रमेश बक्षी कृत “ देवयानी का कहना है” में चित्रित नारी चेतना



रमेश बक्षी  कृत देवयानी का कहना हैमें चित्रित नारी चेतना

प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू


 स्रवंति– दिसंबर - 2003                                                     
                                   
                     
                                
                            रमेश बक्षी  का जन्म 15 अगस्त, 1936 को हुआ. बचपन से ही वे अपनी विलक्षण प्रतिभा के कारण हर विषय में अलग सोचने के आदि हो गए. बचपन में अनुभवों के कारण हर विषय में उन्होंने अपना एक अलग विचार दृष्टिकोण अपनाया.
             रमेश बक्षी के नाटकों की रंग क्षमता उन स्थितियों पर भी निर्भर करती है, जिनमें वे पात्र को खड़ा करते हैं. वस्तुतः नाट्य-स्थितियाँ पात्र और उनकी नाट्यकला का परिचय देते है. रमेश बक्षी  रंगमंच के सबसे बड़े समर्थक थे. वस्तुतः रंगमंच के साथ रुप-विधान नाटककार का अपना होता है तथा कोई भी नाटककार रंग-दृष्टि के अभाव में रचना नहीं कर सकता. वे अपने नाटकों के रंग तत्वों को नाट्य-स्थितियों, पात्रों के द्वन्द्व, उसकी भंगिमाओं और बदलती आकृतियों और संवादों के अनुरुप डालने में कुशल है. रमेश बक्षी  ने रंग-संकेत भी, उसी सर्जक कलाकर की कलात्मक भावना से लिखे है, जिस कुशलता से उन्होंने नाटकों के संवाद रचे हैं. रमेश बक्षी  के नाटकों के संवाद में शब्दातीत अर्थ ग्रहण करने की अपूर्व क्षमता लक्षित होती है. रमेश बक्षी  ने अभिनय के भेदों के संयोजन समन्वय के द्वारा अपने नाटकों को मंचीय स्तर पर सफल बनाया है.
 
         जीवंत रंगमंच को आधुनिक नाटककारों ने नाटकीय क्रियाकलाप का अनिवार्य अंग माना है. यदि कोई नाटककार नाटक के रचना शिल्प में नवीन प्रयोग करना चाहता है, तो उसे अपने कल्पना दृश्यों को क्रियात्मक रंगमंच के स्थूल बिम्बों के रुप में डालकर देखना होगा. इस लक्ष्य प्राप्ति  के निमित्त उसे व्यावहारिक  रंगमंच पर क्रियात्मक सहयोग अपनी सृजनशीलता का अंग बनाना होगा. इस विषय पर आधुनिक हिंदी नाटक के मसीहा मोहन राकेश का कथन इस प्रकार है :-

             “If a play writer wants   to try out new dramatic structures, not experimented with before, he   has to see the visions of his imagination cast into solid images of theatre before he can finally accept or reject them. This end is impossible to achieve with-out his active participation is practical theatre as a part of his creative routine. (1)    
                
 रमेश बक्षी  के नाटक, अभिनय की पृष्ठिका पर लिखे गए हैं और उनके कई सफल मंचीय प्रदर्शन भी किये जा चुके हैं. हिंदी के साठोत्तरी नाटकों में देवयानी का कहना है विशिष्ट महत्व का अधिकारी है. कथावस्तु की दृष्टि से देखें तोदेवयानी का कहना है अभिनय के अनुकूल है, क्योंकि उसमें कहीं कोई जटिलता और उलझाव नहीं है. वह जिस सादगी और प्रभावविष्णुता से प्रारम्भ होती है, उसी सहजता और विश्वसनीयता से समाप्त भी हो जाती है. यों भी नाटक की कथा में रोमानी तरलता होने के कारण, वह सामान्य से सामान्य और विशिष्ट से विशिष्ट दर्शक के अनुकूल है. संपूर्ण कथा का आयाम तीन अंकों में सिमटा हुआ है. पात्रों की दृष्टि से देखें तो इस नाटक में पात्रों की अनावश्यक भीड़ दृष्टिगोचर नहीं होती, जो भी पात्र है वे किसी न किसी बिन्दु से नाटक के मूल उद्देश्य से सम्पृक्त है. पटोड़िय, सुरेश कपूर, राजाराम, शकुंतला, रेखा, स्वामिनाथन, डैडी ऐसे पात्र हैं, जो नाटक की गंभीर भूमिका में अंग भी प्रस्तुत करते हैं. इन पात्रों का वार्तालाप न तो नाटक की मूल संवेदना से जुड़ा है और न ही मंचीय प्रदर्शन के दौरान ऐसे पात्रों की आवश्यकता दर्शकों को ही अनुभव होती है.

         नाटककार रमेश  के इस विवेच्य नाटक की अविवाहित नायिका एवं नायक क्रमशः देवयानी एवं साधन एक साथ रहने का फैसला करते हैं. इसका मूल कारण होटल को किराये देने से बचना था, किन्तु दोनों ही जानते है कि समाज कभी भी किसी अविवाहित स्त्री एवं पुरुष के साथ रहने की इजाजत नहीं देता. इसलिए वे दोनों ही झूठ का सहारा लेते हैं. वे घर किराये पर लेते समय घर मालकिन तिवारिन जी को बताते हैं कि वे दोनों पति-पत्नी है. वे बहुत ही सावधान एवं सतर्क रहते हैं. इसी संबंध में देवयानी साधन से कहती है- सावधान है तो. केवल सावधानी के लिए ही तो यह हमने अनाउन्स किया है कि हमने शादी कर ली है.(2) दोनों पहले दिन से ही लड़ाई-झगड़ा शुरु कर देते हैं. दूसरे दिन देवयानी पत्नी का मुखौटा उतार वेश्या का मुखौटा धारण करती है. वह घर को दो भागों में बाँट, पार्टीशन कर देती है. देवयानी इस संबंध में साधन से कहती है – वह, साधन बैनर्जी का कमरा है और यह देवयानी गुप्त का और मेरे कमरे में आने से पहले आवाज दिया करो.”(3)

                  वह स्वयं के अस्तित्व को बनाने के लिए अन्त तक प्रयासरत है. वह साधन के साथ रहने के बाद भी अपनी अलग पहचान बनाये रखने में सक्षम है. इस संबंध में वह इरा से कहता है – लेकिन मैं बैनर्जी न हो पाई. अब भी देवयानी गुप्त हूँ........”(4)
 
         रेखा स्वामिनाथन, जो एक रिपोर्टर है, अपने ईवनिंग डेली के लिए देवयानी का इन्टरव्यू लेना चाहती है. उसे साधन से इस बात का पता चलता है. वह देवयानी को इसकी जानकारी देते हुए कहती है कि मुझे मिस्टर साधन ने बतलाया था कि आप दोनों ने साथ रहने का फैसला किया है. यह समाचार जानकर खुशी हुई. अब तक अपने देश में खुल्लमुखुल्ला बगैर विवाह के साथ रहना न संभव रहा है, न मुनासिब, न किसी की हिम्मत ही हुई इस तरह का कदम उठाने की......”(5) देवयानी अन्य बहनों को दिये हुए संदेश में कहती है – वन एपल इज नाट इनअफ फार दि होल ऑफ द लाइफ, टेस्ट मोर.(6) वह साधन से अपने साथ सोने के लिए पचास रुपये माँगती है –मेरे साथ सोने के पचास रुपये देने होंगे.” (7) साधन इसे बर्दाश्त नहीं कर पाता और उससे कहता है-बस, चुप करो........ मैं यह बर्दाश्त नहीं कर सकता. क्या कोई पति यह कल्पना भी कर सकता है कि उसकी पत्नी तवायफ लगे?” (8) तो वह भी उसका जवाब देते हुए कहती है – यही सब कल भी कहा था तुमने. कल मैं केवल पत्नी थी, तुम उसे स्वीकार नहीं कर सके, आज मैं पास हूँ तो तुम्हारे संस्कार जाग उठे हैं. कल तक हम जब होटल में मिलते थे, में तुम्हारी रखैल थी – कीप और वही भी तुमसे बर्दाश्त नहीं हुआ.”(9) तीसरा दिन विवाह के उपलक्ष्य में रखे गए पार्टी के लिए तैयारी की जाती है. देवयानी खरीददारी करके घर लौटती है. वह साधन से बताती है किएक मिनट को मैंने कल्पना की कि मैं गर्भवती हूँ.” (10) साधन इसे एक सुखद कल्पना मानता है. तो देवयानी साधन से कहती है-माँ बनने को तुम लोग नारी की पूर्णता कहते हो ना, वह शायद इसलिए कि उससे वह पूरी तरह फँस सकती है. फिर कोई रास्ता नहीं रहता.....” (11) पार्टी शुरु होन से पहले दोनों ही निर्णय तक पहूँचना चाहते है. साधन अपना निर्णय सुनाने से हिचकिचाता है तो देवयानी उससे इस संबंध में कहती है – तुम कहने से घबरा रहे हो. क्या यह कहना चाहते हो कि अगर हम तमीज से साथ नहीं रह सकते तो अलग हो जायें?” (12) साधन देवयानी से कहता है कि क्या तुम समझती हो कि लांड्री में कपड़े धुलवा लोगो और फिर से मिस देवयानी गुप्त बन जाओगी.......?” (13) तो वह भी साफ-साफ शब्दों में जवाब देते हुए कहती है – मैं कपड़े नहीं धुलवाउँगी साधन, लेकिन गंद कपड़ों को बदल देने में किसी तरह की भावुकता नहीं दिखाऊँगी........”(14) देवयानी साधन को अकेला छोड़ चली जाती है. निमंत्रित लोग एक-एक कर आने लगते है. साधन से वे देवयानी के बारे में पूछते हैं. साधन असमंजस की स्थिति में फँस जाता है कि मैं क्या जवाब दूँ. तभी देवयानी वापस आती है. साधन देवयानी से पूछता है कि – क्या मैं विश्वास कर लूं कि तुम वापस आ गई हो........”(15) तो देवयानी कहती है कि न ही करो तो बेहतर. नाटक के अंत में साधन देवयानी पूछता है कि एक साथ रहना शुरु करके इस तरह घर छोड़ने की क्या जरुरत थी? तो वह कहती है कि – “इस सवाल का उत्तर देने के लिए फिर से तीन दिन जीना पड़ेगा और उसके लिए मेरा मन नहीं; क्योंकि अलग-अलग हर आदमी उसी अनुभव को दुहराता है. यह नाटक तीस साल तक चलता रह सकता है और हो सकता है अन्त यही हो.(16) नाटककार ने देवयानी के विलोम पात्र के रुप में तिवारिन जी के चरित्र का निर्माण किया है. रेखा आधुनिक होकर भी अपने माता-पिता के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाना चाहती.

      आज के आधुनिक नारी में आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं है, वह पुरुष के ही भाँति आत्मविश्वासी बनती जा रही है. पुरुष का विश्वास भले ही डगमग जाए, किन्तु आज नारी का आत्मविश्वास अड़िग है. साधन जब देवयानी के पिता का सामना करने से घबराता है, तो साधन को विश्वास दिलाती हुई कहती है-पहले तो डैडी फ्रुफ माँगने की हिम्मत ही नहीं कर पायेंगे. लेकिन ऐसा करेंगे तो मैं उन्हें जवाब दे सकूंगी. बिलिव देवयानी.” (17) नाटककार ने नायिका देवयानी के अड़िग आत्मविश्वास का यथार्थ चित्रण किया है. साधारणतया पुरुष स्त्री को तरह-तरह नाम से पुकारते हैं. कभी-कभी तो उनके लिए अपशब्द का भी प्रयोग करते हैं. स्त्री के मन में अगर पति के लिए इस प्रकार के विचार आते भी है तो वह कभी उसे व्यक्त नहीं करती, किन्तु आज की आधुनिक नारी पुरुष के समान ही अपने विचारों को व्यक्त करती है- मैं केवल देवयानी जैसी लगती हूँ और किसी जैसी लग ही नहीं सकती.(चाय पीती है) लेकिन तुम एकदम परम्परागत, दकियानूस सिरपिटे हसबंड यानी पानी की तरह लगने लगे हो.........”(18) एक अन्य स्थान पर देवयानी साधन को बताती है कि उसने माँ-पिताजी को तार द्वारा विवाह की सूचना दे दी है और सरला को इस घर का पता भी दे दिया है, तो साधन उससे कहता है कितुमने गलती की है देवयानी?” तो वह बडे ही आत्मविश्वास के साथ उत्तर देती है – मैंने जो किया ठीक किया है, कोई गलती नहीं की है.”(19) विवेच्य नाटक में नाटककार ने नायिका के माध्यम से नारी में बढ़ते हुए आत्मविश्वास को दर्शाया है. एक अन्य स्थान पर देवयानी साधन से कहती है – याद  रखो साधन देवयानी वहाँ लौट कर कभी नहीं जाती, जहाँ से उठकर वह आती  है।”(20)

  इस प्रकार रमेश  ने अपने नाटकों में आधुनिक नारी का यथार्थ चित्रण किया है। जिस में आधुनिक नारी की आक्रोश भरी आवाज ने पुरानी रुढ़ियों को अपने पैरों तले रौंध लिया है। रंगमंच की दृष्टि से भी ये नाटक अत्यंत सफलतापूर्वक मंच पर खेलने योग्य है।

संदर्भ :
  
1.     मोहन राकेश : संगीत नाटक, 3 अक्तूबर 1966 पृ.सं-16
2.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं - 22
3.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 58
4.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 64
5.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 76
6.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 80
7.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 84
8.     रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 85
9.     रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 85 
10.                        रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 97
11.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 97
12.                        रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 110
13.                        रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 111
14.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 111
15.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 126
16.                        रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 127
17.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 19
18.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 38
19.                        रमेश बक्षी   : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 18
20.                        रमेश बक्षी  : देवयानी का कहना है – पृ.सं – 115     



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