भारतीय भाषा पत्रकारिता : एक अवलोकन


भारतीय भाषा पत्रकारिता : एक अवलोकन 

प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू 

पूर्णकुंभ

फरवरी-मार्च 2001

पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए विभिन्न भाषाओं में पत्रकारिता के इतिहास और गतिविधियों की जानकारी चाहें तो हमेशा अंग्रेजी किताबों को ढूँढना पडता है। जो भी समाचार मिले, वह सिर्फ सूचनार्थ ही मिल रहा है। बहुत खेद की बात यह है कि हिन्दी भाषा में संपूर्ण भारतीय पत्रकारिता के बारे में एक समग्र विवरण देनेवाला एक संदर्भ ग्रंथ अब तक अलभ्य है। इस रिक्ति की पूर्ति करने के लिए शतप्रतिशत कोशिश की है “भारतीय भाषा पत्रकारिताः एक अवलोकन” ने। वास्तव में यह वरिष्ठ पत्रकार मुनींद्र जी का अभिनंदन ग्रंथ है। संपादन ने संपादकीय में ही स्पष्ट किया है कि – “यह अभिनंदन ग्रंथ परिपाटी से थोड़ा हटकर है। पत्रकारिता की मूलभूत और समस्त प्रवृत्तियाँ इसके माध्यम से देखी जा सकें, यह प्रयत्न है। हिन्दी पत्रकारिता को इस दृष्टिपात के मूल में रखा गया है। सामान्य रुप से पत्रकारिता के विषय में यह कहा जाता है कि उसे अपने पाठकों को दृष्टि देना चाहिए। यह अटल सत्य है कि जो दृष्टि दे, उसकी खुद की दृष्टि भी पारदर्शी हो, दृष्टि की यह तलस्पर्शिता भाषा या अभिव्यक्ति में ही खुलती है।” 

इस ग्रंथ की शुरुआत मुनींद्र जी के आत्म कथ्य “अंत तक पत्रकारिता से जुडा रहूँ” से होती है। इस संक्षिप्त आत्मकथ्य के माध्यम से उन्होंने पचास वर्षों का अनुभव सार एवं पत्रकारों के कर्त्तव्यों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए हैं। भावी सच्चे पत्रकारों के लिए ‘टेन कमाण्डमेंट्स’ जैसे तीन महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं जो इस प्रकार हैं – “वर्तमान विषम स्थिति में हमारे जैसे पत्रकारों का कर्त्तव्य है कि वे देश के राजनैतिक दलों को सावधान करें कि 1) हमारी स्वतंत्रता खतरे में पड जाएगी, 2) हम फिर से उपनिवेश बन जाएँगे, 3) हमारे ऊपर विदेशी कर्ज भार बढ़ता जाएगा। साथ ही देश के नागरिकों को सावधान करें कि वे 1) राजनैतिक दलों की नासमझी के शिकार न बनें, उनके कान पकडें कि अब भी संभलों, 2) विदेशी वस्तुओं का उपयोग न करें 3) तकनीकी विकास के नारों के चक्कर में न पडें। साथ ही उन्हें सावधान करें कि वे अंग्रेजी के चक्रव्यूह से निकलें और अपनी भाषाओं में शिक्षण को बढ़ावा दें और देश का शासन देशी भाषा में चलाएँ।” इसके बाद मुनींद्र जी के एक लम्बे साक्षात्कार “चाँदनी में हिलती हैं परछाई” में मुनींद्र जी के बारे में अनेक विषयों का उल्लेख है। इस साक्षात्कार के माध्यम से उनके व्यक्तिगत जीवन तथा ‘कल्पना’ के बारे में बहुत जानकारी मिली है। उदाहरण स्वरुप एक प्रश्न और उत्तर देखिए - “प्रश्नः कविता वाचक्नवी :- ‘कल्पना’ में ‘निराला’ जी भी छपते रहे। उनकी रचनाएँ आप तक कैसे पहुँचती थीं? उत्तरः मुनींद्र जी : एक बार ‘निराला’ जी की कविता आई उस पर हस्ताक्षर नहीं थे उनके। गंगा प्रसाद पांडेय जी ने भेजी थी। मैंने उन्हें लिखा कि निराला जी की हस्ताक्षरित प्रति ही भिजवाएँ। उन्होंने हस्ताक्षर करवाकर भेज तो दी पर साथ ही इस आग्रह का कारण भी पूछा। हमने लिखा कि आजकल ‘निराला’ जी जिस स्थिति में हैं, हमें उनकी हर चीज छापनी हैं, पर यह निश्चित होना चाहिए कि रचना ‘निराला’ जी की ही हो। इससे लोग यह भी जान सकेंगे कि आजकल निराला जी किस स्थिति में लिख रहे हैं, इनसे तो इतिहास बनेगा....। आज तो वे दिन मेरे लिए भी स्मृतियों में संजोकर रखा गया इतिहास हो गए हैं... कया कहूँ?” इस ग्रंथ में मुनींद्र के व्यक्तित्व को और अधिक उजागर करनेवाले खण्ड “मुनींद्रः जैसा देखा जाना” में मुनींद्र के घानिष्ठ 12 विभिन्न हिन्दी सेवियों के लेख हैं। वे इस प्रकार है-(1) हिन्दी के प्रबल पक्षधरः मुनींद्रजी- सी.वी.चारी (2) वरिष्ठ हिन्दी पत्रकार : मुनींद्र जी - वेमूरि आंजनेय शर्मा (3) भाई मुनींद्र-काटम लक्ष्मी नारायण (4) मुनींद्र-एक सहज व्यक्तित्व-तेजराजजैन (5) अजात शत्रु मुनींद्र-भीमसेन निर्मल (6) श्री मुनींद्रः एक मौन सांवादिक-वसंत चक्रवर्ती (7) वो आज भी आगे आगे मिशल सी लिए चलते हैं – शशि नारायण स्वाधीन (8) मुनींद्र जीः जैसा मैंने उन्हें पाया-विजय राघव रेड्डी (9) ‘दक्षिण समाचार’ का महत्व और मुनींद्र जी-वेमूरि राधाकृष्ण मूर्ति (10) ‘दक्षिण समाचार’ की संपादकीय दृष्टि-राजकिशोर पांडेय (11) पत्रकार मुनींद्र की व्यापक दृष्टि-एन.पी.कुट्टन पिल्लै (12) मुनींद्र जी का भाषा चिंतन : ‘कल्पना’ के आईने में-सुधीर कुमार। प्रो. भीमसेन निर्मल जी ने लिखा है कि –“समाजवादी पार्टी नेता कीर्तिशेष राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों के वे कायल हैं। राष्ट्र भाषा हिन्दी के प्रबल समर्थक श्री मुनींद्र जी अहिन्दीभाषी हिन्दी लेखकों को अद्वितीय रुप से प्रोत्साहित करते रहते हैं ।” 

दूसरे खण्ड “दक्षिण भारत की भाषा पत्रकारिता” में तेलुगु, तमिल, मलयालम, कन्नड, मराठी, उर्दू और दक्षिण में हिन्दी पत्रकारिता पर सात आलेख हैं। इन आलेखों में विभिन्न भाषाओं की संपूर्ण पत्रकारिता का इतिहास शुरुआत से लेकर आजतक विस्तृत वर्णन किया गया है। इन आलेखों के संपूर्ण अध्ययन से दक्षिण भारत की भाषा पत्रकारिता के बारे में समग्र आकलन होता है। इसमें विभिन्न भाषा-पत्रिकाओं की सूचियाँ भी हैं। इस खण्ड के आलेखों की सूची इस प्रकार हैं – (1) तेलुगु पत्रकारिता-सी. अन्नपूर्णा (2) तमिल पत्रकारिताः एम.शेषन (3) मलयालम पत्रकारिता – एन.ई. विश्वनाथ अय्यर (4) कन्नड पत्रकारिता-ना. नागप्पा (5) मराठी पत्रकारिता-चंद्रकांत बांदिवडेकर (6) उर्दू पत्रकारिता – नेहपाल सिंह वर्मा (7) हिन्दी पत्रकारिता-गोपाल शर्मा। 

‘हिन्दी पत्रकारिता का बहु आयामी परिवेश’ नामक तीसरे खण्ड में चार उपखण्ड हैं (1) विकास क्रम (2) बहस (3) प्रयुक्ति संदर्भ (4) भाषाई संदर्भ। ‘विकास क्रम’ में चार आलेख हैं। प्रथम आलेख ‘राष्ट्रीय चेतना और हिन्दी पत्रकारिता’ में डॉ. भवानी लाल भारतीय ने स्वतंत्रता आन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता के योगदान के बारे में वर्णन किया है। दूसरा आलेख ‘नवजागरण और हिन्दी पत्रकारिता’ है, इसकी लेखिका पूर्णिमा शर्मा हैं। संपादक द्वय प्रो. दिलीप सिंह और डॉ. ऋषभ देव शर्म ने ‘हिन्दी पत्रकारिता के प्रकाश स्तंभ’ में भारतेंदु युग, द्विवेदी युग, स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता के प्रकाश स्तंभ आदि उपशीर्षकों द्वारा भारतेंदु हरिश्चंद्र से लेकर अब तक के मूर्धन्य पत्रकारिता के विराट विद्वानों का परिचय दिया है। इसे अत्यन्त उपयोगी आलेख कहने में कोई संदेह नहीं है। प्रो. देवराज के ‘पूर्वेत्तर भारत में हिन्दी पत्रकारिता’ में पूर्वोत्तर राज्य एवं वहाँ की हिन्दी पत्रकारिता की संपूर्ण जानकारी है। इस आलेख के द्वारा संपूर्ण पूर्वोत्तर की हिन्दी पत्रकारिता का आकलन संपूर्ण एवं सफलतम रुप से प्रस्तुत किया गया है। यह संग्रहणीय आलेख है। दूसरे उपखण्ड ‘बहस’ में रवि श्रीवास्तव का ‘ऐसा हो संपादकीय तो बेहतर’ और किशोरी लाल व्यास का ‘प्रिंट मीडिया पर इलेक्ट्रानिक मीडिया का आतंक’ शीर्षक दो आलेख हैं। ‘प्रयुक्ति संदर्भ’ शीर्षक तीसरे उपखण्ड में सात आलेख हैं। प्रो.वी.रा.जगन्नथन ने ‘विज्ञापन की भाषा और अनुवाद’ शीर्षक अपने आलेख में आज के विज्ञापनों की आक्रामकता एवं अनुवाद के संदर्भ में उत्पन्न कठिनाइयों के बारे में विभिन्न उदाहरणों द्वारा प्रस्तुत किया है। मन को छूनेवाले विज्ञापनों के वाक्यों को हम अनूदित नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए अंग्रेजी का एक विज्ञापन है For perfect hair, get the perfect conditioner,……conditioner, Extra Shine, Extra Softness, Extra Vitality. इसका हिन्दी अनुवाद नहीं हो सकता, अनुवाद में यह अभिव्यक्ति प्रभावी नहीं होगी। हिन्दी में इसे हम दूसरे शब्दों में कह सकते हैं – आकर्षक अलकावलि के लिए आदर्श कंडीशनर /......कंडीशनर / रेशम जैसे बाल – चमकदार और जानदार। यहाँ हमने कुछ शब्द बदले हैं, जो हिन्दी के अनुसार ज्यादा असरदार हैं। Perfect hair को ‘आदर्श केश’ की जगह ‘आकर्षक अलकावलि’ कहा है। इसी तरह, ‘रेशम जैसे बाल’ हिन्दी-भाषियों के मन को ज्यादा छूता है। हिन्दी की अभिव्यक्ति की तुक और हिन्दी भाषा के अनुरुप अनुप्रास आए का उपयोग किया गया है।‘अलकावलि’ इस अभिव्यक्ति को गंभीरता देता हैं और ‘बाल’ उसे सुबोध बनाता है। Extra Shine आदि तीन अभिव्यक्तियों को एक वाक्य में पिरोया गया है। जिससे वह सुगम और स्मरणीय रहे।” खेलकूद पत्रकारिता की संपूर्ण जानकारी डॉ. ऋषभ देव शर्मा के आलेख ‘खेलकूद पत्रकारिता और हिन्दी’ में है। इस उपशीर्षक में ‘आर्थिक पत्रकारिता-दयानंद, आर्य समाज की हिन्दी विज्ञान पत्रकारिता – संजय शर्मा उदय, राजभाषा हिन्दी पत्रकारिता-गोवर्धन ठाकुर, हिन्दी की सरकारी पत्रिकाएँ-भगवती प्रसाद निदारिया, साहित्य समीक्षा और हिन्दी पत्रकारिता-प्रो.दिलीप सिंह के आलेख हैं। चौथे उपखण्ड ‘भाषा संदर्भ’ में तीन आलेख हैं। इस में प्रो.कैलाशचंद्र भाटिया के ‘हिन्दी पत्रकारिता और अनुवाद’ में भाटिया जी ने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवाद करते समय आनेवाली विभिन्न समस्याओं का उल्लेख किया है। प्रो. सुरेश कुमार ने अपने आलेख ‘आधुनिक हिन्दी पत्रकारिता की शब्द संपदाः विचारात्मक आयाम’ में हिंदी भाषा के आधुनिकीकरण पर चर्चा की है। अंतिम आलेख प्रो.दिलोप सिंह जी का ‘हिन्दी पत्रकारिता की भाषा’ है। 

संपादकों ने कहा है कि मुनींद्रजी के अमृतोत्सव पर “उनके लिए इससे अच्छा तोफा नहीं हो सकता था कि उन्हें उन्हीं के अभिनंदन ग्रंथ के बहाने भारतीय भाषा पत्रकारिता पर केंद्रित एक संग्राहिका भेंट की जाए।” यह पारंपरिक अभिनंदन ग्रंथ नहीं है। यह पत्रकारिता का एक संदर्भ ग्रंथ है। इसके द्वारा संपूर्ण भारतीय भाषा पत्रकारिता के समग्र चित्र का अंकन किया गया है। देश भर के विभिन्न विद्वानों के आलेख ही इसका प्रमाण हैं। वरिष्ठ हिंदी सेवी श्री वेमूरि अंजनेय शर्मा जी इस ग्रंथ के परामर्श दाता है। प्रो. दिलोप सिंह एवं डॉ. ऋषभदेव शर्मा इस ग्रंथ के संपादक हैं। इस ग्रंथ में आद्यंत संपादक द्वय का अथक परिश्रम दिखाई पडता है। यह ग्रंथ सिर्फ पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए ही नहीं, हर हिन्दी प्रेमी के लिए और पुस्तकालयों के लिए भी उपयोगी पुस्तक है। 

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