मेरी निर्धनता ही महान
मेरी निर्धनता ही महान
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
पूर्णकुंभ
मई – 1998
नेता गण आते हैं,
नारा लगाते हैं :
मेरा भारत महान,
हम ही हैं सच्चे राष्ट्र-रक्षक’. – कहकर
विपक्ष पर करते हैं प्रहार.
देते हैं जन – जन को अनगिनत वर.
दिखाते हैं हथेली में ही स्वर्ग.
लेते हैं मत. पहुँचते हैं दिल्ली.
शुरु होते हैं कुसी के लिए दाव – पेंच,
शत्रु ही मित्र बनजाते हैं.
लेकिन चलता है निरंतर भ्रष्टाचार.
बढ़ता जाता है काला-बाजार.
खेतों में धान्य उपजाकर
सब को अन्न खिलाकर,
सभी के दुःख दैन्य हरकर
किसान आज खा रहे हैं जहर.
कहते हैं बार-बार हम सब हैं समान.
पर करते हैं सबको अलग-अलग,
जाति धर्म के बहु नामों पर.
लोग भी करते हैं अनुसरण
अंध, मूक, बहिरे जैसे,
चलाते हैं आन्दोलन,
नष्ट करते हैं राष्ट्र-संपदा,
पर भूल रहे हैं यह राष्ट्र हमारा.
पर हमें तो नाश करना है,
काला-बाजार और भ्रष्टाचार,
हटाना है गरीबी तथा गुंडागर्दी को.
ऐसे नहीं करपाएँगे,
कहना तो पडेगा हमको ही
‘मेरा भारत नहीं महान’,
‘‘मेरी निर्धनता ही महान’’.