रंगमंच के अनुकूल भाषा का सफलतम प्रयोग : कोर्ट मार्शल
रंगमंच के अनुकूल भाषा का सफलतम प्रयोग : कोर्ट मार्शल
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
स्रवंति
मासिक
पत्रिका
सितंबर 2019.
ISSN 2582-0885
भाषा मनुष्य के मनोविकारों को अभिव्यक्ति करने का
सशक्त माध्यम है. नाटक में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान है. भाषा के माद्यम से ही
नाटककार अपने उद्देश्य एवं विचारों को दर्शकों तथा पाठकों तक संप्रेषित करते हैं.
इस नाटक में भाषा का सशक्त एवं सफल प्रयोग हुआ है.कोर्ट मार्शल ' नाटक के लिए पात्रों
के भाषा एक अदालती रूप में होना है. सभी
सेना के ऊँचे किस्म के अफसर हैं.स इसलिए अंग्रेज़ी भाषा का भी प्रयोग
काफी हुआ है. यहाँ
हर पात्र अभ्यस्त है । जायज़ है कि अंग्रेज़ी में ही बात करेंगे. यथा –
“सूरत सिह : डॉट ट्राई दू
टीच दिस कोर्ट द आर्मी लॉ ! " (1)
सलाहकार जज : “ . . . . . . । इट इज़ हिज़ ड्यूटी टू ओपेन फायर एंड
किल ।(2)
कपूर : नो सर ! ही
ओपण फायर विदाऊट चैलेंजिग । (3)
नाटककार ने अंत तक
पूरी इमानदारी से भाषा का प्रयोग किया है. नाटक में अधिकतम अदालती भाषा का प्रयोग हुआ है. स्वदेश दीपक चरित्रों के मानसिक द्वन्द्व दिखाने
और नाटकीयता को उभारने के लिए उचित भाषा का प्रयोग किया है. विभिन्न चरित्रों की स्वभावगत विशेषता उनकी भाषा
शैली से झलकता है. कोर्ट मार्शल ' में पात्रानुकूल
भाषा का सफल प्रयोग हुआ है. कड़ियल कर्नल
सूरत सिंह की भाषा में उनके स्वभाव के अनुसार गुस्सा , कड़वाहट भरी भाषा का
प्रयोग किया गया. उनके चरित्र को दिखाने
के लिए वह नाटक के आरंभ में ही अपने परिचय इस प्रकार देते है. यथा
कर्नल सूरत सिंह :
" . . . . . . . . . . . दादी बताया करती थी कि हमारे पूर्वजों के दोनों
हाथों में तलवारें होती थीं । नंगी तलवारें । एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में पानी
के प्याले वाली बात को न कभी उन्होंने समझा और न कभी स्वीकारा । शायद हमारे वंशवालों
ने दया और क्षमा शब्द पोंछकर मिटा दिए थे । और मैं ! मैं न कभी क्षमा करता हूँ , न ही किसी तरह की
दया । "(4)
कैप्टन कपूर के घमंड और अकड़ भरी चरित्र को भी
भाषा प्रयोग से दर्शाया हैं. जैसे , . . .
“बिकाश राय : कैप्टन कपूर के बिलकुल सामने खड़े होकर उसकी छाती पर
लगे मैडल , पदक की तरफ इशारा
करते हुए ) यह पदक आपको किसलिए दिया गया ?
कैप्टन कपूर : आई गॉट दिस
मेडल फार ।
बिकाश राय : आप हिंदी में
जवाब दें ।
कैप्टन कपूर : ( सूरत सिंह की तरफ
देखकर ) सर ! मुझे हिंदी ठीक से बोलना नहीं आती । आई में बी अलाऊड टू स्पीक इन इंग्लिश
। । ( सूरत सिंह बिकाश राय की तरफ देखता है । छोटी सी छुप्पी । फिर बिकाश कुछ समझ
आ जाने की मुद्रा में ऊपर से नीचे सिर
हिलाता है । )
बिकाश राय : कैप्टन
बी . डी . कपूर , आपका जन्म कहाँ हुआ ?
कैप्टन कपूर : अमृतसर ।
बिकाश राय : और
पढ़ाई ?
कैप्टन कपूर : अमृतसर । बी ए . वहीं से किया ।
बिकाश राय : ओ ! आप बी . ए पास
हैं । बधाई । मैंने आपके प्रमाणपत्र , मेरा मतलब सार्टिफिकेट्स देखे हैं । आपने मैट्रिक और
बी . ए . में हिन्दी विषय लिया और पास भी हुए । फिर भी आप कहते हैं । हिन्दी ठीक
से बोलनी नहीं आती । स्ट्रेंज । मैं कलकत्ता में जन्मा , वहीं पढ़ा , फिर भी मुझे हिंदी
आती है । लिखनी भी और बोलनी भी । खैर , छोड़िए । तब तो जवानों से आप अंग्रेजी में बात करते
होंगे ! क्यों ? ठीक है न !
कैप्टन कपूर : टूटी - फूटी
हिंदी बोल लेता . . . . .
बिकाश राय : यह टूटी - फूटी
हिंदी क्यों होती है ? अपनी भाषा बोलने में
आप अपमानित, मेरा मतलब इन्सल्टेड महसूस करते हैं । क्यों ? ठीक है न !
कैप्टन कपूर : ऑफिसर हमेशा अंग्रेज़ी में बात करते हैं । अंग्रेजों
के टाइम से यह चल रहा है । सूरत
सिंह : कैप्टन !
अंग्रेज़ों का टाइम खत्म हुए बरसों बीत गए । लगता है , अभी उनका हँगोवर
खत्म नहीं हुआ ।“(5)
कोर्टमार्शल में
ज्यादातर अदालती और काननी , सेना से संबंधित
शब्दों से सही वातावरण का प्रस्तुतीकरण किया गया है जैसे कि कन्फ्रेंट, मुज़रिम , गार्ड ड्यूटी , रेजिमेंट , हादसा , कत्ल , इन्फेंट्री , मेडिकल , बखरबंद , होशो हवास , कातिलाना , जुर्म , इकबाल , गवाह , इंडियन आर्मी एक्ट 69, इंडियन पीनलकोड की
दफा 302 आदि. इन शब्दों के द्वारा अदालती वातावरण और उसके सविशेषता
को मंचीय सफलता मिलता है.
स्वदेश दीपक 26 साल तक अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे हैं. इस कारण उनके
लिखावट में अंग्रेज़ी शब्दों का मौजूदगी होना ही है. जैसे कि द डीलर्ज इन डैथ , द राइडर्ज. आफ डैथ , कोकाकोला प्रोडक्ट , द लायन विद
ग्रेनेडज़ , गिलटी ओर नॉट गिलटी , द हण्डर ऑफ सोल आदि
शब्द नाटक को अधिक रोचक बनाते हैं. नाटककार ने अनेक स्थानों पर अंग्रेज़ी के
मुहावरे और अंग्रेज़ी के प्रसिद्ध साहित्यकार शेक्सपीयर के हैमलेट की कुछ वाक्यों
का प्रयोग किया गया है जो उस दृश्य के लिए अधिक मार्मिक प्रस्तुत होता है जैसे कि
“ट्रूथ इज़ आल्वेज़ द
चाइल्ट आफ फ्यूचर " (6)
“ समथिंग इज़ रॉटन इन
द स्टेट ऑफ़ डेनमार्क । "(7)
इन सारे प्रयोगों से भाषा स्तर को ऊँचा
पहुंचाया है. इन सभी प्रयोगों के कारण
संवादों की बोधगम्यता और अर्थ ग्रहण क्षमता तेज़ हो गया है. इस प्रकार
नाटककार ने रंगमंच के अनुकूल भाषा का
प्रयोग अत्यंत सफलतापूर्वक किया है.
संदर्भ :
1.कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ . 38
2. कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ . 39
3. कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ . 40
4. कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ . 20
5. कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ . 80 - 81
6. कोर्ट मार्शल -
स्वदेश दीपक - पृ 33
7 . कोर्ट मार्शल - स्वदेश दीपक – पृ. 58