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Showing posts from April, 2018

लोकतांत्रिक और संसदीय विचारों के प्रतीक : राम

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लोकतांत्रिक और संसदीय विचारों के प्रतीक : राम प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू साहित्य और समकालीन चिंतन, 2017 ISBN no. 978-81-7965-282-4         “ संशय की एक रात ” काव्य के केन्द्रीय पात्र   “ राम ” है. राम का मानसिक संकट मूलत : उत्तरदायित्व का संकट है । इस काव्य के राम तो मात्र अपनी विडम्बनापूर्ण स्थिति पर सोचते – विचारते   हैं, लेकिन धीरे-धीरे इस तथ्य से पाठक अवगत होने लगता है कि राम की अपनी विडम्बना युग-जीवन की विडम्बना का स्वरूप ग्रहण कर चुकी है.   इसमें कवि ने पुराण कथा के मूल-स्वरूप को क्षति पहुँचाए बिना उसे युग-संदर्भ प्रदान कर दिया है. इस काव्य के राम मानव की सहज मानवता में विश्वास रखते हैं और उनकी आस्था है कि मानव को मानव से सहज मानवीय आधार पर ही सत्य की उपलब्धि हो, युद्ध आदि हिंसात्मक साधनों से नहीं.     “ संशय की एक रात ” काव्य के राम के मन में प्रश्न उठता है कि, क्या सारे शुभाशुभ कर्मों की परिणति युद्ध ही है ? व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए लोक चिंतक राम लोक की अवहेलना नहीं कर सकते.     कवि युद्ध को अस्वीकार करते हुए राम से कहलाता है कि--             

तेलुगु कथाकार बलिवाड़ कांताराव

तेलुगु कथाकार बलिवाड़ कांताराव        तेलुगु मूल : मधुरांतकं राजाराम       हिंदी अनुवाद : डॉ . एस . वी . एस . एस . नारायण राजू पूर्णकुंभ , जून 2000     “ प्रत्येक मानव , मानव सिंधु का एक बिंदु है। वह शेष जल से अलग नहीं हो सकता है। पानी में रहने में ही उसका अपना जीवन निहित है। सिंधु से अलग होकर बिंदु बाहर आने पर गिर जाता है। नीचे की रेत में मिलकर सूख जाता है। मनुष्य को मनुष्यों के साथ मिलकर रहना है , उनका साथ सुख और दुखों को बाँटना है ... ”   “ बहुत बडे गरीब देश में आशाओं को सीमा में रखकर गरीबों पर उच्च वर्ग द्वारा दया न दिखाने से , ऐसा लगता है कि अब देश ही नहीं है। पुराण और शास्त्र सब में सह मनुष्यों पर प्रेम ही दिखाया गया है और कुछ नहीं इस परम सत्य को न पहचाननेवाला अंधा है ... ”       ये विचार बलिवाड़ कांताराव की कहानी ‘ अंतरात्मा ’ में डॉक्टर कोदंडरामय्या के स्वगत कथन के रुप में व्यक्त किए गए हैं। अच्छी प्राक्टिसवाले बडे डाक्टर ने अपनी कनसल्टेशन फीस बढ़ाई थी। वह केवल अमीरों का डाक्टर था। गरीब चाहे कितने ही कष्ट में हों उन्हें देखना उसने कभी गवाय नही