हिंदी वर्तनी के विविध आयामों की सुचिंतित पीठिका
हिंदी वर्तनी के विविध आयामों की
सुचिंतित पीठिका
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
पुस्तक समीक्षा
पूर्णकुंभ, सितंबर 1998.
आज
हिंदी भाषा का उपयोग दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है। हिंदी में
काम-काज करने के लिए शुध्द हिंदी के
प्रयोग और व्याकरण के नियमों की ही नहीं शुध्द वर्तनी के नियमों की भी जानकारी
होनी चाहिए। ऐसा करने से ही साहित्यिक कार्य जैसे कहानी, उपन्यास, समीक्षा, पत्र-पत्रिकाओं में लेखन, समाचार लेखन तथा राजभाषा से
संबंधित कार्यों में शुध्द और एकरुप वर्तनी का प्रयोग संभव हो सकेगा।
इसके साथ
ही आज हिंदी को कंप्यूटरों के लिए उपयुक्त बनाने में भी वर्तनी की एकरुपता तथा
उसकी संभावनाओं पर विचार अनिवार्य है। कंप्यूटरों पर काम करते समय यह नितांत
आवश्यक है कि ‘स्पेलचेकर’ के लिए शुध्द और स्तरीय वर्तनी
हो। समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं के क्षेत्र
में अंग्रेजी के समान ही हिंदी को व्यापक स्वीकार्यता प्रदान करने के लिए शुध्द
भाषा के साथ-साथ एकरुप वर्तनी का प्रयोग करने
से पाठकों के मन में हिंदी भाषा के प्रति एक आदरभाव उत्पन्न होगा। हिंदी जैसी
विकास शील भाषा के लिए मानक वर्तनी की अत्यंत आवश्यकता है। इस दिशा में अनेक
भाषावैज्ञानिकों ने विचार किया है। इसी क्रम में लेखकद्वय कैलाश चंद्र भाटिया और
रचना भाटिया लिखित ‘हिंदी की मानक वर्तनी’ अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक को तीन भागों
में विभाजित किया गया है। भाग एक में ‘वर्तनी’, भाग दो में ‘विरामचिह्न’, तथा भाग तीन में ‘प्रूफ शोधन’ पर विस्तृत रुप से विश्लेषणात्मक विवरण दिया गया है।
अंत में ‘परिशिष्ट’ के अंतर्गत ‘अरबी, फारसी तथा अंग्रेजी से ग्रहीत
ध्वनियों के लिप्यांकन’ से संबंधित विस्तृत एवं वैज्ञानिक जानकारी दी गई है।
पुस्तक के
पहले भाग के नौ अध्यायों में ‘वर्तनी’ का विश्लेषण है। इसकी ‘भूमिका’ में वर्तनी की अनेकरुपता और मानकीकरण की आवश्यकता पर
विचार व्यक्त किया गया है। द्वितीय अध्याय में ‘वर्तनी की एकरुपता’ के संबंध में तथ्यों सहित विचार किया गया है। इस
अध्याय में लेखक ने संयुक्त वर्ण, विभक्त चिह्न, क्रियापद, अव्यय, श्रतिमूलक ‘य’, ‘व’, अनुस्वार तथा अनुनासिक चिह्न (चंद्रबिंदु), विदेशी ध्वनियाँ, हल चिह्न, स्वर परिवर्तन, विसर्ग और हिंदी के संख्यावाचक शब्दों की एक रुपता से
संबंधित संपूर्ण जानकारी उदाहरणों सहित दी है। तृतीय अध्याय में ‘नागरी लिपि के स्वर और वर्तनी’ के अंतर्गत वर्तनी में ह्रस्वता
दीर्घता की अशुध्दियों का संपूर्ण विवरण है।
चतुर्थ अध्याय ‘विसर्ग की समस्या’ का वर्णन है। पाँचवा अध्याय में ‘नासिक व्यंजन अनुस्वार तथा अनुनासिकता के अंतर्गत लेखक
ने अनुनासिकता के साथ-साथ विदेशी शब्दों में नासिक्य
व्यंजन का प्रयोग जैसे अंग्रेजी शब्द – कैंसर, कंट्रोल, एम्बैसेडर, कॉन्फ्रेन्स, इंक, इंजन, पेटेंट आदि का विवरण दिया है। इस प्रकार का विवरण अत्यंत उपयोगी है।
छठे अध्याय में ‘कुछ व्यंजन ध्वनियाँ तथा तत्संबंधी वर्तनी’ में लेखक ने ‘ट’ व ‘ठ’ से संबंधित भ्रम को दूर कर दिया है। इसी अध्याय में इढ़ तथा ड़ढ़
वर्णों से युक्त वर्तनी, ण का न से भ्रम, र ध्वनि और वर्णचिह्न, व और ब ध्वनियों और श ष स से संबंधित अशुध्दियों और ‘क्ष’ युक्त शब्दों की वर्तनी के बारे
में संपूर्ण जानकारी कराई है। सातवे अध्याय में ‘हल चिह्न’ के प्रयोग के बारे में सोदाहरण विवरण दिया गया है।
आठवाँ अध्याय ‘उपसर्ग-प्रत्ययों’ के योग से बने शब्दों की वर्तनी
से संबंधित है। भ्रमवश एक वर्तनी के स्थान पर दूसरी वर्तनी का उपयोग करने से अर्थ
बदल जाता है। ऐसे शब्दों का वर्णन नौवें अध्याय में ‘कुछ शब्द युग्म’ शीर्षक से दिया गया है। अर्थ के
अनुरुप वर्तनी प्रयोग के लिए समग्र विवरण लेखक ने दिया है जैसे – मूल-मूल्य, अन्य-अन्न, कोश-कोस, निधन-निर्धन, अनल-अनिल आदि। इस प्रकार भाग एक में
वर्तनी से संबंधित संपूर्ण जानकारी कराकर लेखक ने बहुत उपयोगी सामग्री हमारे सामने
प्रस्तुत की है।
भाग दो
में ‘विराम चिह्न’ के अंतर्गत लेखक ने विराम चिह्न
क्या है और इसका प्रयोग क्यों किया जाता है जैसे महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार के
साथ विराम चिहनों के विकास तथा महत्व, पूर्ण विराम(1), प्रश्न चिह्न(?), विस्मय चिह्न(!), कोलन(उपविराम), (:), अर्ध विराम(;), अल्प विराम(,), ऊर्ध विराम(‘), निर्देशक चिह्न(-), विवरण चिह्न(:-), योजक चिह्न(हाइफन)(-), उध्दरण चिह्न (“ ”), इकहरे उध्दरण चिह्न (‘ ’), कोष्ठक [()], लोपचिह्न (...), संक्षेप सूचक बिंदू(.), त्रुटिपूरक या हंसपद(‘), आदि का विवरण विभिन्न विद्वानों
के महत्वपूर्ण विचारों को समेटते हुए दिया है। इस विराम चिह्न संबंधी अध्ययन की
उपयोगिता अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करते समय बहुत बढ़ जाती है।
भाग तीन
प्रूफ शोधन(प्रूफ रीडिंग) में लेखक ने प्रूफ शोधन की
विभिन्न दशाओं तथा सामान्य रुप से प्रूफ देखते समय इस्तेमाल में आनेवाले मानक
चिह्नों तथा उसके प्रकार्यों पर विवेचनात्मक टिप्पणी दी है। इसमें एक चिह्न, अर्थ और टिप्पणी इस प्रकार है - λ नया शब्द/ पद/ वाक्य जोडना हो छूट गया है जोड
दो उसे λ से सबक λ पराजय। इस अध्याय में लेखक ने एक नमूना अनुच्छेद देकर उसके प्रथम, द्वितीय और तृतीय प्रूफ- अंतिम (प्रिंट आर्डर के लिए) भी दिए हैं। इस ‘प्रैक्टिकल’ को देखने से प्रूफ के नियम और
उसकी उपयोगिता एकदम स्पष्ट हो जाती है।
अंत में
लेखक ने ‘अरबी-फारसी तथा अंग्रेजी से ग्रहीत
ध्वनियों का लिप्यांकन’ शीर्षक से विभिन्न शब्दों की जानकारी के साथ-साथ अंग्रेजी शब्द और उनकी
वर्तनी तथा अंग्रेजी शब्दों की वर्तनी में विशेष चिह्न आदि का विवरण दिया है।
हिंदी और हिंदीतर
भाषा भाषियों के लिए विशेषकर साहित्यिक तथा पत्रकारिता के क्षेत्रों में काम
करनेवालों के लिए यह पुस्तक अत्यंत उपयोगी है। वर्तनी की समस्याओं पर विभिन्न
संगोष्ठियों में तरह-तरह के मत व्यक्त करनेवाले
भाषावैज्ञानिक वर्तनी को एक सक्रिया रुप में लाने का प्रयास करने में अधिक रुचि
नहीं दिखाते हैं। इस कम महत्व का काम माना जाता है जबकि यह कार्य आसान नहीं है। वर्तनी लेखन व्यवस्था का मूल्य है अतः
इसकी उपेक्षा करना किसी भी भाषा के लिए हानिकारक हो सकता है। इस प्रकार के उपयोगी
एवं कठिन कार्य को यह पुस्तक पूरा करती है। इस में पग पग पर लेखकद्वय का श्रम
परिलक्षित होता है। हिंदी की मानक वर्तनी की सही रुपरेखा देकर उन्होंने भावी
पीढ़ियों को तथा हिंदीतर भाषाभाषी हिंदी प्रेमियों को एक अमूल्य निधि प्रदान की है। यह पुस्तक अपने में पूर्ण
तथा विचारोत्तेजक तो है ही, जानकारीपूर्ण और सहज भाषा में लिखी हुई भी है। ऐसी पुस्तकों का
हिंदी जगत में स्वागत होना ही चाहिए।