किसान
किसान
प्रो. एस.वी.एस.एस. नारायण राजू
पूर्णकंभ,
साहित्यिक मासिक पत्रिका, मार्च 2000
प्रगति दाता
!
भाग्य प्रदाता
!
जीवन विधाता
!
हे आन्नदाता
!
तुमसे भला महान कौन है
?
राजा भी तुमसे कम है.
धूप को ठंडा समझकर,
खून को पानी बनाकर,
स्वयं भूखे रहकर,
सबकी भूख मिटा कर,
बन गए महान.
निरन्तर खेतों में
श्रम करनेवाले हे किसान.
हम कहाँ तक गाएँगे,
तुम्हारा यशोगान.
हे किसान
!
इस जगत में
तुमसे महान भला कौन है
?
तुम धन्य हो.
हे अन्नदाता
!
तुम धन्य हो.