सोफिया (बुल्गारिया) में हिंदी शिक्षण : समस्यायें और समाधान
VISHW MAITRI
International Seminar on "The Impact of Globalization on HIndi and other Indian Languages"
ISBN 978-93-83637-60-7
सोफिया (बुल्गारिया) में हिंदी शिक्षण : समस्यायें और समाधान
प्रो. एस. वी.
एस. एस. नारायण राजू
यह सर्वविदित
बात है कि हिंदी ही नहीं कोई भी भाषा की शिक्षण में प्रांत, क्षेत्र या देश के
संदर्भानुसार समस्यायें या तकलीफें उत्पन्न होना सर्वसाधारण बात है. इन समस्यायें
या तकलीफों को समस्या के रूप में न देख कर अडचन या अवरोध के रूप में लेकर पार करने
के लिए हम कोशिश भी करते हैं. इस संदर्भ
में सिध्दांत पक्ष पर जोर देने के बजाय मैं प्रायोगिक पक्ष पर कुछ चीजों को
प्रस्तुत करना चाहता हूँ. मैं पिछले बीस वर्षों से हिंदीतर प्रदेशों में ही हिंदी
पढाते आ रहा हूँ. भारत में हिंदीतर प्रांतों में पढाते वक्त आनेवाली समस्याओं की
तुलना में यूरोप (अर्थात् विदेशी संदर्भ) में कुछ ज्यादा है. भारत के संदर्भ में छोटे
मोटे अंतर हैं परंतु अधिकांश समान ही है. विदेशी संदर्भ अर्थात् अब मैं युरोप के
संदर्भ में पेश करने जा रहा हूँ.
सबसे पहले
सांस्कृतिक संदर्भ में आनेवाली समस्यायें देखेंगे. भोलाराम का जीव कहानी को पढाते वक्त स्वर्ग और
नरक का संदर्भ ही देखिए, स्वर्ग Heaven
नरक Hell कहने तक ठीक है
परंतु स्वर्ग के अधिपति देवराज इंद्र.
स्वर्ग और इंद्र के बारे में भारतीय परिवेश में किसी भी भाषा में भी पढाते
वक्त बिना कोई कठिनाई से समझा सकते हैं. परंतु यहाँ पहले स्वर्ग से संबंधित भारतीय
मान्यताएँ और भारतीय मिथकीय संदर्भ आदि से संबंधित पूर्ण जानकारी देना अनिवार्य
है. स्वर्ग के अधिपति देवराज इंद्र के बारे में और देवताओं के बारे में तथा
विभिन्न पौराणिक कथाओं के माध्यम से समझाना पडता है. इन कथाओं से संबंधित अनेक चित्रों के द्वारा भी
छात्रों को रोचकता के साथ पढा सकते हैं.
स्वर्ग के बाद बारी नरक के
हैं. फिर यथातथ विभिन्न पौराणिक तथा
मिथकीय संदर्भों के साथ – साथ कथाओं से संबंधित अनेक चित्रों के माध्यम से
सविस्तार विवरण देना अनिवार्य है. इसके बाद पाप और पुण्य तथा परिणाम एवं सजा आदि
से संबंधित जानकारी देने के बाद ही कहानी में आगे बढ सकते हैं. इस संदर्भ में
विभिन्न धर्मों से संबंधित मान्यतओं से तुलना करके सभी धर्मों से संबंधित मूलभूत
एकता के बारे में भी बता सकते हैं.
इसके साथ – साथ
विभिन्न पौराणिक पात्रों का परिचय भी देना
अनिवार्य है. इस प्रकार भारतीय वेश-भूषा, खान-पान, रीति-रिवाज आदि से संबंधित अनेक
संदर्भों में कहानी से हठकर भारतीय परिवेश से संबंधित विभिन्न विषयों के साथ-साथ
यूरोप की तुलना करते हुए संपूर्ण जानकारी देने की जरूरत है. आमतौर पर विदेश के संदर्भ में भारतीय भाषा तथा
साहित्य पढाते वक्त अनेक समस्यायें उत्पन्न होती है. इसका मुख्य कारण दोनों देशों के बीच का अंतर ही है. यह अंतर
अनेक स्तरों पर है. मैं मुख्यतः अन्य
समस्यों में न जाकर संस्कृति, आचार-व्यवहार तथा रीति-रिवाजों से संबंधित समस्यों
के बारे में ही चर्चा करना चाहता हूँ. मेरे लिए फायदा यह है कि मैंने अधिकांश समय
हिंदीतर प्रांतों में ही पढाया था. आंध्र
प्रदेश, केरल राज्यों में पढाने का अनुभव यहाँ बहुत काम आया. वहाँ पढाते वक्त
आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज, खान-पान, वेश-भूषा, शैली आदि से संबंधित कुछ अंतर दिखते
हैं परंतु दोनों से संबंधित समानताएं या विषमताओं के बारे में संक्षिप्त अंतर को
समझाने से समस्या दूर हो जाती है. परंतु
यूरोप के संदर्भ में और अधिक जानकारी देने की आवश्यकता है.
पारिवारिक
रिश्ते नाते से संबंधित बातें आती हैं.
यहाँ भी भारतीय पारिवारिक संबंध और रिश्ते नाते से संबंधित पूर्ण जानकारी
के बिना समझाना मुश्किल है. दोनों देशों
में पारिवारिक व्यवस्था की बुनियादी अंतर है. पारिवारिक रिश्ते नाते का अंतर उत्तर
भारत और दक्षिण भारत में भी है. कुछ रिशतें समान हैं. बुल्गारिया में भी देवर को देवर
ही कहते हैं. एकाध समानाताएँ तो हो सकता है.
आमतौर पर पारिवारिक व्यवस्था में ही बहुत अंतर तो है ही.
जहाँ सहेली शब्द के लिए Girl Friend शब्द कहने से ठीक
नहीं लगता है क्योंकि यहाँ लोग सहजीवन तो आम बात है लेकिन बोलते हैं कि She
is my Girl Friend का अनुवाद करके यह मेरी सहेली है. आगर भारतीय परिवेश में यह गलत अर्थ निकलता है.
विवाह होने से पत्नी कह सकते हैं. यह
सर्वविदित बात है कि यहाँ शादी के बिना भी मिलकर जीवन जीते हैं, बच्चे भी आ जाते
हैं. अगर कहीं सहेली शब्द आने से इसके बारे में साफ-साफ अर्थ समझाना पडता है. सहेली का मतलब Girl Friend परंतु यह यहाँ के अनुसार नहीं है, साधारण मित्र है. यूरोपीय
मान्यता के अनुसार कहना है तो वह सहजीवन संगिनी कहना ठीक है. इस प्रकार की चीजें
देखने से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं लगता है लेकिन अनेक संदर्भों में अर्थ का अनर्थ हो
जाता है.
इसी प्रकार
अनेक संदर्भों में विषय से हठकर ज्यादा जानकारी देना पडता है. उदाहरण के लिए “उन्हें क्या खवर
कि चौधरा आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए.” सब से पहले आँखें
बदल लें, इसका शाब्दिक अर्थ नहीं लेते हैं. इस से संबंधित पूर्ण जानकारी देना पडता
है. इसके साथ-साथ ईद और मुहर्रम दोनों के
बारे में सविस्तार जानकारी के बिना आगे नहीं बढ सकते हैं. ग्रामीण जीवन से संबंधित अनेक विषयों के बारे
में विवरण के साथ-साथ अनेक भारतीय ग्रामीण चित्रों के द्वार समझाना पडता है
क्योंकि इस प्रकार का भौगोलिक परिवेश यहाँ तो है ही नहीं. जहाँ चर्खीं हैं इसके
लिए जैंटवील नहीं कह सकते हैं क्योंकि दोनों का कान्सप्ट एक है परंतु पध्दति अलग
है. यहाँ भी फिर वही समाधान चित्र दिखाकर
ही पार कर सकते हैं.
अब आगे मेला या
उत्सवों से संबंधित विषयों के बारे में देखेंगे.
कार्निवाल से तुलना तो कुछ हद तक कर सकते हैं परंतु अंतर है. ईदगाह में मिठाईयों का संदर्भ है. भारत शास्त्र
विभागीय विद्यार्थीं होने के नाते थोडा
परिचित तो होंगे परंतु रेवडियाँ, गुलाबजामुन, सोहन हलुआ, बर्फी, विभिन्न प्रकार के
लड्डु आदि से संबंधित जानकारी के बिना हम विषय को आगे नहीं ले जा सकते हैं. इन
मिठाईयों के बारे में कहने
या तैयार करने की विधि बताने के बजाय मैंने इन
में से कुछ चीजों को तैयार करने की रसोई विडियों को ले जाकर मैंने कक्षा
में प्रस्तुत किया. कुछ चीजों को मेरी पत्नी से बनवाकर छात्रों को दिया. इस प्रकार मैं जहाँ तक संभव हो छात्रों को
कहानी तथा अन्य विषयों को समझाने के लिए कोशिश कर रहा हूँ. ईदगाह में जहाँ विभिन्न
प्रकार की खिलौने हैं. यहाँ भी फिर भारतीय खिलौनों से संबंधित विवरण के साथ-साथ
चित्रों का ही सहारा ही लेना पडा.
कभी-कभी कुछ
चीजों के बहुत आसानी से भी समझा सकते हैं उदाहरण के लिए हिंदी में कीमा है. इस के
बारे में ज्यादा समझाने की जरुरत भी नहीं है क्योकि बुल्गारिया में कीमा को कैमा
कहते हैं. यहाँ एक ताज्जूब की बात यह है
कि तेलुगु भाषा में भी कीमा को कैमा ही कहते हैं.
इसी प्रकार मैं अनेक संदर्भों में हिंदी बुल्गारिया के साथ-साथ दक्षिण
भारतीय भाषाएँ तेलुगु और मलयालम से भी तुलना करके अनेक समानतओं तथा भिन्नताओं के
माध्यम से हिंदी भाषा और साहित्य को और अधिक रोचक ढंग से पढाने के लिए कोशिश कर
रहा हूँ.
यूरोप में
खासकर मैं सोफिया में छात्रों को पढाते वक्त मैं हमेशा अधिकांश संदर्भों में
भारतीय और यूरोप की तुलना के द्वारा समानताएँ और भिन्नताएँ दोनों को रेखांकित करते
हुए छात्रों को समझाने के लिए कोशिश कर रहा हूँ. मैं ज्यादा प्रयोगिक हिंदी पर ही
जोर देता हूँ क्योंकि मेरा उद्देश्य छात्र आसानी से हिंदी में बोलने की क्षमता को
हासिल करें.
वर्ष
2011 में विश्व हिंदी दिवस के संदर्भ में छात्रों द्वारा देवदास की कुछ कल्पनाएँ
नामक एक लघु चित्र बनवाया. तब भी अनेक समस्यायें उतपन्न हुई. परंतु बुल्गारिया के अनुरूप परिवर्तन करके लघु
चल चित्र बनवाया. प्रेम तो विश्व में लग-भग समान तो है ही. इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन कहानियाँ या
साहित्य के माध्यम से हिंदी भाषा तथा साहित्य ही नहीं, भारत देश और भारतीयता से
संबंधित अनेक विषयों की जानकारी देने के लिए एक मौका भी है.