Sriramcharitmanas, Ayodhyakand pad 7. जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा ।श्रीराम...








जो मुनीस जेहि आयसु दीन्हा । सो तेहिं काजु प्रथम जनु कीन्हा ।। बिप्र साधु सुर पूजत राजा । करत राम हित मंगल काजा ।। सुनत राम अभिषेक सुहावा । बाज गहागह अवध बधावा ।। राम सीय तन सगुन जनाए । फरकहिं मंगल अंग सुहाए ।। पुलकि सप्रेम परसपर कहहीं । भरत आगमनु सूचक अहहीं ।। भए बहुत दिन अति अवसेरी । सगुन प्रतीति भेंट प्रिय केरी ।। भरत सरिस प्रिय को जग माहीं । इहइ सगुन फलु दूसर नाहीं ।। रामहि बंधु सोच दिन राती । अंडन्हि कमठ ह्रदउ जेहि भाँती ।। एहि अवसर मंगलु परम सुनि रहँसेउ रनिवासु । सोभत लखि बिधु बढ़त जनु बारिधि बीचि बिलासु ।।7।।

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