुष्य के मनोविकारों को अभिव्यक्ति करने का सशक्त माध्यम है. नाटक में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है. भाषा के माद्यम से ही नाटककार अपने उद्देश्य एवं विचारों को दर्शकों तथा पाठकों तक संप्रेषित करते हैं. इस नाटक में भाषा का सशक्त एवं सफल प्रयोग हुआ है.कोर्ट मार्शल ' नाटक के लिए पात्रों के भाषा एक अदालती रूप में होना है.   सभी सेना के ऊँचे किस्म के अफसर हैं.स इसलिए अंग्रेज़ी भाषा का भी प्रयोग काफी हुआ है. यहाँ हर पात्र अभ्यस्त है । जायज़ है कि अंग्रेज़ी में ही बात करेंगे. यथा – “ सूरत सिह :   डॉट ट्राई दू टीच दिस कोर्ट द आर्मी लॉ ! " (1)   सलाहकार जज : “ . . . . . . । इट इज़ हिज़ ड्यूटी टू ओपेन फायर एंड किल । (2)   कपूर :   नो सर ! ही ओपण फायर विदाऊट चैलेंजिग । (3)   नाटककार ने अंत तक पूरी इमानदारी से भाषा का प्रयोग किया है.   नाटक में अधिकतम अदालती भाषा का प्रयोग हुआ है.   स्वदेश दीपक च