जवाहरलाल नेहरु एवं उनके विचार






जवाहरलाल नेहरु एवं उनके विचार

        डॉ. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

पूर्णकुम्भ – साहित्यिक मासिक पत्रिका

जून - 2002

        स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरु जी का जन्म 14 नवंबर 1889 (अठारह सौ नवासी) ई. को इलाहाबाद के एक संपन्न परिवार में हुआ था. नेहरु एक महान व्यक्ति थे. बलवान आत्मा और सुदृढ़ शरीर-ऐसा प्रतीत होता है कि आप में पूर्व जन्म की कोई अति पुण्यात्मा विद्यमान थी. नेहरु जी अपने बाल्यकाल के विषय में लिखते हैं -” मेरा बाल्य काल सुरक्षित और घटनारहित रहा है. नेहरु सत्याग्रह आन्दोलन में सबसे आगे होकर भाग ले रहे थे, अपनी इस काल की अवस्था उन्होंने मदहोश की बतायी है. इस सत्याग्रह आन्दोलन के बारे में नेहरु जी ने कहा कि – इस सत्याग्रह और तत्कालीन आंदोलन में जो बात मैं प्रशंसनीय समझता था, वह उसकी आचार संबंधी और नैतिक नीति थी. श्री गोपाल कृष्ण गोखले काँग्रेस दल के नेता थे. उन्हीं के शिष्य थे मोहनदास करमचंद गाँधी, मोतीलाल नेहरु और सामान्य अर्थों में जवाहरलाल नेहरु. शुरुआत में काँग्रेस के बारे में जवाहर लाल नेहरु ने कहा कि- मैं 1912 ( उन्नीस सौ बारह) में क्रिसमस के दिनों में बांकीपूर के अधिवेशन में प्रतिनिध बनकर गया था. यह बहुत सीमा तक अंग्रेजी पढे-लिखे धनीयानी लोगों का समागम था, जिस में खूब लोहा किए हुए कोट-पतलून दिखाई देते थे, वास्तव में यह एक मेल मुलाकात का अवसर मात्र ही था. इसमें न तो राजनीति थी, न ही किसी प्रकार का उत्साह.

       1935 (उन्नीस सौ पैंतीस) के संविधान के अनुसार कांग्रेस में ज्यादा लोग निर्वाचन लडना चाहते थे और उनमें सफलता प्राप्त कर कांग्रेस की नीति चलाना चाहते थे, परन्तु जवाहरलाल इसकी विरोध कर रहे थे, वे चाहते थे कि निर्वाचित तो लडे जाए, परन्तु शासन कार्य न किया जाए और इस प्रकार 1935 का संविधान व्यर्थ कर दिया जाए. उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषाण में ये शब्द कहे थे- शक्ति के बिना जिम्मेदारी लेना एक भयानक अवस्था है और फिर ऐसे संविधान में काम करना जिसमें स्थान-स्थान पर संरक्षणों और सुरक्षित अधिक अथवा धन के अधिकार पर बाधाएँ बनायी गयी हों.इसी भाषाण में नेहरु ने यह भी घोषणा की थी कि – मेरे लिए समाजवाद केवल आर्थिक सिद्धान्त नहीं है. मैं इसको पूरे दिल और दिमाग से जीवन का सिद्धान्त स्वीकार करता हूँ. मैं तो देश की स्वतंत्रता के लिए भी इसलिए यत्न करता हूँ, क्योंकि मैं यहाँ पर सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन चाहता हूँ. और इसके बिना आ नहीं सकते. मजहब के विषय में श्री जवाहरलाल नेहरु जी ने इस प्रकार अपना विचार व्यक्त किया है कि: “किसी भाषा के किसी भी शब्द के इतने विभिन्न अर्थ नहीं किए गए जितने मजहब अथवा इसी मतलब को प्रकट करनेवाले शब्दों के किए गए हैं.

            जवाहरलाल नेहरु रुस में प्रचलित सोशलिज्म की ही प्रशंसा करते थे. अपने को कम्युनिस्ट फिलासफी का भक्त भी घोषण करते हुए कहा कि- मार्क्स और लेनिन के अध्ययन ने मेरे मन पर बहुत प्रबल प्रभाव उत्पन्न किया है. इसने इतिहास और वर्तमान घटनाओं को नवीन रंग में उपस्थित किया है...... मैं निः संदेह कह सकता हूँ कि सोवियट क्राँति ने मानव समाज को एक बडी छलांग में आगे बढ़ाया है. इसने एक प्राकश युक्त ज्योति जलायी है जो अब बुझी नहीं जा सकती और इसने एक नवीन संस्कृति की नींव रख दी है जिधर विश्व प्रगति करेगा... मार्कस की मीमांसा और दृष्टिकोण में बहुत कुछ मैं सहज ही स्वीकार कर सकता हूँ.” भारत देश के परमपवित्र गंगा नदी के बारे में नेहरु अपना विचार इस प्रकार व्यक्त किया है कि-गंगा तो विशेषकर भारत की नदी है. लोगों को उस पर अपार श्रद्धा है. उसके साथ भारत की जातीय स्मृतियाँ, उसकी आशाएँ, और आशंकाएँ तथा उसकी जय-पराजय और उसके विजय-गीत जुडे हुए हैं. युगों पुरानी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की प्रतीक रही है. यह गंगा अनादिकाल से बहती हुई बदलती चली आ रही है, फिर भी बनी हुई है, वही गंगा की गंगा.

      पंडित जवाहरलाल नेहरु ने मरने के पहले अपनी वसीयत लिखी थी. इनमें दो अंश इस प्रकार हैं. (1) भारतीय जनता से मुझे इतना प्रेम और स्नेह मिला है कि मैं चाहे जो कुछ भी क्यों न करु, उसके अल्पांश का भी बदला नहीं चुका सकता. और सच तो यह है कि प्रेम जैसी अमूल्य वस्तु का बदला चुकाया भी नहीं जा सकता. (2) मैं चाहता हूँ मेरी भस्म का शेष भाग विमान द्वारा ऊपर से उन खेतों पर बिखेर दिया जाए जहाँ भरत के किसान कडी मेहनत करते हैं ताकि वह भस्म भारत की धूल और मिट्टी में मिलकर भारत का अभिन्न अंग बन जाए.



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