निर्दंभी, निराडंबर, सलीकेदार और संजीदा व्यक्तित्व : श्री काज वेंकटेश्वर राव
निर्दंभी, निराडंबर, सलीकेदार और
संजीदा व्यक्तित्व : श्री काज वेंकटेश्वर राव
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
हिंदी
कृषक, बाबू गंगाशरण सिंह पुरस्कार विजेता
श्री
काज वेंकटेश्वर राव जी का अभिनंदन ग्रंथ, 2005
हिंदी प्रचार-प्रसार का इतिहास को
एक बार अवलोकन करने से अनेक निस्वार्थ प्रचारक सामने आएँगे। अनेक महान प्रचारकों ने समय-समय पर नए
संदर्भ और नवीन पद्धतियों को अपनाकर हिंदी प्रचार-प्रसार परंपरा के विकास में
महत्वपूर्ण योगदान दिया है। फलतः आज हिंदी प्रचार-प्रसार कार्य शीर्षस्थ रहा।
दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार-प्रसार के बारे में अवलोकन करने से देवदास गाँधी से
लेकर अब तक अनेक लाखों प्रचारक विभिन्न प्रांतों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी,
निभा रहे हैं और निभाएँगे। इस में कोई शक की बात नहीं है। पच्चीस साल पहले हिंदी
प्रचार-प्रसार के इतिहास में एक स्वर्ण युग आरंभ हुआ। वह स्वर्ण युग का अर्घय
पुरुष और कोई नहीं, प्रचारक सिरोमणी श्री काज वेंकटेश्वर राव जी है।
श्री काज
वेंकटेश्वर राव के जीवन की स्थूल घटनाओं तथा उनके स्वभाव के विशिष्ट गुणों का
अवलोकन करने पर उनकी अनुशासन प्रियता दृष्टिगत होती है। उनकी प्रत्येक रचना पर
उनके व्यक्तित्व के कोई विशिष्ट पक्षों का अक्षुण्ण प्रभाव दिखाई पडता है।
परिवेशजन्य विसंगतियों के प्रति वे सदा सजग रहकर अपनी कृतियों में सामाजिक
विद्रूपताओं का खंडन करते हुए नवीन-मूल्यों की प्रतिष्ठा व जन चेतना की जागृति का
संदेश देते हैं। स्पष्टवादिता एवं निर्भिकता के कारण काजा जी का व्यक्तित्व
विशिष्ट बन पड़ा है। उन्होंने अपने जीवन में अपने सिद्धांतों व जीवनादर्शों को
त्यागकर कभी किसी से समझौता नहीं किया।
काजा जी ‘अभिलाषी’ उप नाम से लेखन कार्य किए। काजा
जी रचनावली इस प्रकार है। अंतस्तल (हिंदी काव्य संग्रह) सरोज सौरभमु (तेलुगु)
नेनासिंचिन राज्यमुलो (तेलुगु लेख) महात्मुनी सूक्तुलू (तेलुगु) राति गुंडेलु
(तेलुगु उपन्यास) मन रथ सारथुलु (तेलुगु) प्रमीला (तेलुगु उपन्यास) बोस व्यासालु
(तेलुगु लेख) डॉ. पाषाणं (तेलुगु उपन्यास) कदलिंचिन कन्नीरु (तेलुगु कहानी संग्रह)
दिग्गजमुलु दिव्य दीपिकलु (तेलुगु) परिचायालु-पाठालु (तेलुगु)।
काजा जी की
कृतियों में विभिन्न समस्याओं को लेकर युगीन अव्यवस्था पर व्यंग्यात्मक शैली में
प्रहार किया गया है। एक बेहद भाव प्रवण और चेतनाशील कलाकार होने के नाते वे कई
संदर्भों में विसंगतिपूर्ण सामाजिक स्थितियों की गहरी समीक्षा करते हुए उसकी
दुर्बलताओं का यथार्थ चित्रण करना चाहते हैं। अनुभव की प्रामाणिकता एवं यथार्थ के
आग्रह के कारण उनकी हर रचना में वे कई रुपों में प्रकट होते हैं और उनकी संवेदना
गहन से गहनतम प्रतीत होती है। उनकी कृतियों में दिल और दिमाग का सृजन का एक
जबर्दस्त अनुशासन दिखाई पडता है और उनकी कृतियों में उनकी रचना प्रक्रिया का
सुव्यवस्थित और सुघटित रुप स्पष्टतः प्रकट होता है।
काजा जी बनावट
में रहने के आदी नहीं है। इसलिए वे अधूरी जिंदगी जीने के पक्ष में नहीं है। वे
अपने दोस्तों, साथियों के साथ पूर्णतः जागरुकता और संचेतना के साथ रहने के इच्छुक
भी है। भारतीय संस्कृति का अक्षुण्ण प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर दिखाई पडता है।
साहित्य व जीवन के प्रति उनका दृष्टिकोण निराला था।
काजा जी एक
राष्ट्र भक्त हैं। राष्ट्र के प्रति असीम भक्ति भावना के कारण भूतपूर्ण प्रधान
मंत्री इंदिरा गाँधी की मृत्यु पर अपनी
प्रति क्रिया एक छोटी बच्ची के मुँह से कहलवाया, परंतु वह बच्ची वास्तव में आधुनिक
गंगाबाबू काजा जी है। कविता इस प्रकार है।
नहीं, माँ,
आज मैं नहीं रोऊँगी
“त्रिवेणी से सीखा उसने,
धैर्य, सौम्य,
करुण से चलना।
हिमालय से
सीखा उसने
देश का सिर
उठाये रखना ।।
देश भक्त का पुंज बन कर,
शांति क्राँति
की राह पकड़ी।
करोडों जन-मन
की चेतना बन,
स्तुत्य जीवन की ज्योति बनी।
नहीं माँ, आज
मैं न रोऊँगी,
सही कारण इस का
मैं ढूँढूँगी।”
काजा जी एक
सफल, प्रतिबद्ध, कर्मठ प्रचारक ही नहीं, एक संवेदनाशील कवि भी हैं। स्वयं विद्वान
होने के बावजूद भी कविताओं में संस्कृत निष्ठ कठिन शब्दों के बजाय अत्यंत सरल
सामान्य शब्दों का प्रयोग करके, कवि ने विभिन्न भावों को पाठकों तक पहुँचाने का
स्तुत्य प्रयास किया है।
काजा जी द्वारा रचित अनेक विचारोत्तेजक लेख आज
भी अत्यंत प्रासंगिक कहने में कोई अत्युक्ति नहीं। आज सुबह से शाम तक राष्ट्र में
होने वाले विभिन्न भ्रष्ट राजनैतिक कुकृत्यों को देखने से लेखक के “नेनासिंचिन राज्यमुलो” के अनुरुप रहने से कितना अच्छा
रहता है यह देश आदि भावनाएँ तुरंत हर पाठक के मन में जागृत होता है। इस से लेखक की
प्रतिबद्धता, राष्ट्र तथा जनता के प्रति सच्चा प्यार आदि अवगत होता है।
काजा जी के व्यक्तित्व तथा रचनाधर्मिता का
अवलोकन करने से यह सिद्ध होता है कि वे निर्दंभी, निराडंबर, सलीकेदार और संजीदा
व्यक्ति है। काजा जी ने अपने प्रत्येक रचना में मध्य वर्गीय जीवन की विसंगतियों,
उसके खोखलेपन और आडंबर को उखाडते हुए समकालीन जिंदगी के कई यथार्थ बिबों को खींचा
है। उनकी रचनाओं में अपने विसंगतिपूर्ण परिवेश में संघर्षरत आधुनिक व्यक्ति की
बेचैनी को अभिव्यक्ति मिली है। श्री काज वेंकटेश्वर राव जी युग जीवन के सार्थक
प्रतिबिंब को दर्शानेवाली अपनी कृतियों में सामाजिक सरोकार के रचनाकार के रुप में
दर्शन देते हैं।