केरल में हिन्दी प्रसार का एक प्रेरक दस्तावेज




केरल में हिन्दी प्रसार का एक प्रेरक दस्तावेज 

प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू 

पूर्णकुंभ, साहित्यिक मासिक पत्रिका,

जून 1998




भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्र में विभिन्न भाषा-भाषियों के माध्यम से राष्ट्र – भाषा हिन्दी की सेवा से संबंधित जानकारी देना अत्यंत आवश्यक है। भारतीय आत्मा की भाषा ‘हिन्दी’ के लिए अहिन्दी प्रान्तों का योगदान कम नहीं है। इस में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हिन्दी प्रचार – प्रसार में अहिन्दी भाषियों ने ही विशेष परिश्रम किया है। राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी की प्रेरणा से दक्षिण भारत के चार राज्यों से अनेक लोगों ने हिन्दी प्रचार – प्रसार करके राष्ट्रीय एकता में अपना योगदान दिया है। विभिन्न अहिन्दी प्रान्तों में हिंदी भाषा तथा साहित्य के विकास से संबंधित जानकारी देने का कार्य अभी-अभी शुरु हुआ है। इसी श्रृंखला में मलयालम के प्रसिद्ध हिन्दी रचनाकार डॉ. एन.ई. विश्वनाथ अय्यर द्वारा विरचित “केरल में हिन्दी भाषा और साहित्य का विकास” प्रथम एवं पथप्रदर्शक ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में पाँच खण्ड हैं 1) केरल एवं हिन्दी भाषा, 2) हिन्दी प्रचार, 3) हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण, 4) उच्चतर हिन्दी अधययन एवं शोध, 5) केरल में मौलिक और अनूदित हिन्दी साहित्य; हिन्दी पत्रिकाएँ। 

प्रथम अध्याय में लेखक ने केरल के ऐतिहासिक विकास परिचय देते हुए ‘रामायण’ में “नदीं गोदावरीं चैव सर्वमेवानुपश्यत । तथैवांध्रंश्च पुंड्रांश्च चोलान् पांडयांश्च केरलान “(रामायण, किष्किंधाकाण्ड, सर्ग 41) और महाभारत में “पांडवाय द दौ पांड्यःसंखास्तावत एवच चन्दना गुरु चानन्तं मुक्ता वै डूर्य चित्रिना चोलश्च केरलश्यो भौ” (महा भारत, सभा पर्व, अध्याय 78) केरल भूमि के महत्व को रेखांकित किया है। बाद में ‘केरल की एक झाँकी के अंतर्गत केरल राज्य की संपूर्ण जानकारी आंकडों सहित दी गर्ई है। ‘केरल में प्रयुत्त्क भाषाएँ” के अंतर्गत राज्य के विभिन्न भाषा - भाषियों का परिचय सम्मिलित है। ‘मलयालम भाषा और हिन्दी’ शीर्षक के अंतर्गत व्याकरण की दृष्टि से मलयालम और हिन्दी भाषा के बीच निहित समानताओं एवं असमानताओं का विस्तृत विवेचन किया गया है। केरल और हिन्दी के संपर्क-स्रोत में श्री शंकराचार्य के प्रभाव के साथ विभिन्न लोगों द्वारा किए गए हिन्दी के विकास से संबंधित प्रयासों का संपूर्ण परिचय लेखक ने दिया है। प्रथम खण्ड में केरल राज्य का परिचय वेदों से लेकर आजतक देने के कारण यह खण्ड बहुत उपयोगी बन गया है। इसे पढ़ते समय केरल राज्य की ऐतिहासिकता के साथ-साथ प्रस्तुत भौगोलिक रुप-रेखा तथा जनसंख्या, विभिन्न भाषा-भाषियों, हिन्दी तथा मलयालम के निकट संबंधों का संपूर्ण नक्शा हमारी आँखों के सामने आ जाता है। इस प्रकार की ऐतिहासिक जानकारी देते समय बहुत सतर्कता से देना पड़ता है, यदि त्रुटियाँ रह जाएँ तो ग्रन्थ की मौलिकता पर ही प्रश चिह्न लग जाता है, लेकिन समर्थ लेखक ने इन त्रुटियों से बचते हुए ग्रन्थ को सही दिशा दी है। 

द्वितीय खण्ड ‘हिन्दी प्रचार का शंखनाद : ऐतिहासिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन’ स्वदेशी आन्दोलन से लेकर विभिन्न साहित्य सम्मेलनों का परिचय देता है। महात्मा गाँधी जी के वक्तव्य – “सब से कष्टदायी मामला द्रविड भाषाओं के लिए है। वहाँ तो कुछ प्रयत्न ही नहीं हुआ है। हिन्दी भाषा सिखानेवाले शिक्षकों को तैयार करना चाहिए। ऐसे शिक्षकों की बहुत ही कमी है।” के साथ दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार के श्री गणेश का परिचय दिया गया है। इस में हिन्दी प्रचारकों की लगन और उनके त्याग का परिचय भी दिया गया है। श्री एस.के. दामोदरन उण्णिजी ने केरल के गाँव गाँव तक हिन्दी संदेश को पहुँचाकर जो अनुपम सेवा की, उनका परिचय उत्पेरक है। इस के साथ केरल में हिन्दी के विकास की विभिन्न मंजिलों का परिचय लेखक ने कराया है।‘केरल के मुख्य प्रचार केंद्र के अंतर्गत तिरुवनंतपूरम, कोल्लम, चेंगन्नूर, मोवेलिक्करा, हरिप्पाड, केट्टायम, कोच्चिन, तृश्शुर, ओट्टप्पालम, पालघाट, कालिकट (कोष़िकोड) और उत्तर केरल के नगरों में विभिन्न संस्थाओं तथा विशिष्ट हिन्दी सेवियों का परिचय दिया गया है। ‘केरल की हिन्दी प्रचार संस्थाएँ’ शीर्षक के अंदर दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा से लेकर हिंदी प्रेमी मंडल वेच्चूर, वैग्कम तक अनेकानेक प्रचार संस्थाओं तथा उनके नियम और परीक्षाओं से संबंधित समाचार दिया गया है। इस खण्ड में केरल में हिन्दी प्रचार-प्रसार के संपूर्ण इतिहास की एक सुन्दर झाँकी प्रस्तुत की गई है। 

तृतीय खण्ड में केरल में हिन्दी शिक्षण-प्रशिक्षण का परिचय दिया गया है। ‘हिन्दी प्रचार सभाओं में हिंदी शिक्षण’ शीर्षक के अंतर्गत केरल में विभिन्न हिन्दी प्रचार सभाओं की मानक परीक्षाओं का विशद वर्णन किया गया है। ‘केरल के स्कूलों में हिन्दी’ के अंतर्गत 1922 से लेकर अब तक विद्यार्थियों में हिन्दी की प्रगति पर संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत की गई है। ‘केरल के स्कूलों में हिन्दी शिक्षण की प्रविधि’ में अध्यापन कार्य चलाने तथा प्रश्नपत्र की तैयारी के बारे में विवरण है। ‘तृतीय भाषा के रुप में हिन्दी का शिक्षण’ में पाँचवीं कक्षा से लेकर दसवीं कक्षा तक तृतीय भाषा के रुप में हिन्दी के पाठ्यक्रम तथा नमूना प्रश्नपत्र सहित विस्तृत वर्णन है। ‘केरल में हिन्दी प्रशिक्षण का विकास’ में प्रचारक विद्यालयों के साथ प्रशिक्षण संस्थाओं जैसे प्रचारक, बी,एड. और एम.एड. परीक्षओं की जानकारी कराई गई है। इसके साथ-साथ प्रशिक्षण संस्थाओं के पाठ्य क्रम तथा परीक्षा चलाने की विधि के बारे में भी विवरण है। हिन्दी प्रचार के लिए प्रचारकों की आवश्यकता है लेकिन प्रचारक को योग्य होना है तो उसके लिए प्रशिक्षण पाना अत्यन्त आवश्यक है। केरल में हिन्दी प्रशिक्षण कार्य के विकास के बारे में इस खण्ड में विस्तृत जानकारी प्रस्तुत की गई है। 

चतुर्थ खण्ड में उच्चतर हिन्दी अध्ययन एवं शोध का विस्तृत विवेचन किया है। ‘केरल के कालेजों में हिन्दी’ शीर्षक के अंतर्गत द्वितीय भाषा के रुप में हिन्दी, स्नातक स्तर पर हिन्दी, बी,एड,में हिन्दी का संपूर्ण विवरण दिया गया है। इस के साथ विभिन्न कालेजों का परिचय भी इस में है। ‘केरल के विश्व विद्यालयों में हिन्दी का उच्चतर अध्ययन’ में स्नातकोत्तर हिन्दी के विकास का वर्णन है। ‘केरल में हिन्दी शोध’ के अंतर्गत केरल के विश्व विद्यालयों में हिन्दी शोध का समग्र विवरण प्रस्तुत है। भक्ति साहित्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, गद्य, आलोचना, व्याकरण, भाषा-विज्ञान और तुलनात्मक अध्ययन आदि विभिन्न विषयों पर किए गए शोध कार्यों का संपूर्ण विवरण आश्चर्च चकित करता है। केरल के विभिन्न विश्व विद्यालयों के हिन्दी विभागों की गतिविधियों का इसमें सफल अंकन किया गया है। इस अध्याय में उच्चतर हिन्दी, शोध तथा विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागों से संबंधित संपूर्ण जानकारी के साथ-साथ हिन्दी भाषा तथा साहित्यिक शोध कार्य का विवरण आंकडों सहित देने से भावी करेलीय शोध-छात्रों के लिए ही नहीं, समस्त हिन्दी शोध-छात्रों के लिए भी एक उपयोगी दस्तावेज बन गया है। 

पाँचवें खण्ड में केरल में मौलिक, और अनूदित साहित्य; हिन्दी पत्रिकाएँ आदि का सफल प्रस्तुतीकरण हुआ है। केरल के मौलिक हिन्दी लेखकों का परिचय देकर केरलीयों के हिन्दी साहित्य की देन का संपूर्ण परिचय इस में है। महाराजा श्री रामवर्मा से लेकर आधुनिक कवियों का परिचय इसमें उपलब्ध है। आधुनिक युग की विभिन्न विधाओं जैसे – बालसाहित्य, कहानियाँ, शोधग्रन्थ, उपन्यास, नाटक, ललित निबंध, आत्मकथा, जीवनी तथा कविताओं का विस्तृत परिचय इसमें है। विशेषतः मलयालम हिन्दी अनुवाद के विकास के साथ-साथ हिन्दी में अनूदित मलयालम साहित्य का रचना, रचनाकार, वर्ष तथा प्रकाशन संस्था के नाम सहित विपुल विवरण प्रस्तुत किया गया है। केरल में विभिन्न हिन्दी साहित्यिक पत्रिकाओं के बारे में विस्तृत विवरण देकर केरल में हिन्दी पत्रकारिता का विशद् वर्णन उल्लेखनीय है। ‘उपसंहार’ के अंतर्गत केरल से संबंधित कतिपय हिन्दी ग्रंथों का विवरण है। इस अध्याय में केरल के मौलिक हिन्दी रचनाकारों तथा रचनाओं के साथ विभिन्न पत्रिकाओं का परिचय देकर हिन्दी भाषा तथा साहित्य के विकास में केरलीयों का योगदान रेखांकित किया गया है। 

राष्ट्रभाषा हिन्दी के विकास में दक्षिण भारत का योगदान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। दक्षिण के चारों राज्यों आन्ध्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु में हिन्दी प्रचार-प्रसार का कार्य तीव्र गीत से चल रहा है, लेकिन इस के बारे में संपूर्ण जानकारी देने का कार्य अब तक नहीं हुआ। इस अभाव को दूर करने के लिए अनेकानेक प्रयत्न निरंतर चलते रहे हैं परन्तु इसे एक सही दिशा नहीं मिल सकती है। डॉ. एन ई. विश्वनाथ अय्यर जी का प्रस्तुत ग्रन्थ इन अभावों से मुक्त होकर हमें सही दिशा देता है और हमारा पथ प्रदर्शन करता है। प्रस्तुत ग्रन्थ के अध्ययन से केरल राज्य में हिन्दी भाषा और साहित्य के समग्र विकास का चित्र हमारे समक्ष प्रेरक रुप में उपस्थित हो जाता है। 


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