“सही कर्म ही धर्म है” : ए.बी.सिंह का कर्मयोग





सही कर्म ही धर्म है :  ए.बी.सिंह का कर्मयोग

प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

     पूर्णकुंभ – जुलाई – 2002 
                   
              आज किसी भी जगह चार लोगों के मिलने पर जो बात-चीत शुरु होती है, उसका संबंध किसी-न –किसी मंत्री महोदय या और किसी नेता से जुड़े भ्रष्टाचार से होता है. लेकिन लोग यह भूल रहे हैं कि हमे क्या करना है? अपने हिस्से का काम हम ठीक से कर रहे हैं या नहीं? समस्या को बताना तो बहुत आसान है और यह आज एक फैशन भी बन गया है. अपने शब्दजाल से ये विद्वत्ता से युक्त पदों द्वारा खरारा व्यंग्य करके वाह! वाह! के पात्र बनने में ही अपनी नागरिक सफलता का अनुभव पाते हैं. लेकिन प्रस्तुत समीक्ष्य कृति के कवि ए.बी.सिंह उपर्युक्त कोटि से बाहर के रचनाकारों में एक हैं. प्रस्तावना में ही कहा गया है कि-जो घर का कार्य अच्छा करते हैं वही लोग समाज का भी कार्य अच्छा कर सकते हैं. जो घर में ही बेकार हैं वे क्या किसी की सेवा करेंगे. इसलिए दमदार लोगों को जिन में गुण हो वे लोग जब आगे आएँ तभी सुधार हो पायेगा. इस काव्य कृति में कुल मिलाकर इक्कीस शीर्षक हैं. जिनके अवलोकन से प्रथम दृष्टि में ही ए.बी.सिंह के काव्य के सरोकार स्पष्ट हो जाते हैं. ए.बी.सिंह सर्व प्रथम एक सामाजिक सरोकारवाले कवि हैं. यदि यह कहा जाए कि उनके लिए कवित्व की अपेक्षा समाज सुधार मुख्य है तो अतिशयोक्ति न होगी. कविता उनके लिए साधन है साध्य नहीं. साध्य तो समाज में फैली हुई विसंगतियों का उन्मूलन करना है. इसीलिए उनके काव्य-खण्डों के शीर्षक न तो छायावादी पारदर्शी तंतुओं से बने हैं, और न ही नई कविता के रोमानी रंगों से रंजित है बल्कि एकदम सीधे सटीक और कभी-कभी निबंधों के शीर्षकों के समान है जैसे-1. सामाजिक ज्ञान 2. भारतीय सभ्यता 3. निरस्त्रीकरण 4. शिक्षा से ज्ञान 5. भारतीय-नारी 6. अच्छाई एवं बुराई 7. गाँव एवं कृषक 8. सन्त एवं असन्त 9. अहंबोध एवं अहंविसर्जन 10. पर्यावरण-संरक्षण 11. सुख एवं दुख 12. आत्म विश्वास एवं श्रम 13. ज्ञान से स्वार्थ में कमी 14. आधुनिक विचार एवं विज्ञान 15. जीवन की विसंगतियाँ 16. शरीर पर ध्यान एवं भोजन 17. अच्छा व्यवहार 18. आशा एवं विश्वास 19. सर्वधर्म समभाव से एकता 20. समाज एवं परिवार 21. प्रकीर्ण आदि.
         अपने जीवन जो सदा, रहे काम में व्यस्थ.
         सूरज उनके मान का, होता कभी न अस्त.

         एक से लेकर उनसठ तक के दोहों में सामाजिक ज्ञान के बारे में वर्णन किया है. ज्ञान को हम हासिल करते हैं. बाँटने से ही उसका सदुपयोग होता है. इस में सामाजिक बात जैसे हमेशा काम करना, भगवान को न भूलना, सत्संग की महत्ता, चरित्र निर्माण आदि विषयों को सुन्दर दोहों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है. ये उपदेशात्मक दोहे हैं.भारतीय सभ्यताके अंतर्गत भी उपदेश ही दिया है. इस में भारतीयता का वर्णन किया गया है. इसके साथ-साथ ऐसे दोहे हैं-
          बिना काम पकडे नहीं देश कभी रफतार.
          श्रम में सब जुट जाए, भूल बात बेकार..

         आज भारत में अधिकांश लोग इस प्रकार के बन गए हैं. मैथिली शरण गुस के अनुसार जगति है वणिगवृत्ति, काम निरखती, परिणाम चरखती ऐसे हो गए हैं. इसलिए काम करने के बारे में जोर दिया है. निरस्त्रीकरणके अंतर्गत युद्ध के भयंकर परिणामों का वर्णन किया है. युद्ध के बाद जीत या हार तो ऊपरी दिखावट के लिए है लेकिन नाश होता है दोनों पक्षों का, जन संहार दोनों पक्षों का-
             बम से लडे लडाइयाँ, सब होता संहार.
             दोनों हारें बाद में, बचे बनें बीमार..

           इस प्रकार वर्णन करते समय कुछ उदाहरण सहित या मिथकीय तुलना करके लिखने से उस में और भी प्रभाविष्णुता आती है.
           कवि ने आधुनिक भारतीय नारी के बारे में ठीक प्रकार पहचान की है. पारंपरित रुप में नारी को न देखकर नारी में चेतना लाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया है. यह अत्यन्त सराहनीय है.
            नारी जब शिक्षित रहे, तब रहती आजाद.
            घूँघट में जा रह रहीं, फँसती कई विवाद ..

          भारतीयनारी शीर्षक के अंतर्गत भारतीय नारी के बारे में पूर्ण वर्णन किया हैं. इसके साथ-साथ घर परिवार में नारी को सही स्थान दिया है. जैसे-
            नारी घर की है धुरी, तभी सभी खुशहाल.
            कठिन परिक्षा दे रही, पूरे जीवन काल..

           अच्छाई और बुराई को भी ठीक-ठीक प्रस्तुत किया है-
           साई के दर्शन न मिलें, जब चल चढ़ो पहाड.
           कठिन काम पर सुख मिले, मत समझो खिलवाड..

          प्रस्तुत काव्य कृति में अधिकांश दोहें संदेशात्मक हैं. साधारण विषयों का भी ए.बी. सिंह अपनी दोहों के माध्यम से अत्यन्त प्रभावपूर्ण शैली में वर्णन किया है. आधुनिक विचार और विज्ञान के अंतर्गत लिखा है कि-
          अच्छाई में हर तरफ, लगी हुई है आग.
          उसको बुझा बचाइए, गलत राह को त्याग ..

          कवि ने विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ गिरते हुए मूल्यों तथा अच्छाई को बचाने के लिए फिर आह्वान किया है और श्रम के मूल्य का विवरण देते हुए कहा है कि-
         पूँजी पति कोई नहीं, ना कोई मजदूर.
          जो अच्छा श्रम कर सके, उसके दुख सब दूर..

         जो व्यक्ति अच्छा श्रम या परिश्रम करता है वह चाहे पूँजीपति हो या मजदूर उसके सारे कष्ट दूर  होते हैं, न करने से जो भी हो कष्टों में फँस जाते हैं. इस में परिश्रम को महत्व दिया गया है. मजदूर और पूँजीपति के अंतर को दूर करने की चेष्टा की चेष्टा की गयी है. जीवन की विसंगतियाँ में जनता की मनः प्रवृत्तियों का असली परिचय दिया है. कवि ने जनता की अंतर्निहित वृत्तों को ऐसा वर्णन किया है एक सफल मनोवैज्ञानिक होकर.
           अपना धन सब चाहते, बढ़े रात ही रात.
           तथा पडोसी दुख सहे, कैसी उल्टी बात..
                         और
           जिसका जिससे स्वार्थ हो उसकी उस से प्रीत.
           दुनिया में इस तरह की, चलती आई उल्टी रीत...

           हमेशा हर तरह की पत्रिका में आज स्वास्थ्य तथा भोजन से संबंधी अनेक टिप्स देना तो अनिवार्य-सा हो गया है. इसी प्रकार कवि ने भी अपनी सतसई परम्परा में शरीर पर ध्यान एवं भोजन के अंतर्गन इन टिप्स के साथ-साथ श्रम करने पर अधिक जोर दिया. स्वास्थ्य को ठीक रखना चाहो तो सही तरह परिश्रम करना अत्यन्त आवश्यक है.
           तन पर ध्यान दे खा मौसम अनुसार.
           श्रम करना छोडे नहीं, तब जग से हो प्यार..

           वर्तमान समकालीन समस्या धार्मिकता से संबंधित दोहें भी इस में हैं. सर्वधर्म समभाव से एकता के अंतर्गत हिंदु धर्म की परधर्म सहिष्णुता के बारे में कम शब्दों में सठीक वर्णन किया गया है.
           हिंदु धर्म सिखा रहा, सहिष्णुता मन प्यार.
           सभी धर्म तब निभरहे, अच्छा है व्यवहार..

         इसके  साथ-साथ भारत देश की लौकिकता को सराह देते हुए कवि ने आगे कहा कि-
           इतनी जाति कहीं नहीं कहीं न इतने धर्म.
           भारत तभी महान है, भले सभी के कर्म..

        विभित्र शीर्षकों में अपने दोहों को रखने पर भी कवि ने हमेशा श्रम करने पर ही अधिक बल दिया है. इस में कुल 739 दोहें हैं. हर एक शीर्षक के माध्यम से भारतीय परम्परा से लेकर भारत की विभिन्न समस्यओं और मानवीयता के असली कर्म के बारे में पूर्ण रुप से जोर दिया है.

        इस में कवि हर आधुनिक संदर्भ को दोहों के माध्यम से सफल अभिव्यक्ति देता है. इसके साथ उदाहरण सहित वर्णन करने से और भी अच्छा रहता है और दोहा भी परिपूर्ण हो जाता है. श्रम के बारे में कवि के विचार इस प्रकार है - तालाब और नदियाँ तो देश में हो सकती है परन्तु तैरना तो खुद को ही सीखना पड़ता है, परिश्रम करके. कवि का आशय तो शीर्षक में ही दिया है-सही कर्म ही धर्म है अर्थात् परिश्रम करने में ही भगवान की आराधना निहित है. इस देश के लिए यह अत्यन्त आवश्यक है. इस सतसई में कवि ने अपने विचारों को व्यक्त करने में सफलता प्राप्त की है. विभन्न विषयों पर लिखकर कवि ने अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को स्वीकार ही नहीं किया है बल्कि उसका सही-सही निर्वाह भी किया है. प्रस्तुत काव्य-कृति सिर्फ काव्य की दृष्टि से ही नहीं प्रजोपयोगिता की दृष्टि से भी एक सफलतम कृति है. इसे कविता को नैतिक उपदेश के लिए समर्पित करनेवाले लोक चेतना के चितेरे कवि ए.बी.सिंह के कर्मयोग की संज्ञा भी दी जा सकती  हैं इसके लिए कवि साधुवाद के पात्र हैं.

 कृति का नाम : सही कर्म ही धर्म है.

कवि का नाम : ए.बी.सिंह
         

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