मुनींद्र अमृतोत्सव अभिनंदन ग्रंथ



मुनींद्र अमृतोत्सव अभिनंदन ग्रंथ 

डॉ.एस.वी.एस.एस.नारायण राजू 

संकल्य

जनवरी–मार्च,2001


वरिष्ठ पत्रकार एवं समर्पित हिंदी सेवी श्री मुनींद्र को 11 नवंबर, 2000 ई. को आयोजित उनके अमृतोत्सव पर एक अभिनंदन ग्रंथ भेंट किया गया ।भारतीय भाषा पत्रकारिता : एक अवलोकन शीर्षक अभिनंदन ग्रंथ में हैदराबाद और देश के अन्य भागों के लेखकों के 38 महत्त्वपूर्ण आलेख संकलित है। 200 पृष्ठों के इस ग्रंथ में मुनींद्र जी के व्यक्तित्व को उजागर करने वाले खंड मुनींद्र : जैसा देखा जाना में 12 स्थानीय लेखकों के उद्गार संकलित है और साथ ही स्वयं मुनींद्र का आत्म कथ्य अंत तक पत्रकारिता से जुड़ा रहूँ तथा उनका एक लंबा साक्षात्कार चाँदनी में हिलती है परछाई प्रकाशित है। दूसरे खंड में दक्षिण भारत की भाषा पत्रकारिता शीर्षक से तेलुगु, तमिल, मलयाळम, कन्नड़ और मराठी पत्रकारिता पर पहली बार हिंदी में शोधपूर्ण सामग्री उपलब्ध कराने के साथ - साथ दक्षिण भारत की उर्दू और हिंदी पत्रकारिता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में आकलन किया गया है। अभिनंदन ग्रंथ का तीसरा खंड हिंदी पत्रकारिता का बहुआयामी परिवेश है, जिसमें विकास क्रम, बहस, प्रयुक्ति संदर्भ और भाषा संदर्भ शीर्षक चार उपखंड हैं जिनमें हिंदी पत्रकारिता की विविध क्षेत्रों में लगभग डेढ़ सौ वर्षों से अधिक की उपलब्धियों का आकलन किया गया है।

मुनींद्र अभिनंदन ग्रंथ का संपादन वेमूरि आंजनेय शर्मा, प्रो. दिलीप सिंह और डॉ. ऋषभ देव शर्मा ने किया है। इन्होंने संपादकीय में ठीक ही कहा है कि - ' यह अभिनंदन ग्रंथ परिपाटी से थोडा हटकर है. पत्रकारिता की मूलभूत –और समस्त प्रवृत्तियाँ इसके माध्यम से देखी जा सकें, यह प्रयत्न हैं. संपादकों ने यह भी स्पष्ट किया है कि मुनींद्र जी के अमृतोत्सव पर उनके इससे अच्छा तोहफा नहीं हो सकता था कि उन्हें उन्हीं के अभिनंदन बहाने भारतीय भाषा पत्रकारिता पर केंद्रित एक संग्राहिका भेंट की जाए।’ ग्रंथ की विषयवस्तु कितनी महत्वपूर्ण है इसका अनुमान इसमें प्रकाशित सामग्री की सूची का अवलोकन करने से सहज ही हो सकता है, जो इस प्रकार है संपादकीय के अनंतर विषय - प्रवेश के रूप में जो खंड है, उसका शीर्षक है - क्या कहें आज जो नहीं कहीं इसमें सम्मिलित सामग्री है. 1. आत्म कथा : अंत तक पत्रकारिता से जुड़ा रहूँ - मुनींद्र, 2. साक्षात्कार : चाँदनी में हिलती है परछाई - कविता वाचक्नवी ।

इसके अनंतर पहला खंड मुनींद्र : जैसा देखा जाना में ये आलेख संकलित हैं – 1. हिंदी के प्रबल पक्षधर : मुनींद्र जी – सी बी चारी, 2. वरिष्ठ हिंदी पत्रकार : मुनींद्र जी - वेमूरि आंजनेय शर्मा,3. भाई मुनींद्र - काटम लक्ष्मी नारायण, 4. मुनींद्र : एक सहज व्यक्तित्व - तेजराज जैन, 5. अजात शत्रु मुनींद्र - भीमसेन निर्मल, 6. श्री मुनींद्र : एक मौन सांवादिक - वसंत चक्रवती, 7. वो आज भी आगे - आगे मिशल - सी लिए चलते हैं - शशि नारायण स्वाधीन, 8. मुनींद्र जी : जैसा मैंने उन्हें पाया - विजयराघव रेडी, 9. दक्षिण समाचार का महत्व और मुनींद्र जी - वेमूरि राधाकृष्णमूर्ति, 10. 'दक्षिण समाचार ' की संपादकीय दृष्टि - राजकिशोर पांडेय, 11. पत्रकार मुनींद्र की व्यापक दृष्टि - एन . पी . कुट्टन पिल्लै, 12. मुनींद्र जी का भाषा चिंतन : ' कल्पना ' के आईने में - सुधीर कुमार।

दूसरे खंड दक्षिण भारत की भाषा पत्रकारिता में प्रस्तुत सामग्री इस प्रकार है – 1. तेलुगु पत्रकारिता - सी . अन्नपूर्णा, 2. तमिल पत्रकारिता - एम. शेषन, 3. मलयाळम पत्रकारिता - एन ई विश्वनाथ अय्यर, 4. कन्नड़ पत्रकारिता - ना . नागप्पा, 5. मराठी पत्रकारिता - चंद्रकांत बांदिवडेकर, 6. उर्दू पत्रकारिता - नेहपाल सिंह वर्मा, 7. हिंदी पत्रकारिता गोपालशर्मा। हिंदी पत्रकारिता का बहुआयामी परिवेश शीर्षक तीसरे खंड के पहले उपखंड विकास क्रम में ये लेख हैं – 1. राष्ट्रीय चेतना और हिंदी पत्रकारिता - भवानी लाल भारतीय, 2. नवजागरण और हिंदी पत्रकारिता - पूर्णिमा शर्मा, 3. हिंदी पत्रकारिता के प्रकाशस्तंभ - दिलीप सिंह और ऋषभ देव शर्मा, 4. पूर्वोत्तर भारत में हिंदी पत्रकारिता - देवराज।

दूसरे उपखंड बहस में शामिल हैं – 1. ऐसा हो संपादकीय तो बेहतर - रवि श्रीवास्तव, 2. प्रिंट मिडिया पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आतंक - किशोरी लाल व्यास।

प्रयुक्त संदर्भ शीर्षक तीसरे उपखंड में से सात लेख हैं – 1. विज्ञापन की भाषा और अनुवाद - वी. रा. जगन्नाथन, 2. खेलकुद पत्रकारिता और हिंदी - ऋषभ देव शर्मा, 3.. आर्थिक पत्रकारिता - दयानंद, 4. आर्य समाज की हिंदी विज्ञान पत्रकारिता - संजय शर्मा ' उदय ', 5. राजभाषा हिंदी पत्रकारिता - गोवर्धन ठाकुर, 6. हिंदी की सरकारी पत्रिकाएँ - भगवती प्रसाद निदारिया, 7. साहित्य समीक्षा और हिंदी पत्रकारिता - दिलीप सिंह।

और अंत में चौथे उपखंड भाषा संदर्भ में शामिल तीन आलेख इस प्रकार है – 1. हिंदी पत्रकारिता और अनुबाद - कैलाश चंद्र भाटिया, 2. आधुनिक हिंदी पत्रकारिता की शब्द संपदा - सुरेश कुमार, 3. हिंदी पत्रकारिता की भाषा - दिलीप सिंह।

इसमें संदेह नहीं कि यह ग्रंथ मुनींद्र जी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालने के साथ - साथ उनकी विचारधारा और कल्पना के अनुरूप भारतीय भाषाओं की पत्रकारिता के आकलन तथा हिंदी की पत्रकारिता के बहुमुखी विकास का समीक्षात्मक चित्र प्रस्तुत करने के कारण एक सर्वथा संग्रहणीय संदर्भ ग्रंथ बन गया है ।


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