अंधा युग : एक परिचय




अंधा युग : एक परिचय

          प्रो.एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
स्त्रवंती, नवंबर-2004





           धर्मवीर भारती का अंधा युगनयी कविता की प्रतिनिधि रचना है । यह रचना नयी-कविता की काव्य संवेदना, शिल्पगत नवीनता और भाषा सौष्टव की स्वायत्तता की परिचायक भी है । अंधा युग का रचना काल सन् 1954 ई. में हैं । कवि ने महाभारत के युद्ध का आश्रय लेकर महाभारत कालीन आत्म पीडन, अविश्वास अनास्था, विघटन, गिरते मानवीय मूल्यों और नैतिक मानदण्डों की पृष्ट भूमि में युगीन निराशा, अनास्था, विसंगति, प्रतिहिंसा का चित्रण किया है । विशेषतः युगीन मूल्यों के संघर्ष और विघटन के प्रश्नों को बौद्धक धरातल पर गहनता से प्रस्तुत किया है ।

          अंधा युगभारती की सर्जनात्मक और आधुनिक संवेदना का निरुपक काव्य नाटक है । इस में आया प्रबन्धन जिस शिल्प में ढ़लकर आया है वह ऐसा नहीं है जिसे परम्परा की आवृत्ति मात्र मानकर छोड दिया जाए । यह वह काव्य नाटयात्मक प्रबन्ध है जिस में महाभारतीय संदर्भों के शिलापट्ट पर आधुनिक संवेदना का आस्थामय आलोक विकीरित हुआ है । ऐसी स्थिति में अंधायुगमात्र किसी अन्धेयुग की कथा नहीं है, अपितु अंधत्व के सहारे आस्थापूरित आलोक की ओर ले जानेवाली वह कृति है जिस में परस्पर पीठिका भर है और उसके सहारे अभिव्यक्त संदर्भ-संवेदनायें नवीन और युग सापेक्ष हैं । अतः इस कृति में जो आस्था भावना अनुगुंजित है । उसके सही विश्लेषण के लिए आधुनिक संवेदना अपरिहार्य हैं । मध्यकालीन प्रवृत्तियों से जन्मी आस्थाएं, मान्यताएं, और संवेदनायें लुप्त प्राय हैं । इसका कारण यह है कि वैज्ञानिक दृष्टि और उससे युक्त आस्थाएं सिर उठा रही हैं और वैज्ञानिक जागरुकता के कारण बौद्धिक प्रचण्डता बढ़ रही है । धर्म लाँछित होकर अधर्म को मूल्य मानने की प्रेरणा दे रहा है और नैतिक दाय परिवर्तित दृष्टि के तेज के कारण नये अनुभव क्षेत्रों और मूलाधारों को विकसित कर रहा है। स्पष्ट है कि सारे संसार में धर्मानुमोदिता आस्था नष्ट हो गयी है और नये मानवीय मूल्यों की प्रतिष्टा जोर पकड रही है और जब प्राचीन मूल्यों को नये मूल्यों की कसौटी पर चढ़ना पडता है तब जो संकट व क्षण उपस्थित होता है । वही आधुनिक संवेदनओं को उजागर करता है । अंधा युगकी कथा इसी बिन्दु पर आकर अतीत के गोलक से छिटककर वर्तमान की जलधारा में आ मिलती है । अंधा युग में भारती ने महाभारत के उत्तरार्ध्द की कथा को आधार बनाकर समकालीन बोध को वाणी दी है । इस प्रबन्ध की कथा का घटनाकाल महाभारत के अठारहवें दिन की संध्या से लेकर प्रभास तीर्थ में कृष्ण की मृत्यु के क्षण तक फैला हुआ है ।

          अंधा युगके स्थापना भाग में स्वयं भारती ने यह स्वीकार किया है कि इस काव्य की कथा आधुनिक युग की है किन्तु इस कथा को कहने का माध्यम अतीत है । इतना ही नहीं भारती ने गीता में प्रतिपादित अनासक्त जीवन दर्शन को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया है ।

           अंधा युगकी कथा-वस्तु में पर्याप्त आधुनिकता है । कथा वस्तु में आई घटनाएं किसी-न-किसी रुप में आधुनिक मूल्यों, मान्यताओं और जीवन दृष्टि को व्यंजित करती हैं । धर्मवीर भारती ने इस काव्य-नाटक में कथा के माध्यम से अनेक आधुनिक समस्याओं और प्रश्नों को उठाया है । कुछ ऐसे प्रश्न और कुछ ऐसी समस्याएं भी कथा में आ गयी हैं जो आधुनिक बोध को वाणी देती हैं । इस में कोई सन्देह नहीं की अंधायुग आधुनिक भाव-बोध को प्रस्तुत करता है । भारती ने आधुनिक जीवन मूल्यों के विघटन,संक्रमण, क्षोभ और अनेकानेक संत्रस्त  विसंगतियों को विविध संदर्भों में अभिव्यक्त किया है ।

         धर्मवीर भारती ने अंधा युगमें जिस आधुनिक बोध को वाणी दी है, वह चरित्रों के व्यक्तित्व विश्लेषण के द्वारा भी स्पष्ट होता है । यद्यपि अंधा युग के अधिकांश पात्र प्रख्यात हैं किन्तु प्रख्यात प्रात्रों के व्यक्तित्व विश्लेषण और अन्तर्द्वन्द्व को प्रस्तुत करते हुए आधुनिक बोध अभिव्यक्ति पा ही गया है । वृद्ध याचक और गूँगा भिखारी कल्पित पात्र होते हुए भी आभिव्यक्त संवेदना को उजागर करते हैं । अंधा युग के अश्वत्थामाको केन्द्रीय चरित्र माना जा सकता है । भारती ने उसकी प्रस्तुति में पर्याप्त आधुनिकता से काम लिया है । रचनाकार ने सम-सामयिक दायित्वबोध को स्वीकारते हुए उसे विशिष्ट रुप में प्रस्तुत किया है । उसका चरित्र पर्याप्त मनोवैज्ञानिक बन गया है । कृतिकार ने अश्वत्थामा के चरित्र निरुपण में सजगता से काम लिया है और इसी कारण उसका नैराश्य पूर्ण और मनोग्रन्थियुक्त व्यक्तित्व प्रस्तुत काव्य नाटक की प्रमुख घटनाओं से पूरी तरह जुडा हुआ लगता
 हैं । अश्वत्थामा सही अर्थों में आधुनिक मानवता का प्रतीक है । 


        भारती ने अंधा युग में महाभारत के अठारहवें दिन के बाद की युद्धोत्तर घटनाओं का सहारा लेकर जो कथा वृत्त प्रस्तुत किया है, वह आधुनिक जीवन के पर्याप्त निकट है । न केवल कथानक अपितु उससे निकलनेवाले संकेत तथा पात्र एवं उनका आचरण आधुनिक परिवेश के निकट हैं बल्कि वातावरण की प्रस्तुति में भी पर्याप्त आधुनिकता है । अंधा युग में प्राचीन कथा और पौराणिक पात्रों के माध्यम से आधुनिक संवेदनाओं को अभिव्यक्ति दी गयी है । उन्होंने पुराण कथा के द्वारा संकट बोध को अभिव्यक्ति देने के लिए इतिहास की पीठ पर वर्तमान को बोझ बनाकर नहीं रखा है । अंधा युग की कथा का हर बिन्दु, हर सन्दर्भ, वर्तमान युग की समस्याओं और स्थितियों को संकेतित करता है । पुरानी कथा में वर्तमान परिवेश की तीखी और यथार्थ चेतना के समावेश से अंधा युग न केवल मूल्यवान बन गया है अपितु एक सार्थक काव्य-नाटक भी हो गया है ।     



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