गरीबी नमो नमः
गरीबी नमो नमः
स्वतंत्र वार्ता, दिसंबर 27,1998
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
हे गरीबी, नमो नमः
हम हैं भारतवासी
यह था एक दिन रत्न गर्भ
आज
अपने पेट भरने के लिए
करते हैं लोग क्या नहीं
सौ रुपयों के लिए अमानुषिक हत्या,
आखिर बेच रहे हैं संतान को भी।
अधिकांश लोग
करते हैं पूजा-पाठ
देते हैं भगवान को सब कुछ
मांगते हैं एक संतान-
घूम रहे हैं अस्पतालों के पीछे,
दे रहें हैं लाखों-लाख
औलाद की कामना से।
इसी देश में और एक पार्श्व,
अपनी गरीबी के कारण
बेचने आया था एक
अपनी ही आत्मा के टुकड़े को।
इसका कारण क्या है?
देश में अकाल एक ओर,
दूसरी ओर बाढ़,
बढ़ रही है स्वार्थ लिप्सा,
दलालों का राज्य आ गया,
किसान बन गया मजदूर,
अब मजदूर ने भी
भिखारी का रुप धारण किया
परिणाम है इसी का,
अपनी ही संतान को बेच रहे हैं,
‘है-टेक’ महानगर के बाजार में।
मैं करता हूँ प्रणाम गरीबी को,
गरीबी नमो नमः