कर्फ्यू



कर्फ्यू 
 प्रोएस.वी.एस.एसनारायण राजू 



 पूर्णकुंभ 
जुलाई 1998                                                   
        
आँखों के सामने धोखा,
तो सिर्फ देखते हैं,
धर्म हानि की बात,
सुनते-सुनते ही,
नाश करते हैं राष्ट्र-संपदा,
वक्त है काला बाजारी,
राजनीतिज्ञ तथा गुंडो का,
असहाय, अबोध जनता की,
चिल्लाहट, हाहाकार,
आकाश तक पहुँच गया,
पर पहुँच पाया सरकार तक,
सब हो गया भस्म.
शुरु हुआ आगमन,
राजनीतिक दलों का,
अपना फायदा उठाने,
कर्फ्यू लगाया,
गया श्मशान प्रशान्त.
घरों के अंदर,
चूल्हों में बिल्ली सो गई,
गरीबों को काम है रोटी,
उधर वादे पे वादा,
इधर पेट तो खाली.
इसी बीच में आतंक शक्तियाँ,
यथेच्छ चला रही है अपना धन्धा,
मार रही हैं सब को,
लूट रही हैं घरों को,
जला रही हैं बसों को,
तोड़ रही हैं प्रार्थना स्थलों को,
पर अबोध जनता को,
सहना पड़ता है कष्टों को,
फायदा है राजनीतिज्ञों को.
नाश करना है तो इन सबको,
देना है समानाधिकार हरेक को,
कुल जाति, धर्म के नाम पर नहीं,
भारतवासी के नाम पर.
यह लागू होने से,
लोग भूल जाएँगेकर्फ्यू.


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