वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी



University Hindi Journal
ISSN : 2347-9612
July-December 2014 


वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी
प्रो.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू
प्रयोजनमूलक हिंदी के आनुषंगिक संदर्भ  पहले पहल आनुषंगिक संदर्भ  क्या है?  आनुषंगिक का अर्थ है गौण रुप से साथ चलनेवाला, संबध्द चिकित्सा, संयुक्त, अनिवार्य, गौण, सदृश, आनुपातिक और Incidental, प्रयोजनमूलक हिंदी के आनुषंगिक संदर्भ  में वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी के बारे में चर्चा करने के पहले मैं प्रयोजनमूलक हिंदी और तकनीकी तथा वैज्ञानिक हिंदी के बारे में संक्षेप में बताना चाहता हूँ.
प्रयोजनमूलक हिंदी  से तात्पर्य है हिंदी का वह रूप जिसका हम अपने दैनिक जीवन  के निर्वाह के लिए उपयोग करते हैं. हमारे दैनिक जीवन में प्रशासनिक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में व्यवहार होनेवाले भाषा रूप को हम प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं.  हम अपने दैनिक जीवन में अपने सगे संबंधियों या मित्रों को पत्र लिखते हैं यो ईमेयल के द्वारा समाचार भेजते हैं.  ई मेयल आदि द्वारा संपर्क करते वक्त जिस भाषा का प्रयोग किया जाता है उसे प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं. व्यक्तिगत या संस्थागत पत्राचार या ईमेयल की भाषा के हम प्रयेजनमूलक हिंदी कहते हैं, क्योंकि उस में भाषा के निश्चित रूपों का हम प्रयोग करते हैं.  संचार के माध्यमों, कार्यालयों एवं विभिन्न अनुसंधान संस्थानों में व्यवहार किए जानेवाले हिंदी भाषा के रूप को हम प्रयोजनमूलक हिंदी कहते हैं, क्योंकि इन में भाषा के निश्चित रूपों का व्यवहार किया जाता है. प्रत्येक क्षेत्र के व्यवहार की भाषा के रूप में निश्चित होते हैं, जिनका प्रयोग निश्चित व्यवहार क्षेत्र में किया जाता है.  हिंदी में प्रयोजनमूलक शब्द functional language  के पर्याय के रुप में प्रयुक्त होता है.  जिसका अर्थ है जीवन की विविध विशिष्ट आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाई जानेवाली भाषा.
हिंदी भाषा  व्यवहार क्षेत्र में इतना अधिक प्रसार पा चुकी है कि आज हिंदी के प्रयोग की विभिन्न प्रयुक्तियों का प्रचलन बढ रहा है.  हिंदी भाषा की प्रयोग होनेवाली विभिन्न प्रयुक्तियों को ही हम प्रयोजनमूलक हिंदी के नाम से जानते हैं.  प्रयोजनमूलक भाषा का वह रुप है जिसका प्रयोग किसी प्रयोजन विशेष अथवा कार्य विशेष के संदर्भ में होता है.  भाषा विचार – संप्रषण का माध्यम है और विचार संप्रषण का संबंध किसी-न-किसी कार्य विशेष से अवश्य होता है.  प्रयोग के आधार पर भाषा के दो रुप माने जा सकते हैं – एक वह रुप जिसका प्रयोग सामान्य जन-जीवन में दैनिक कार्यों के संदर्भ में होता है और जिसका अभ्यास या ज्ञान कोई व्यक्ति सामान्य जीवन के परिवेश से ही प्राप्त कर लेता है.  इस रूप को सामान्य हिंदी कहते हैं.  दूसरा रूप वह है जिसका प्रयोग सामान्य जीवन के संदर्भों से भिन्न किन्हीं विशेष कार्यों के संदर्भों में होता है और जिसका अभ्यास या ज्ञान विशेष प्रयत्न से प्राप्त किया जा सकता है.  इस रुप को प्रयोजनमूलक भाषा कहते हैं. सामान्य हिंदी का प्रयोग प्रत्येक हिंदी भाषी करता है और दूसरी भाषा के तौर पर हिंदी सीखनेवाले भी  इस रुप की जानकारी पहले प्राप्त करते हैं.  किंतु विशेष संदर्भों के लिए उचित हिंदी शैली सामान्य हिंदी शैली से भिन्न प्रकार की होती है और हिंदी भाषी को भी यह हिंदी शैली विशेष प्रयत्नपूर्वक सीखना पडती है.  उदाहरण के लिए कार्यालय हिंदी, बैंक हिंदी, वाणिज्य – व्यापार की हिंदी और वैज्ञानिक एवं तकनाकी के अनुसंधान में प्रयुक्त हिंदी.
      वास्तव में विभिन्न व्यवसायों से संबंधित लोगों जैसे डाक्टर, साफ्टवेयर व्यवसायी, इंजीनियर, वैज्ञानिक क्षेत्र के सभी शाखा प्रशाखों से संबंधित सभी तकनीकी कार्य क्षेत्रों में प्रयुक्त भाषा ही प्रयोजनमूलक भाषा का रुप धारण करती है.  इसे ही डॉ. कैलाशचंद्र भाटिया कामकाजी हिंदी कहते हैं तो डॉ. रमाप्रसन्न नायक इस को व्यवहारिक हिंदी कहना अधिक उचित मानते हैं.  इस संदर्भ में सब से पहले यहाँ श्री मोटूरि सत्यनारायण जी को याद करना अत्यंत आवश्यक है.  वास्तव में प्रयोजनमूलक हिंदी के बारे में सबसे पहले उल्लेख किया है श्री मोटूरि सत्यनारायण जी ने.  मोटूरि सत्यनारायण जी और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार अभिन्न है.  अर्थात  इस प्रयोजनमूलक हिंदी का पूरा का पूरा श्रेय या योगदान पूर्णतः दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा को ही मिलता है.  प्रयोजनमूलक हिंदी के बारे में श्री मोटूरि सत्यनारायण जी के शब्दों में इस प्रकार है कि-जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उपयोग में लाईजानेवाली हिंदी ही प्रयोजनमूलक हिंदी है.
वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी
      वैज्ञानिक एवं तकनीकी हिंदी में विज्ञान एवं तकनीकी की विविध विधाओं में प्रयुक्त होनेवाले हिंदी का अध्ययन किया जाता है.  इस के अंतर्गत चिकित्सा, इंजनीयरिंग, संगणक, बढईगिरी, लुहार का कार्य तथा प्रेस, मिल आदि से संबंधित विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग होनेवाली तकनीकी भाषा आती है.  वैज्ञानिक एवं तकनीकी संप्रेषण में एक विशिष्ट भाषा का व्यवहार किया जाता है जिसके लिए विशेष ज्ञान की अपेक्षा होती है.  तकनीकी संप्रेषण के विभिन्न क्षेत्र होते हैं, जो मानव जीवन से अभिन्न रूप से जुडे होते हैं.  तकनीकी संप्रेषण का महत्वपूर्ण क्षेत्र वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी का क्षेत्र है.  वैज्ञानिक क्षेत्र में होनेवाले नितनवीन अनुसंधानों के परिणामस्वरूप आज मानव जीनव में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की भूमिका तीव्र गति से बढ रही है.  ऐसे में मानव के सामान्य दैनिक जीवन के निर्वाह में भी विश्व के किसी कोने में होनेवाले अनुसंधान से परिचित होना अनिवार्य सा हो गया है.  वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में होनेवाले नित नवीन अनुसंधान से परिचित होने का एक मात्र तरीका  उस वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी साहित्य को हिंदी में भी लाना अनिवार्य है.  परंतु वैज्ञानिक एवं तकनीकी विषय की अभिव्यक्ति के लिए  जिस भाषा को प्रयोग करते हैं वही प्रयोजनमूलक वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा है.  वैज्ञानिक और औद्योगिकी का विकास पिछले कुछ वर्षों से पूरे विश्व में काफी तेजी से हुआ है.  यह देखा गया कि विज्ञान जो सिध्दांत प्रदान करता है उसी के आधार पर technology  अर्थात तकनीकी का विकास होता है.  इन दोनों के बीच गहरा संबंध है.  वैज्ञानिक दृष्टि से जो विषय सामने आते हैं वे तर्क और प्रमाण पर आधारित होते हैं.  इसके साथ ही वैज्ञानिक प्रगति से मनुष्य का भौतिक जीवन सफल बनता है.  यही कारण है कि विश्व के सभी छोटे-बडे देश वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति करना चाहते हैं.
      यह सर्वविदित बात है कि वैज्ञानिक एवं तकनीकी की उपलब्दियाँ किसी भी उन्नत राष्ट्र का मेरुदंड होती है.  जब तक हमारे वैज्ञानिक एवं विभिन्न तकनीकी की जानकारी इस के प्रयोक्तओं, बृहद मानव समुदाय एवं देशवासियों को नहीं होगी तो इस प्रकार का प्रयोगशालाओं तक परिसीमित ज्ञान अपना दीर्घकालीन व भहुआयामी प्रभाव छोडने में सक्षम नहीं हो सकता.  अतः आवश्यक है कि विश्व के उन्नत देशों के समानंतर चलने के लिए हम ज्ञान – विज्ञान  एवं तकनीकी के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण विषयों को अपनी भारतीय भाषाओं, विशेषकर हिंदी के माध्यम से भी अभिव्यक्त कर प्रबुध्दजनों के साथ-साथ देश के जन-सामान्य तक पहुँचने का प्रयास करें.  वैज्ञानिक संस्थानों की गतिविधियों को चलाने के लिए जहाँ प्रशासन, भंडार-क्रय तथा वित्त एवं लेखा जैसे विभाग अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, वहीं उनके द्वारा किए जानेवाला हिंदी का काम संस्थान की समग्र छवि  का एक चौथाई अंश  हो सकता है, परंतु इस से अधिक महत्वपूर्ण है उस संस्थान, प्रतिष्ठान अथवा कार्यालय की व्युत्पत्ति से जुडे हुए अधिकाधिक विषयों को हिंदी एवं भारतीय भाषाओं के माध्यम से अधिसंख्य मानव समुदाय तक पहुँचाना.
      भारतीय पेट्रोलियम संस्थान विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद का एक राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान है.  इस में वैज्ञानिक विषयों को बुध्दजीवियों तथा जनसामान्य तक संचारित – संप्रेषित करने के उद्देश्य से आंतरिक हिंदी वैज्ञानिक संगोष्ठियों के आयोजन की श्रृंखला प्रारंभ की गई है कि जिस में संस्थान के वैज्ञानिक न केवल उत्साह से भाग लेते हैं अपितु जटिलतम समझे जानेवाले वैज्ञानिक विषयों पर हिंदी में आलेख लिखकर अपनी प्रभावी प्रस्तुति भी देते हैं.
दृश्य एवं मुद्रित माध्यमों से वैज्ञानिक एवं तकनीकी गतिविधियों का प्रचार-प्रसार
प्रायः प्रयोगशालओं के भीतर वैज्ञानिक एवं तकनीकी से संबंधित अनेक मबत्वपूर्ण जानकारियाँ समाहित रहती है परंतु उन महत्वपूर्ण खोजों, अनुसंधानों एवं शोध कार्यों से संबंधित कार्यालयों से भौतिक सन्निकटता के बावजूद भी जुडा हुआ व्यक्ति, ग्राम, प्रदेश अथवा राष्ट्र पूर्णतः उनकी संपूर्ण उपलब्दियों से अनभिज्ञ रहता है.  अतः आवश्यक है कि समय-समय पर संस्थान अथवा कार्यालय मे आयोजित वैज्ञानिक एवं तकनीकी संगोष्ठियों  के  क्रियाकलापों एवं गतिविधियों का सीधा-सीधा प्रचार-प्रसार मुद्रित अथवा इलक्ट्रानिक मीडिया से किया जाए ताकि जहां गृहीता समाज उसको देख, सुन अथवा पढकर अपनी वैज्ञानिक उपलब्दियों पर गर्व करें, वही उन उपेक्षित विषयों पर कुछ नया व श्रेष्ठ चिंतन करने के लिए भी उन्हें प्रेरणा प्राप्त हो.
      वैज्ञानिक एवं तकनीकी चीजों को प्रयोजनमूलक हिंदी के द्वारा अधिक लोगों तक पहुँचा सकते हैं.
संदर्भ ग्रंथ
1.  पद्मभूषण. ड़ॉ. मोटूरि सत्यनारायण जन्मशती विशेषांक – स्रवंति (दिसंबर 2002 से अप्रैल 2003) अतिथ् संपादक – प्रो. भीमसेन निर्मल, सहायक संपादक – डॉ.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू.
2.  राजभाषा भारती, जुलाई – सितंबर 2008.

3.  प्रयोजनमूलक हिंदी – विनोद गोदरे.

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