राष्ट्र भाषा हिंदी







राष्ट्र भाषा हिंदी

      प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू

दैनिक प्रजा सहायता,सितंबर,2002
राजभाषा विशेषांक   
                       
  आज हिंदी भाषा का उपयोग दिन--दिन बढ़ता जा रहा है। भारत देश में ही शायद राष्ट्र भाषा का प्रचार-प्रसार के लिए सरकार की ओर से अनेकानेक विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। आम तौर पर राष्ट्र-भाषा तो राष्ट्र की समस्त जनता की आत्मीय भाषा होनी चाहिए। राष्ट्र-भाषा की रक्षा के लिए कोशिश करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है। वास्तव में इसके पीछे राजनैतिक कूटनीति सरकार के संपूर्ण कार्यक्रम, पत्राचार हिंदी में करने से हर विषय का वास्तविक अर्थ आम जनता भी समझ सकती है। यदि जनता को पूर्ण रुप से सरकार के कार्यक्रमों के बारे में पता चले तो नौकरशाही लोगों की तानाशाही अपने आप ही बंद हो जाती है। इसीलिए सिर्फ अधिकारी लोगों की कूटनीति के कारण ही आज भी भारत देश में राष्ट्र भाषा हिंदी की वर्तमान स्थिति का कारण है। यह एक पक्ष है।

अब और दूसरे पक्ष पर देखने से भारत देश में अगर एक प्रांत से दूसरे प्रांत में जाने से आमतौर पर आदान-प्रदान की भाषा निर्विवाद रुप से हिंदी ही है। सो अगर जहाँ आवश्यकता है वहाँ भाषा लोग अपने आप सीखते हैं। जोर-जबरदस्ती से बार-बार एक भाषा के बारे में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने से लोगों में अनावश्यक व्यतिरेक की भावना सहज ही उत्पन्न होती है।

  भारत जैसे बहुभाषी देश में विभिन्न प्रांतो में आदान-प्रदान की भाषा प्रांतीय भाषा के साथ और एक भाषा की आवश्यकता है। सब लोगों को मालूम है कि वह भाषा सिर्फ हिंदी ही है। लोगों में हिंदी के प्रति सदभावना है। अंग्रेजी का उपयोग करनेवालों की संख्या बहुत कम है। अधिकांश लोगों की वास्तविक बोल-चाल और आदान-प्रदान की भाषा हिंदी है। इसका प्रमाण यह है कि अधिकांश पत्र-पत्रिकाओं के साथ विभिन्न टी.वी.चैनल्स हिंदी में ही प्रारंभ कर रहे हैं। अगर हिंदी में आरंभ न करने से अपने -आप पीछे पडेंगे या बंद करना पड सकता है। यहाँ किसी का दबाव नहीं है। मगर हिंदी में आरंभ कर रहे है इसका अर्थ यह है कि किसी एक भाषा को बढ़ावा देने के लिए ज्यादा अनावश्यक बहस करना, प्रयास करना गलत बात है। जनता की माँग है तो कौन रोक सकता है।

  अब हमारे सामने यह प्रश्न उठता है कि ये सारे कार्यक्रम करने की क्या जरुरत है? करने में कोई गलत बात नहीं। भाषा तो हमेशा आदान-प्रदान की है। सही तरह संप्रेषण करने के लिए लायक बनाना है। आधुनिक युग की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लायक बनाना है। इसके लिए विभिन्न भाषाओं से आवश्यक शब्दावली का ग्रहण करना चाहिए। हमेशा भाषा का सरलीकरण करके आम जनता के नजदीक और उपयोग करने  लायक बनाना है। भारत देश के लिए कोई भी संदेह के बिना कह सकते हैं कि वह भाषा मात्र हिंदी ही है।

  हम सब सच्चे नागरिक होने के नाते संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने के लिए सक्षम तथा समर्थ भाषा हिंदी को समस्त जनता द्वारा अपने दैनिक एवं आजीविका चलाने के लिए लायक भाषा के रुप में निर्माण करने की आवश्यकता है। इस रास्ते में हिंदी को आगे बढ़ाने का कार्य हर हिंदी प्रेमी के ऊपर है। हम सचमुच हिंदी सेवा को ईश्वर सेवा मानकर सेवा करनी है।   

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