विवेक
विवेक
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
केरल भारती
नवंबर, 2007
विवेक का अर्थ है भली बुरी वस्तु का ज्ञान, सत असत् का ज्ञान। मन की वह शक्ति विवेक है जिस से भले बुरे का ज्ञान होता है। अच्छे और बुरे को पहचानने की शक्ति विवेक है। जैनों के अनुसार बहुत ही प्रिय पदार्थों का त्याग ही विवेक है। अतः हम कह सकते हैं कि उचित और अनुचित का विचार कर पाने की बुद्धि, ज्ञान और शक्ति को ही विवेक कह सकते हैं।
मनुष्य को सदविवेक या सदविचार कर पाने में समर्थ सामाजिक प्राणी माना जाता है। वह जिसे सत् और असत् का ज्ञान हो, अच्छे बुरे को पहचाननेवाला हो उसको विवेकवान या विवेकशील व्यक्ति कहते हैं। मनुष्य विवेकशील है। अच्छे बुरे कार्य और उसके परिणाम पर विचार कर सकता है। इसी कारण वह पशु न होकर उस से भिन्न एवं ऊँचा प्राणी है । नहीं तो आहार , निद्रा , भय , मैथुन आदि शेष सभी तरह की क्रियाएँ मनुष्य एवं पशु में एक समान ही हुआ करती हैं। मनुष्य अपने पराए में विभेद भी कर सकता है और धर्म - अधर्म का स्वरूप एवं महत्व भी जान पहचान सकता है । इसी कारण वह विवेकशील प्राणी है। उसे माता - पिता , भाई - बहन , पति - पत्नी के आपसी संबंधों और व्यवहारों का भी भली भाँति पता है जबकि पशु की दृष्टि प्रायः हर दूसरे हमरूप - रंगवाले के साथ एक समान ही हुआ करती है। इसी कारण वह झुण्ड या खेड तो बना सकता है समाज नहीं । विवेक के बल पर मनुष्य जीवन - समाज के बनाए हुए और स्वयं बन गए सभी नियमों का पालन कर सकता है और दूसरों से करा भी सकता है। वह अपने कर्त्तव्यों को
पहचानकर उनका पालन कर सभी की उन्नति और विकास के सहारा बन सकता है और फिर अपने एवं सभी के अधिकारों को पाने या रक्षा के लिए संघर्ष भी कर सकता है। इस प्रकार जीवन - समाज के सभी तरह के संबंधों सरोकारों, प्रगति और विकास का मूलाधार विवेक ही है।
विवेक को खो जाना अधिक है। अविवेक व्यक्ति को भीतर ही भीतर डरपोक या कायर बना देता है। कौरव दुर्योधन का सगे संबंधियों , इष्ट मित्रों , गुरुजनों और सहायकों के साथ मारा जाना अविवेक के दुष्परिणामों को जतानेवाला सजीव प्रमाण है।
विवेक को कभी भी नहीं खोना चाहिए अगर विवेक की सीमाएं तोडकर अविवेक या विचार को अपनी नीतियों - नियों को आधार बनाना धार के विपरीत कमजोर हाथों से नाव चलाना ही है। विवेकशून्य व्यक्ति अपने आगे - पीछे दौए - बाएँ कहीं कुछ भी देख नहीं पाता। न देख पाना उसे हमेशा अनिर्णय की स्थिति में रखा करता है। कई बार गलत निर्णय लेने को भी बाध्य कर दिया करता है। इसलिए विवेक सम्मत निर्णय उत्तम है।
राजपूत वीर विवेक सम्मत निर्णय न लेने के कारण उनके अपने ही कदम उनके नाश और अधोगति का कारण बन गया था। मनुष्य विवेकशील प्राणी है। विवेकयुक्त मनुष्य अपने और अपनों केलिए जीवित रहता , जीवित रहने केलिए तरह तरह के उपाय खोजता है। आम तौर पर भाग्यवादी विचारधारा के समर्थक लोग हैं कि बिना भाग्य के मनुष्य कुछ भी, किसी भी प्रकार की सफलता या सुख समृद्धि प्राप्त नहीं कर सकता। परंतु जो व्यक्ति विवेक से युक्त निर्णय लेकर हमेशा परिश्रम करता है, वह सदा आगे रहता है। विवेक सब से आवश्यक गुण हैं।
सदा विवेकयुक्त निर्णय लेना चाहिए । महान ज्ञानी होकर भी विवेक खोने के कारण रावण ने सीता का हरण किया और अपने घर - परिवार, वंश, राज्य सहित अपने भी प्रोणों से हाथ धो बैठा। इसलिए किसी भी हालत में विवेक को न खोना चाहिए। विवेक विचार की ऊर्ध्वमुखी मशाल जलाकर हमेशा हाथों में थामें रखिए और निश्चिंत होकर प्रगति और विकास के अविरत पथ पर बढ़ते जाइए। विवेक मशाल हाथ में रहने पर अविवेक जन्य विपत्तियों का अंधकार कभी भी पास नहीं फटक पाएगा। जो विवेक से काम करता है वह सदा आगे बढ़ता है।