अनुवाद समीक्षा पर ‘कामायनी’ के माध्यम से चिंतन
अनुवाद समीक्षा पर ‘कामायनी’ के माध्यम से चिंतन
एस.वी.एस.एस.
नारायण राजू
पुस्तक समीक्षा
पूर्णकुंभ, नवंबर 1998
भारत में विभिन्न भाषाओं में परस्पर साहित्यिक आदान-प्रदान के लिए
अनुवाद का कार्य एक आंदोलन के रुप में चलता रहा है। एक भारतीय भाषा से दूसरी
भारतीय भाषा में अनुवाद करते समय अनेक कठिनाइयाँ सामने आती हैं फिर भी सांस्कृतिक
एकता के लिए अनुवाद की परंपरा भारत में निरंतर बनी हुई है। विदेशी भाषाओं में
अनुवाद करते समय अनुवाद की संरचनागत समस्याओं के साथ-साथ सांस्कृतिक, आचार-व्यवहार, रीति-रिवाज से जुडी अनेक
समस्यायें भी उत्पन्न होती हैं। लेकिन इन के होते हुए भी विदेशी अर्थात विजातीय
भाषाओं में भी भारतीय भाषाओं के अनेक अनुवाद किए गए हैं और आज किए जा रहे हैं।
अनुवाद को आदर्श रुप देने के लिए सैध्दान्तिक पक्ष के साथ-साथ अनुदूत पाठों की
समीक्षा का कार्य भी करने की अत्यंत आवश्यकता अब महसूस की जा रही है। इस प्रकार के
कठिन और श्रमसाध्य कार्य को डॉ. चर्ल अन्नपूर्णा ने अत्यंत सफलता पूर्वक संपन्न
किया है। आधुनिक भारतीय काव्यों में महानतम कृति ‘कामायनी’ का अनुवाद विभिन्न भारतीय
भाषाओं के साथ अंग्रेजी में भी किया गया है। लेखिका ने इस कृति के अंग्रेजी और
तेलुगु अनुवादों को लेकर समीक्षा कार्य प्रस्तुत किया है। यह पुस्तक लेखिका ने शोध
कार्य का संशोधित रुप है, जिसका शीर्षक है – “अनुवाद समीक्षा : ‘कामायनी’ सजातीय और विजातीय भाषाओं के परिप्रेक्ष्य में”।
लेखिका ने विषय वस्तु को छ: अध्यायों में विभाजित किया
है। 1. अनुवाद का स्वरुप और समस्याएँ 2. जयशंकर प्रसाद और कामायनी का रचना संदर्भ
3. तेलुगु और अंग्रेजी अनुवादों की सामान्य विशेषताएँ 4. सजातीय भाषा - तेलुगु के
संदर्भ में कामायनी का अनुवाद 5. विजातीय भाषा – अंग्रेजी के संदर्भ में कामायनी
का अनुवाद 6. कामायनी तेलुगु और अंग्रेजी अनुवादों की समीक्षा
प्रथम अध्याय में अनुवाद के स्वरुप और समस्याओं
पर विस्तृत विवेचन है। भारतीय और पाश्चात्य अनुवाद परंपरा, विकास, स्वरुप और क्षेत्र का
संपूर्ण विवरण इस में दिया गया है। अनुवाद के विभिन्न संदर्भों के अंतर्गत प्रतीक
सिध्दांत और अनुवाद, अनुवाद के वर्ग, प्राकृतिक अनुवाद, तुलनात्मक साहित्यिक अनुवाद आदि के बारे में विश्लेषणात्मक विवरण
दिया है। अनुवाद की प्रक्रिया, अनुवादनीयता की समस्याओं के बारे में विस्तार पूर्वक सैध्दांतिक
विवेचन किया है। सजातीय और विजातीय भाषाओं के संदर्भ में आनेवाली साहित्यिक अनुवाद
की समस्याओं का विवरण दिया है। इस अध्याय में लेखिका ने अनुवाद के सैध्दांतिक पक्ष
को विस्तार से प्रस्तुत किया है, जो नया भी है और जानकारी पूर्ण है।
द्वितीय अध्याय में लेखिका ने आधुनिक हिंदी
साहित्य के प्रमुख काव्य ‘कामायनी’ के रचना संदर्भ पर जानकारी दी है। ‘कामायनी’ के विषयवस्तु तथा शिल्प का
परिचय दिया है। साथ ही कामायनी के कथ्य पक्ष, उस की दार्शनिक चेतना तथा
विभिन्न दार्शनिक शब्दावली का भी उल्लेख अनुवाद के संदर्भ में किया है। जैसे –
अगजग – अगजगमु Immobile, mobile; आनंद-मुदमु Bliss; जगत-जगति- World आदि।
तृतीय अध्याय में तेलुगु और अंग्रेजी अनुवादों
की सामान्य विशेषताओं को अनेक उदाहरणों के साथ प्रस्सुत किया गया है। इन विशेषताओं
को दोनों भाषाओं की संरचना, भाव तथा अनुवादनीयता के स्तर पर देखा गया है। संरचना के स्तर पर - कहाँ ले चली हो मुझ को श्रध्दे – एचट किटुलु
कोनि पोदुवु श्रध्दा; ओचिन्ता की पहली रेखा – oh thou first anxious wrinkle of reflection; भाव के स्तर पर –
विश्व देव, सविता या पूषा – विश्व देवतलु सवितयु पुषुडु; उषा सुनहले तीर बरसती – showering shafts of gold the morning
rose; अनुवादनीयता के स्तर
पर – समरस थे जड या चेतन – लेदु जड़ चेतन विभेदमु – All objects conscious or unconscious were - इस प्रकार तीनों स्तरों पर तेलुगु अंग्रेजी अनुवादों की सामान्य
विशेषताओं को मूल पाठ ‘कामायनी’ से जोड़कर देखते हुए प्रस्तुत किया है।
चतुर्थ अध्याय में ध्वनि, शब्द और वाक्य के स्तर पर
अनुवादों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है। इस अध्याय में विभिन्न भाषा
परिवारों की भी विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गयी है। ध्वनि के स्तर पर – आह।
कल्पना का सुंदर यह जगत मधुर कितना होता – एंत मधुर मेंतेंत मनोहर अहलतो रुपोंदिन
भवनमु; शब्द के स्तर पर – लौटे थे मृगाया से थककर दिखलाई पडता गुफा द्वार –
अलसि वच्चेनु वेंटनुंडी गृ हम्मु द्वारमु तेरचियुन्नदि; वाक्य के स्तर पर जीवन का
कोमल तंतु बढे तेरी ही मंजुलता समान – मृदल जीवन तंतुवुलु विकसिंचवले नी सोयगमुवले; इस प्रकार ध्वनि, शब्द और वाक्य के स्तर पर ‘कामायनी’ और तेलुगु अनुवाद का विपुल
विवेचन लेखिका ने अत्यंत परिश्रम से प्रस्तुत किया है।
पाँचवे अध्याय में विजातीय भाषा अंग्रेजी के
संदर्भ में कामायनी के अनुवाद को ध्वनि, शब्द और वाक्यों के स्तर पर
विश्लेषित किया गया है। जैसे – ध्वनि के स्तर पर – विश्व की दुर्बलता बल बने – May in to strength all the world’s weakness turn; शब्द के स्तर पर – लौटे थे मृगाया से थक कर - He had returned from hunting much fatigued; वाक्य के स्तर पर – उधर गरजती
सिंधु लहरियाँ – The roaring surges of the flood appeared, आदि।
छठे अध्याय में ‘कामायनी’ तेलुगु और अंग्रेजी
अनुवादों की तुलनात्मक समीक्षा की गयी है। यह अध्याय पाँच उप खण्डों में विभाजित
है। प्रथम खण्ड पर सैध्दांतिक चर्चा की गयी है। दूसरी खण्ड में शब्द स्तर पर दोनों
अनुवादों की सफल समीक्षा प्रस्तुत की गयी है। विभिन्न शब्दों को अनेक स्तरों पर
वर्गीकृत करके प्रस्तुत किया गया है। जैसे – संस्कृत के शब्द – विश्रांत –
विश्रमिंचे – Helpless; सुषुप्ति – सुषुप्ति – More sleep; पुनरुक्त शब्द – सुख
केवल सुख – सुखमु सुखमु केवलमु सुखमु – Comfort or rather the mere means of ease; देशज शब्द – सूना-शून्य - The empty; समास शब्द - घनमाला –
जीमूता संघमुना – Azune clouds; संबोधन शब्दावली – नारी - कोमली – oh woman, परे हट श्रध्दे – कनिपिंचकु
श्रध्दा – keep the away; पर्यायवाची शब्द – मही, धरणी, धरा, धरती – पुडमी, वसुंधरा, वसुमति, भुवि – The earth, The earth, earth, The earth; अंग्रेजी अनुवाद में लिप्यांतरण और पुरानी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग
– श्रध्दा - shraddha, पपीहा - papiha, मलय – Molay, breeze आदि। तृतीय खंड में दोनों अनुवादों की समीक्षा शैली के स्तर पर की
गयी है, जिसे ध्वन्यात्मक आवृत्ति, मानवीकरण, वाक्य-विचलन, मुहावरे आदि के संदर्भ में
देखा गया है। चतुर्थ खंड में यह समीक्षा काव्य के तत्व – उपमान और उपमेय, श्लेषपरक शब्द, बिंब विधान, प्रतीक और अलंकार आदि के
संदर्भ में की गयी है। अंतिम और पाँचवें खंड में यह समीक्षा प्रोक्ति के स्तर पर
की गयी। जैसे आह। घिरेगी हृदय लहलहे खेतों पर करका धन-सी – आवरिंचि हृदयालवालमुनु
पंट चेलपयि प्रलय जलन मटु – oh, like a thunder cloud thou wilt hang over
the teeming smiling fields of human bliss आदि। इस प्रकार लेखिका ने कामायनी के तेलुगु और अंग्रेजी अनुवादों की
विस्तृत और सिध्दांत केंद्रित समीक्षा बड़े ही वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत की है।
युगीन माँगों के अनुसार अनुवादों की समीक्षा अत्यंत आवश्यक है। इस आवश्यकता की
पूर्ति प्रस्तुत पुस्तक करती है। इसकी लेखिका डॉ. चर्ल अन्नपूर्णा की अथक परिश्रम
इस में पग-पग दिखाई देता है। यह पुस्तक केवल अनुवाद क्षेत्र में कार्य करनेवालों
के लिए ही नहीं हिंदी के सभी सहृदय पाठकों के लिए अत्यंत संग्रहणीय है।