वैश्वीकरण के संदर्भ में संघर्षरत नारी सुरेखा







वैश्वीकरण के संदर्भ में संघर्षरत नारी सुरेखा

                                                                         प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू

हिंदी साहित्य के विविध आयाम : वैश्विक पिरदृश्य. 
Year 2019

 ISBN No. 978-81-905891-5-5

     द्रौपदी नाटक सुरेंद्र वर्मा का तीन नाटक नामक नाटक संग्रह का तीसरा नाटक है। इस नाटक में पारिवारिक जीवन में आए हुए परिवर्तन, स्त्री-पुरुष संबंध आदि को विषय बनाया गया है। द्रौपदी पौराणिक कथापात्र है। सुरेंद्र वर्मा ने सुरेखा पात्र को आधुनिक रूप में प्रस्तुत किया है।

      इस नाटक की द्रौपदी(सुरेखा) अपने पति मनमोहन को पाँच खंडों में विभाजित दिखाई देती है। इस नाटक में समकालीन व्यक्ति की विकल्पहीन विवशताओं का सुंदर ज्ञापन हुआ है। सुरेखा और उसके उसका पति मनमोहन भिन्न स्तर पर है। पति-पत्नी रूपी ये दो प्राणी पहले प्रेम, फिर उपेक्षा, घृणा, दुःख से गुजरते हुए अंततः कुछ भी की स्थिति तक पहुँचते हैं। जिसमें न कुछ कहना न सुनना, यथा स्थिति को स्वीकार करते हुए रहना तथा एक दूसरे को झेलते रहने का भाव मुख्य हो जाता है।

      सुरेखा इस नाटक की नायिका है। वह एक आधुनिक नारी है। उसका विवाह हुए कई वर्ष हो गये थे। पहले वह एक ना समझ लड़की थी और कुछ ही वस्तुओं से अपनी गृहस्थी बसायी थी। आज अधिक सामाग्री उसके घर में है। लेकिन उसके अनुसार बहुत कुछ सामाग्री नहीं है।

      सुरेखा मनमोहन की पत्नी है। अपने परिवार की बुरी अवस्था को देखकर वह संघर्ष में पड़ जाती है। पहले तो पति उससे बहुत प्रेम करता था। सुरेखा को शक है कि उसके पति का कई और स्त्रीयों के साथ संबंध है। य चिंता उसको ठेस पहुँचाती है। सुरेखा अपनी दोस्त मंदा से इस प्रश्न के बारे में चर्चा करती है। उसकी बातों से पता चलता है कि मनमोहन अधिक समय तक दफ्तर में व्यस्त रहता है। घर में हो तो वहाँ भी व्यस्त रहता है। दोनों के बीच बात कम होती है। शारीरिक संबंध भी बहुत कम है। कभी ऊपर से सुरेखा को छू के ही मनमोहन का मन भर जाता है। कभी मनमोहन सुरेखा की एक-एक बोटी नोंच डालता है। सुरेंद्र वर्मा ने नाटक में इस प्रसंग का सजीव चित्रण किया है। यथा
सुरेखा -  जैसे कभी वह दफ्तर में डूबा रहता है, कभी घर में। कभी ऊपर-ऊपर से मुझे छू के ही मन भर जाता है और कभी वह एक-एक बोटी नोंच डालता है मेरी। 
मंदा  -  ऐसा तो मुझे भी लगता है अक्सर।
सुरेखा और कभी उसके बदन से दूसरी औरत की बू आती है।“(1)

    सुरेखा के विचार से मनमोहन अब पहले का मनमोहन नहीं है जिनसे वह शादी की थी और जिनके साथ वह घर बनायी थी। यही बात वह मंदा से कहती है। उसने कई सपने देखे थे उसके सारे सपना टूट जाते हैं।  अपने पास सब कुछ होते हुए भी वह अकेलेपन को भोगती रहती है। घोर निराशा और निरर्थकता का बोध उसे होता रहता है। आंतरिक और बाह्य दोनों ही रुपों में वेदना झेलती रहती है। अब वह अपने में ही सीमित हो गई है। उसकी दोस्त मंदा उससे पूछती है कि उसके सब कुछ होते हुए भी अकेलेपन का अनुभव क्यों हो रहा है ।

सुरेखा का पति काम करता है और उसके दो बच्चे भी हैं जो पढ़ते हैं। इतना सब कुछ होते हुए भी उसे क्यों अकेलेपन का अहसास हो रहा है। सुरेखा उससे कहती है कि दूसरों को उसका घर भरा हुआ लगता है। जितना भरा हुआ वह लगता है उतना ही अकेलापन भी महसूस कराता है। सुरेखा बहुत दुःखी है क्योंकि पति तो पूरा समय काम में व्यस्त रहता है और वह बहुत अकेली हो गयी है इसलिए अत्यंत संघर्ष में जीवन यापन करती रहती है। सुरेंद्र वर्मा ने सुरेखा के इस संघर्ष का चित्रण अत्यंत मार्मिक ढंग से किया है। यथा
मंदा    -     (कुछ आश्चर्य से) तुम्हें महसूस होता है अकेलापन?
सुरेखा   -      क्यों नहीं होना चाहिए?
मंदा    -      (धीरे-धीरे) मैं सोचती थी कि इतना भरा-पूरा है तुम्हारा घर।
सुरेखा   -     (ठंडी साँस लेकर) सबको भरा-पूरा लगता है दूसरे का घर।
मंदा   -    क्या कह रही है?
सुरेखा  -    क्यों?  कुछ झूठ कह रही हूँ?  - बल्कि ऐसा भी नहीं होता क्या कि घर जितना भरा-पूरा हो, उतना ही अकेलापन महसूस करे आदमी?”(2)

     सुरेखा आज अनेक समस्याओं से गुजर रही है। मनमोहन को कुछ कहने के लिए मिलता ही नहीं है। बच्चे तो अपनी इच्छानुसार सब कुछ करते हैं। सुरेखा का घर अब बिखर गया है। सुरेखा की बेटी एक लड़के से प्यार करती है। सुरेखा उससे पूछती है कि उसकी प्रेम कहानी कहाँ तक पहुँची । वह उससे सिर्फ प्यार न करके शादी की बात करने के लिए भी कहती है। वह अलका से नाराज होती है क्योंकि वह उसकी बात मानने को तैयार नहीं होती है। वह खुशी से सब कुछ उस लड़के को देने के लिए कहती है। वह अलका से पूछती है कि कल साड़ी बाँधकर कहाँ गयी थी । अलका के विचार से साड़ी बाँधना कोई गुनाह नहीं है। सुरेखा सोच रही है कि साड़ी बाँधने पर शारीरिक संबंध आसान हो सकता हैं क्योंकि साड़ी आसानी से उतारी जा सकती है। सुरेखा के मुँह से ये बात सुनकर अलका नाराज हो जाती है। वह उससे गुस्से से बता रही है कि वह कोई बच्ची नहीं है। उसे सब कुछ पता है। साड़ी बाँधकर सुंदर बनकर वह गयी थी। लेकिन आते समय ऐसी-वैसी बात हो गयी तो ये सोचकर सुरेखा उस पर गुस्सा करती है।

     अपनी बेटी को गलत रास्ते पर न जाने के लिए उसे सलाह देती है। सुरेखा समझाती है कि बेटी अपना भला-बुरा पहचान नहीं सकती। वह बेटी के बारे में बहुत चिंता करती है। वह उसे याद दिलाती है कि उसका हफ्ता सेफ नहीं है। अर्थात उस समय शारीरिक संबंध होने पर वह गर्भवती हो सकती है। सुरेंद्र वर्मा ने नाटक में उपर्युक्त प्रसंग का चित्रण इस प्रकार किया है कि
सुरेखा  -  क्यों?  .... जब इतनी छूट देती हूँ तुझे तो जानने का हक नहीं रखती मैं ?... कहाँ तक?
अलका  -   सब बता तो देती हूँ।
सुरेखा  -   परसों शाम को साड़ी बाँधकर कहाँ गयी थी?
अलका  -   कमाल है, साड़ी बाँधना भी गुनाह हो गया अब?
सुरेखा  -  क्योंकि उसमें आसानी ....
अलका   - मम्मी....।
सुरेखा  -  और ऐसे तो तू कभी नहीं बाँधती। .... और जब आयी थी तो कैसी मसली हुई पता है ये तेरा हफ्ता सेफ नहीं है?”(3)

    सुरेखा की इच्छानुसार सुविधाएँ प्राप्त नहीं हो रही है। बच्चों से तो वह कहकर तंग आ चुकी है। वह स्वयं कहती है कि सबको सँभालकर उसकी हालत खराब हो चुकी है। क्योंकि आधुनिक युग के बच्चे माँ-बाप के सुनते ही नहीं। वे सब कार्य अपनी इच्छा के अनुसार करते हैं। बेटी और बेटा आपस में झगड़ते समय सुरेखा का कहना नहीं मानते। वे ये भी नहीं सोचते हैं कि दोनों भाई-बहन हैं। ये सारी बातें सोचकर सुरेखा चिंता में पड़ जाती है। सुरेंद्र वर्मा ने इसका बढ़िया वर्णन किया है। यथा-
सुरेखा    -  (निढ़ाल स्वर में) सबको सँभालते-सँभालते हालत खराब हो जाती है मेरी। (यकायक चौंक जाती है। उठकर) तुम कब से खड़े हो यहाँ?”(4)

   मनमोहन के जेब से अनिल पैसा चुराता है। उसके कमरे से सिगरेट के टुकड़े, गंदी किताबें और तस्वीरें आदि मनमोहन को मिल गया था। अनिल चरस और एल.एस.डी. का उपयोग भी कर रहा है। और एक चीज जो कैमिस्ट के यहाँ मिलती है, वह भी उसके कमरे में दराज के भीतर, ताले से बंद करके रखे थे। ये सब मनमोहन सुरेखा से कहता है।

    अनिल के पैसा चुराने की बात सुनकर सुरेखा चौंक जाती है। अनिल बुरी आदतों में पड़ जाता है। ये बात जानकर मनमोहन और सुरेखा को बहुत दुःख होता है। सिगरेट पीना और चरस की लत आदि बुरी आदतें भी अनिल को होने लगी थी। वह गंदी किताबें पढ़ने लगा था और गंदी तस्वीरें देखने लगा था अपने बेटे के इस तरह के स्वभाव से वह बहुत चिंतित हो जाते हैं। वे याद करते हैं कि जब अनिल बच्चा था, तब इस तरह का कोई दुःख उन्हें नहीं था। वे अनिल और अलका का बचपन याद करते हैं उन्हें विश्वास ही नहीं होता है कि यह उनका ही बेटा है। वे सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि उनका बेटा बुरी आदतों में पड़ जायेगा क्योंकि वह उतना ही लाड़-प्यार से उसे बड़ा किया था। इसलिए वे उसकी इस अवस्था पर चिंतित होते हैं। सुरेंद्र वर्मा ने नाटक में उपर्युक्त संदर्भ का वर्णन इस प्रकार किया है कि  - 
मनमोहन  -   (ठिठक जाता है। बदले हुए स्वर में) आज फिर मेरी जेब से दस का एक नोट गायब है।
सुरेखा     -   आने दो अनिल को। मैं आज उसकी ऐसी खबर लूँगी कि
मनमोहन   -   (ठहरकर) अभी उसके कमरे में गया था मैं। सिगरेट के टुकड़े एक से एक गंदी किताबें और तस्वीरें सुना है, चरस और एल.एस.डी का भी शौक फर्माते है कभी-कभी।
सुरेखा      -  (गहरी साँस लेकर) पता नहीं क्या बनेगा इसका
मनमोहन   -  एक और चीज भी है उसके कमरे में दराज के भीतर, ताले में बंद।
सुरेखा      -  (आंतकित सी) क्या?
मनमोहन   -  वहीं, जो कैमिस्ट के यहाँ मिलती है। विराम।
मनमोहन     -  सुरेखा।
सुरेखा      -    हाँ।
मनमोहन   -   (कुछ रुककर, इधर-उधर देखते हुए) कभी-कभी मुझे लगता है कि जैसे यह घर ...”(5)

     सुरेंद्र वर्मा ने सुरेखा को इस नाटक में संघर्षरत नारी के रुप में सफलतापूर्वक चित्रण किया है।  


             
    संदर्भ

1.     तीन नाटक सुरेंद्र वर्मा पृ.सं.-102
2. तीन नाटक सुरेंद्र वर्मा पृ.सं.100
 3. तीन नाटक सुरेंद्र वर्मा पृ.सं.83
4. तीन नाटक सुरेंद्र वर्मा पृ.सं.83
5. तीन नाटक सुरेंद्र वर्मा पृ.सं.84-85    

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