मानवता



                        
मानवता

प्रो. एस.वी.एस.एस.नारायण राजू 


     केरल भारती,
     अगस्त - 2007                                         

  
         मानवता का अर्थ हैमनुष्यत्व, आदमीपन, इनसानियत है. मानवता की प्राप्ति धन, मकान, आभूषण और विद्या से नहीं होती है. इसकी प्राप्ति तो आत्मा की स्वच्छता, आचरण की शुद्धता और हृदय का उदारता से होती है. कोई भी मनुष्य कुत्सित भावनाओं को रखकर, दूसरे के ऐश्वर्यों को लूटकर और किसी की आत्मा को सताकर इस आभूषण से अपनी देह को अलंकृत नहीं कर सकता है

           अब ज्यों-ज्यों हमारा समाज और राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता जाता है, त्यों-त्यों हम मनुष्यता के आभूषण को अपने से दूर करते जाते हैं. इसकी दूरी के कारण आपस में वैमनस्य के अंकुर खडे हो चुके हैं. पति-पत्नी अपने कर्त्तव्यों को भुलाकर विश्वास खो बैठे हैं. शिक्षक और छात्र का अनुशासन टूट चुका है. पुत्र की लोलुप दृष्टि पिता को तुच्छ समझने लगी है. ब्लैक मार्केटिंग ने अपने को पराया बना डाला है. भाईभाई का खून करने केलिए तत्पर है. सत्य है कि मानवता दानवता में बदल चुकी है. इन सब के कारण ही हम मानवता को खो बैठे हैं.
 
           मानवतावादी की चिन्तन शक्ति दृढ़ होती है. उसके चरित्र का निर्माण हो जाता हैं. विश्व में उसका विश्वास होता है. उसके प्रिय जन प्राण न्योछावर करने केलिए हर समय तत्पर रहते हैं. वह देव तुल्य पूजा जाता है. उसके त्याग और तपस्यापूर्ण जीवन से भगवान भी प्रसन्न रहते हैं.

            आज बहुत से राष्ट्र मानवता को भुलाकर दूसरे देशवासियों के साथ बुरा व्यवहार कर रहे हैं. उन्हें निकृष्ट समझकर पशुओं के समान घृणा का पात्र बना देते हैं. ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए. हमें सब को अपने समान समझकर उनके साथ मानवता का व्यवहार करना चाहिए।

           मानवता ही वास्तव में मानव के नेत्रों की सच्ची ज्योति है. इसके चले जाने के बाद वह अंधा हो जाता है, जिसके कारण पथ भ्रष्ट होकर अपनी आत्मा और अपने भाईयों को कष्ट पहुँचाता है. धन के लोभ और झूठे यश के पीछे दौड लगाने के कारण इस ज्योति को नष्ट नहीं करना चाहिए. बहुत से मनुष्य दूसरों के सम्मान को कुचलने का प्रयत्न करते हैं, अपने यौवन की मादकता में दूसरे को ठोकर लगने केलिए तत्पर रहते हैं, ऐसे मनुष्यों की गणना पशुओं में करते हैं ऐसे विवेकहीन मनुष्य का विश्व में कही भी सत्कार नहीं होता है.

          मानवता वादी व्यक्ति अपने व्यवहार से जीवन और सामाज में सभी को शीघ्र एवं सहज ही प्रभावित कर लिया करता है. इस कारण सभी लोग उसका सम्मान तो करते ही हैं, उसकी हर बात पर विश्वास भी करते हैं. उसके प्रत्येक क्रियाकलाप को बडे ध्यान से देखते ओर अनुभव करते हैं. उसका प्रभाव ग्रहण कर स्वयं जाने अनजाने उसका अनुकरण करने का प्रयास भी करते रहते हैं.
    
          मानवता मानव जीवन का सच्चा आभूषण है इसके पहनने वाले का समाज में सत्कार होता है. उसके साथी सम्मान के साथ व्यवहार करते हैं. कभी आपत्ति पडने पर उसकी हर प्रकार से सहायता करते हैं. सारे पृथ्वीवासी उसके परिजन बन जाते हैं. इसके कारण मात्र से आत्मिक शाँति, हर्ष, वैभव, यश और उच्च पद प्राप्त होता है.
    
   मानवता वादी लोगों का आचरण सदैव शुद्ध रहता है. उसका मन रुपी चंद्र निष्कलंक हो जाता है. मानवता वादी बनने से सच्चासुख, आत्मिक शाँति, श्रद्धाभजन, आत्म-सम्मान और सामाजिक उन्नति पा सकते हैं.
    
        यदि हम मानवता को अपनाना चाहते हैं, तो हमें ईर्ष्या, दम्भ, काम, मद, लालच और पापादि को त्यागना होगा. हमें बडों के प्रति नम्रता और छोटों के प्रति सच्चा अनुराग रखना होगा. मानवता चाहती है कि हम यथाशक्ति दीन-हीन की रक्षा करके उसकी सहायता करें. यह गुण विश्व भर में पूजा जाता है और इसको धारण करनेवाले भी सदा पूजनीय होते हैं.       



   




Popular posts from this blog

वैज्ञानिक और तकनीकी हिंदी

“कबीर के दृष्टिकोण में गुरु”

लहरों के राजहंस और सुंदरी