पद्मभूषण डॉ. मोटूरी सत्यनारायण






पद्मभूषण डॉ. मोटूरी सत्यनारायण

                             डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

स्रवंति,  सितंबर 2002 - अप्रैल 2003
पद्मभूषण डॉ. मोटूरी सत्यनारायण जन्मशती विशेषांक


     दक्षिण भारत में ही नहीं संपूर्ण भारत देश में हिंदी प्रचार-प्रसार के बारे में बातचीत करना या कुछ लिखना आरंभ करे तो एक प्रचार-प्रसार सर्वस्व को याद किए बिना अधूरा रह जाता है। अपने संपूर्ण जीवन को हिंदी प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित किए है वह महान हस्ताक्षर। वह और कोई नहीं है, पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी हैं। हिंदी प्रचार-प्रसार सर्वस्व डॉ.मोटूरि जी का जन्म 2 फरवरी 1902 में आंध्र प्रदेश कृष्ण जिला के दोंडपाडु नामक गाँव में हुआ था। बचपन से राष्ट्र के प्रति प्रेम के कारण मछलीपट्टणम जातीय कलाशाला में शिक्षा-दीक्षा ली। दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना गाँधीजी के हाथों से हुई यह सर्वविदित विषय है। मगर सभा आज एक भव्य वटवृक्ष बन गयी। इस का मुख्य कर्त्ता-धर्त्ता तो निस्संदेह कह सकते हैं कि पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी हैं। श्री मोटूरि सत्यनारायण जी के बारे में आरिगपूडी रमेश चौधरी जी ने इस प्रकार लिखा है सत्यनारायण जी के पास कोई उपाधि नहीं है। वे किसी कालेज के स्नातक नहीं है। उनकी विद्वत्तता व विस्तृत ज्ञान पर, किसी शिक्षा संस्था की स्वीकृति मुद्रा नहीं है। वे स्वयं शिक्षित हैं, यद्यपि वे कुछ दिनों मछलीपट्टणम के जातीय कलाशाला में शिक्षित हुए हैं” (1) ( हिंदी प्रचार का इतिहास पृ. 51)

    सत्यनारायण जी ने हिंदी प्रचार-प्रसार को सिर्फ भाषा तथा संस्कृति को सीखने तक सीमित नहीं किया। आम तौर पर भाषाई आंदोलन तो भाषा तथा संस्कृति सक सीमित करके संकुचित दृष्टि कोण से देखा जाता है। मोटूरि जी अंग्रेजी के समान हिंदी भी आम आदमी के हर विषय में उपयोग करने लायक करने के पक्ष में थे। इस के बारे में स्वयं मोटूरि जी हिंदी प्रचार आज भी दक्षिण में जिंदा क्यों?” शीर्षक आलेख में इस प्रकार व्यक्त किया है भारत का सांस्कृतिक दर्पन सभी भारतीय भाषाओं में एक-सा मिल जाता है। सांस्कृतिक एकता के क्षेत्र में हिंदी भाषा के योगदान को जोडने पर मैंने कभी बल नहीं दिया। लेकिन मेरी इस दृष्टि को मेरे कई सहयोगी, मुझे मालूम है, पसंद नहीं करते। इसका अधिकांश कारण यह है कि भाषा का अध्ययन संस्कृति के साथ अधिक जुडा हुआ है, व्यवहार और विज्ञान के साथ कम। अंग्रेजी के अध्ययन के द्वारा व्यवहार तथा विज्ञान के क्षेत्रों में प्रगति ही नहीं की अनेकता में एकता को साध लिया। मेरा मानना था कि सार्वजनिक पैमाने पर व्यवहार के क्षेत्र में अंग्रेजी का स्थान हिंदी को ग्रहण करना चाहिए व्यवहार का मतलब प्रशासन, व्यापार, उद्योग धंधे, सार्वदेशिक जनतांत्रिक प्रवृत्तियाँ आदि है।”(2)

    प्रयोजनमूलक हिंदी के बारे में देश भर में आज विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कालेजों के पाठ्य प्रणाली में शामिल किया है। प्रयोजनमूलक हिंदी के बारे में प्रथम बार श्री गणेश किया है हिंदी प्रचार-प्रसार सर्वस्व मोटूरि सत्यनारायण जी। वर्तमान हिंदी की भूमिका पर विचार व्यक्त करते हुए प्रयोजनमूलक हिंदी शीर्षक आलेख में इस प्रकार लिखा है कि हिंदी को दो तरह की भूमिकाएँ निभानी हैं। पहले जहाँ वह शिक्षा का माध्यम चुनी गयी। हिंदी भाषा क्षेत्र में या जिस क्षेत्र में माना गया है। उस क्षेत्र में शिक्षा देनी है। दूसरी संघ राज्य में राजभाषा के माध्यम के रुप में सेवा करनी है। प्रांतीय भाषाओं के संसर्ग के साथ हिंदी का यह जो व्यवहारिक पक्ष है वही उसे पूर्ण रुप से योग्य समर्थ व मान्य बनाएगा। इस से संविधान में उल्लिखित सामासिक संस्कृति का विकास करने में हिंदी सक्षम होगी।”(3)

   मोटूरि जी एक प्रसिध्द वक्ता भी थे। हर विषय पर अपने ढंग से अपनी शैली में धाराप्रवाह वाकचातुर्य से भाषण देते थे। विभिन्न भाषाओं के ज्ञान के बारे में हिंदी प्रचार का इतिहास में मोटूरि सत्यनारायण जी के बारे में आरिगपूडि रमेश चौधरी ने इस प्रकार लिखा है कि सत्यनारायण जी तेलुगु भाषी है। हिंदी उनकी मातृ-भाषा-सी है। तमिल धडल्ले से बोलते हैं, कन्नड का ज्ञान रखते हैं, मलयालम समझते हैं। इनके अतिरिक्त मराठी, गुजराती, बंगाली भी जानते हैं। अंग्रेजी के ज्ञाता तो हैं ही।”(4)  (हिंदी प्रचार का इतिहास पृ.सं-51)

    मोटूरि सत्यनारायण बहुमुखी प्रज्ञा पुरुष थे। तेलुगु, हिंदी और अंग्रेजी के लेखक के रुप में मोटूरि सत्यनारायण का अपना एक विशिष्ट स्थान है। संपादक, पत्रकार, अनुवादक, निबंधकार के रुप में उनकी पहचान है। मोटूरि सत्यनारायण के बारे में पंडित बनारसीदास चतुर्वेदी ने इस प्रकार कहा है कि सत्यनारायण जी का उच्चारण इतना शुध्द है और वे ऐसी धारा प्रवाह हिंदी बोलते हैं कि किसी हिंदी भाषा-भाषी को यह शक भी नहीं हो सकता कि वे दक्षिण भारत के निवासी हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि वे परमात्मा की भौगोलिक भूल हैं, उनका जन्म आध्र के बजाय संयुक्त प्रांत में होना चाहिए था। ( हिंदी प्रचार का इतिहास पृ.सं-61) मोटूरि जी विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को व्यक्त किया है। वह हिंदी भाषा को मानव की संपूर्ण आवश्यकताओं के अनुरुप तैयार करने के लिए जीवन भर प्रयास किया है। मोटूरि जी के कुछ आलेखों का शीर्षक मात्र पढ़ने से ही उनके बारे में अवगत होता है।
अ)  भाषावर राज्य
1.     प्रजातंत्र राज्य में भाषावर राज्य
आ)संस्कृति
1. वाङ्मय और उसके वाहन
2. साहित्यिक समन्वय
3. हमारा सांस्कृतिक पुनरुत्थान
4. स्वतंत्र भारत के स्फूर्ति-स्त्रोत
5. दक्षिण की भक्ति परंपरा और सूरदास
6. ज्ञान-विज्ञान और जन-संस्कृति
) भाषा समस्या
1. जन गणना और जन-भाषाएँ
2. भारत के राज्य और भारतीय भाषाएँ
3. संघ भाषा हिंदी और संघ सरकार
4. राष्ट्र की भाषाएँ और राष्ट्रीयता
5. हिंदी का चतुर्मुखी रुप
6. हिंदूस्तानी का मसला
7. सामान्य भाषा और सामान्य लिपि
8. राजभाषा और राज सेवक
9. भारतीय भाषा पीठ चाहिए।
) आंध्र अभ्युदय
  1. भारत के नक्शे पर आंध्र राज्य
  2. आंध्र राज्य की जल-शक्ति”(5)
  (हिंदी प्रचार का इतिहास)
  संपूर्ण व्यक्तित्व के एक सफल नमूना है श्री मोटूरि सत्यनारायण जी। इस संदर्भ में मैं हिंदी प्रचार-प्रसार सर्वस्व पद्मभूषण डॉ. मोटूरि सत्यनारायण जी को श्रध्दा सुमन अर्पित कर रहा हूँ।    
   


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