‘वर्षिणी’ का हिंदी अनुवाद








वर्षिणी का हिंदी अनुवाद

                                       प्रो.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू  
15-5-2005, स्वतंत्र वार्ता,
हैदरावाद

     हैदराबाद की धरती अनुवाद की दृष्टि से बहुत उपजाऊ है। यहाँ अनेक भाषा-भाषी नए-पुराने साहित्यकार निवास करते हैं, आते रहते हैं, विभिन्न भाषाओं के बीच में अनुवाद सेतु द्वारा भारतीय साहित्य की अभिवृद्धि में अपना योगदान करते रहते हैं। वर्षिणी गोदाचरितम का अनुवाद हिंदी में आचार्य वै.वेंकटरमण राव जी ने अत्यंत निष्ठा से किया है। उपन्यास पढ़ते समय पूर्णतः मौलिकता का बोध होता हैं
  यह गोदा देवी की कथा पर आधारित पौराणिक उपन्यास है। लेखिका ने भूमिका में उपन्यास के बारे में इस प्रकार लिखा है कि यह अनुसंधानात्मक उपन्यास है। गोदा देवी श्री कृष्णा से प्रेम करने, उस स्वामी के लिए विरह से तपने वाली मुग्धा भक्त प्रणयिनी के रुप में उपन्यास में दिखती है। गोदा देवी बचपन से ही पिता विष्णु चित्त के आध्यात्मिक प्रसंगों से आकर्षित होती है। प्रथम पृष्ठ में ही विष्णु चित्त व्याख्यान इस प्रकार दिखता है यथा श्री कृष्ण भगवान की रास-लीला नृत्यु मात्र एक कृष्ण का अपने गोपियों के साथ प्रदर्शन करनेवाला नृत्यु नहीं है। यह प्रतीकात्मक रुप कल्पना है। मानव का स्थूल शरीर ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों से युक्त है। मन, बुद्धि और अहंकार से युक्त मानव शारीर सूक्ष्म शरीर है। इससे संपृक्त रहता है प्राण शक्ति रुपा जीवा जीव को चेतना प्रदान करने वाली प्रज्ञा हैं। मैं की भावना यही आत्मा अथवा परमात्मा है। इस परमात्मा तत्व की रुप कल्पना का स्वरुप ही श्री कृष्ण हैं। इसी कारण से स्त्री और पुरुष वृध्द और बालक जैसे भेदों से परे सभी को स्वामी को सम्मोहित कर सके हैं। गोपियाँ केवल स्त्रियाँ ही नहीं अपने आपको भगवान के सामने पूर्ण रुपेण समर्पित कर सकने वाला हर कोई गोपिका ही है। हमारे पूर्वाचार्य नम्माय्यालवार आदि सबने गोपिका भाव से परमात्मा का ध्यान कर मुक्ति पायी है। इस संदर्भ में भागवत में स्पष्ट किया गया है। नारी और नारी के बीच में मुरारी विराजमान होता है। अपने सर्वस्व को श्री कृष्णार्पित स्थिति में ही गोपियाँ आपस में अपने सहेलियों में श्रीकृष्ण का दर्शन कर सकी हैं। इस प्रसंग को सुनने के बाद गोदा की प्रतिक्रिया का वर्णन लेखिका ने इस प्रकार अभिव्यक्त किया कि गोदा देवी के मनोनेत्र के सामने गोपिकाओं सहित श्री कृष्ण की रास लीला का चित्र उभरकर नाचने लगा। वे उम्र में छेटी ही थीं, किंतु जब से वे बाह्य संसार को पहचानने लगीं तभी से अपने पिता विष्णु चित्त को ही अपने परम गुरु मानती रही हैं।
  इस उपन्यास में तत्कालीन विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा धार्मिक परिस्थितियों का सफल अंकन भी किया गया है। बौध्द धर्म के नाम पर होने वाले अत्याचारों का वर्णन भी किया गया है। जो अहिंसा के प्रतिमूर्ति है उसी के नाम पर हिंसा चलना आदि के द्वारा तत्कालीन धार्मिक परिस्थितियों का यथार्थ वर्णन किया गया है। समाज में लूटने की प्रवृत्ति का वर्णन यथार्थ चित्रण लेखिक ने सफलतापूर्वक किया है। कलभ्रुओं के द्वारा जो अत्याचार चल रहा है, कलभ्रुओं के नाम पर कुछ ग्रामाधिकारी आदि लोग जनता को डरा कर लूटते रहते हैं। आज हर दिन पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते हैं कि एक जगह नक्सलाईट और एक जगह नक्सलाईट के नाम पर पैसे वसूल करने वाली नकली नक्सलाईट। इस प्रकार  अनेक प्रासंगिक संदर्भ भी है। इस उपन्यास में मूलकथा गोदा देवी के मन में कृष्ण के प्रति गोपिका भाव का जागना, उसका बढ़ना और अंत में भगवान में विलीन होना परंतु मूलकथा के साथ-साथ तत्कालीन विभिन्न संदर्भ एवं पात्रों के द्वारा लेखिका ने यह सिद्ध कर दिया कि यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है।
   वर्षिणी उपन्यास शैलि में भक्ति और दर्शन साहित्य का एक प्रशंसनीय ग्रंथ है। लेखिका ने जहाँ गोदा की भक्ति के दार्शनिक तत्व का सम्यक विवेचन किया है वहीं अनुवादक ने इस महत्वपूर्ण कृति का हिंदी में अनुवाद करके हिंदी के पाठकों पर बहुत बड़ा उपकार किया है।                                                  

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