हिंदी के विकास में आन्ध्र का योगदान
हिंदी
के विकास में आन्ध्र का योगदान
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
पूर्णकुम्भ – साहित्यिक मासिक पत्रिका
जनवरी – 2002
दक्षिण में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की
प्रेरणा से राष्ट्रीय एकता के लिए हिंदी के पठन-पाठन का श्री गणेश हुआ. किसी भी
राष्ट्र की एकता के लिए एक अनुपम एवं अनन्य महत्वपूर्ण हथियार भाषा है. भारत देश
के लिए वह भाषा निस्संदेह हिंदी ही है. दक्षिण भारत के सभी भाषाओं के लोगों ने इस
बात को पहचानकर हिंदी पठन-पाठन शुरु किया. आन्ध्रवासी भी इस सिलसिले में स्वतंत्र
संग्राम से लेकर आजतक इस कार्य में पूर्ण रुप से लगे हुए हैं. सिर्फ पठन-पाठन तक
सीमित न रहकर साहित्य के प्रति भी रुचि रहने के कारण हिंदी में अपनी रचनाओं का सृजन
करके हिंदी साहित्य भण्डार की श्री वृद्धि की है. मातृभाषा में रचना करते समय लेखक
को अधिक सुवधि रहती है. एक भाषा को पूर्ण रुप से सीखने के बाद रचना करने के लिए
अधिक श्रम करना पडता है यहाँ अनेक समस्याएँ सामने आती है, विशेषकर भाषा संबंधी. एक
राष्ट्र भाषा ऐसी होनी चाहिए जिस में उस राष्ट्र की सारी प्रान्तीय भाषाओं के
शब्दों को भी अपनाकर आगे बढ़ना है. यह काम सिर्फ राष्ट्र को प्रान्तीय भाषाओं के
सृजनरत रचनाकारों के माध्यम से ही होता है. हमारी राष्ट्र भाषा की उन्नति में अनेक
लोगों का योगदान है. मैं इस लेख के अंतर्गत तेलुगु लेखकों के योगदान के बारे में
विवरण दे रहा हूँ. हिंदी में मौलिक लेखन, हिंदी में अनुवाद और हिंदी में तेलुगु
हिंदी का तुलनात्मक अध्ययन आदि तीनों भागों में विभाजित कर सकते हैं.
आन्ध्र पदेश में हिंदी में मौलिक सृजन
जंध्याल शिवन्न शास्त्री, पीसपाटि वेंकट सुब्बाराव और मोटूरि सत्यनारायण से शुरु
हुआ. शिवन्न शास्त्री जी ने हिंदी तेलुगु कोश और हिंदी व्याकरण की रचना की थी.
इसके बाद ओरुगंटि वेंकटेश्वर शर्मा जी आते हैं. शर्मा जी ने आध्यात्म योग और चित्त
विकलन नामक पुस्तक की रचना की. मौलिक रचनाकारों में आरिगपूडि रमेश चौधरी
उपन्यासकार के रुप में बहुत विख्यात हैं. उपन्यास के साथ कहानी और एकांकी क्षेत्र
में भी सफलता प्राप्त की थी. श्री बालशौरि रिडडी भी मौलिक उन्यासकार हैं. डॉ.
चावलि सूर्यनारायण मूर्ति अपनी कविताएँ-सती ऊर्मिला, मानसलहरी नाटक- समझौता, महानाश
की ओर आदि के द्वारा कवि एवं नाटककार के रुप में प्रसिद्ध हुए. आलूरि बैरागी चौधरी
ने पलायन, बदली की रात आदि उत्कृष्टतम काव्यों का सृजन किया. श्रीमती बी. दयावंती
जी ने हिंदी में कहानियाँ, एकांकी, रेडियो नाटक आदि की रचना की थी.
राष्ट्र भाषा की उन्नति के लिए दोनों भाषाओं में आदान-प्रदान की आवश्यकता
है. यह कार्य अनुवाद के द्वारा कर सकते हैं. आन्ध्र में यह कार्य अत्यन्त तीव्र
गति से चल रहा है. पहले पहल जंध्याल शिवन्न शास्त्री जी ने बिहारी सतसई के कुछ
अंशों का अनुवाद शुरु किया सन् 1957 में संत वेमना शीर्षक से डॉ. चलसानि सुब्बाराव
ने तेलुगु के मध्यकालीन महान संत कवि वेमना के सौ पद्यों का हिंदी रुपान्तरण
प्रस्तुत कर हिंदी तेलुगु भाषाओं की प्रवृत्तियों, विशिष्टताओं तथा बारीकियों का
परिचय दिया. तेलुगु के महान कवि पोतना कृत ‘आन्ध्र महाभारतम’ के चार उपाख्यानों का काव्यानुवाद वारणासी राममूर्ति रेणु ने प्रस्तुत किया.
डॉ. इलपावलूरि पांडुरंगाराव ने तेलुगु के प्रसिद्ध भक्त कवि त्यागराज के विशिष्ट
गेय पदों का हिंदी अनुवाद किया. ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता डॉ. सी. नारायण रेडडी जी
के ‘विश्वंभरा’ का
अनुवाद भीमसेन निर्मल जी ने किया. डॉ. पी. आदेश्वर राव ने बेजवाड गोपाल रेडडी जी
की कविताओं का अनुवाद किया. काव्यों के साथ-साथ कहानी उपन्यास आदि का भी अनुवाद
हुआ. श्री पी. वी. नरसिंहा राव, वेमूरि आंजनेय मर्मा, वेमूरि राधा कृष्ण मूर्ति,
प्रो. वै. वी रमणाराव, डॉ. एम. रंगय्या, डॉ. वै. लक्ष्मी प्रसाद, डॉ. एम. बी.वी.
आई. आर. शर्मा, ओम प्रकाश निर्मल, डॉ. पी. ए. राजू, डॉ. एस. ए. सूर्य नारायण वर्मा, डाँ. पी.
विजयराघव रेडडी, डॉ. आर.एस.सर्राजु, डॉ. वी. कृष्ण आदि अनेक लोगों ने तेलुगु से
हिंदी में अनुवाद किया.
हिंदी में तेलुगु हिंदी का तुलनात्मक अध्ययन का कार्य अत्यन्त जोर से चल
रहा है. तुलनात्मक शोध से दोनों भाषाओं की समानताओं को पहचान सकते हैं. यह
राष्ट्रीय एकता के लिए अत्यंत आवश्यक है. अब तक बहुत कार्य हुआ. इस दिशा में
आन्ध्र विश्ववद्यालय के हिंदी विभाग का योगदान तो अत्यन्त सराहनीय हैं. दक्षिण
भारत हिंदी प्रचार सभा के विश्वविद्यालय विभाग में भी इस दिशा में अछूते क्षेत्रों
में तुलनात्मक शोध कार्य संपन्न हुए हैं. साथ ही हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय,
उस्मानिया विश्वविद्यालय और श्री वेंकटेश्वर विश्वविदायालय का योगदान भी महत्वपूर्ण
है. कुछ तुलनात्मक शोध कार्यों के विषय इस संबंध में द्रष्टव्य हैं जैसे- हिंदी और
तेलुगु के स्वच्छंदतावादी काव्यों का तुलनात्मक अध्ययन (डॉ. पी. आदेश्वर राव)
सुमित्रानंद पंत तथा कृष्ण शास्त्री की स्वच्छंदतावादी काव्य-कृतियाँ (डॉ. पी. ए.
राजू) छायावादी एवं भाववादी कविता में प्रकृति चित्रण (डॉ. एस. ए. सूर्यनारायण
वर्मा) हिंदी और तेलुगु साहित्य पर गाँधीवाद का प्रभाव (डॉ. एम. विजय लक्ष्मी) सी.
नारायण रेडडी का विश्वंभरा काव्य और उसका हिंदी अनुवाद एक मूल्यांकन (डॉ. सी. अन्नपूर्णा)
आदि लग भग दो सौ से ज्यादा तुलनात्मक शोध कार्य अब तक हुए.
इस प्रकार साहित्य के विभिन्न विधाओं के
माध्यम से हमेशा राष्ट्र भाषा की उन्नति में आन्ध्र के रचनाकारों, अनुवादकों और
शोधकर्त्ताओं का योगदान तो अत्यन्त सराहनीय है.